Tuesday 17 June 2014

सुखनाव

ज एक और गहरा मनोवैज्ञानिक तथ्य समझ आया , की क्यों सुख की चाह में मन की तृष्णा वन वन भटकती है , और जबकि सुख नाम की चीज़ कहीं नहीं , सिर्फ छलावा है , हाँ यदि कोई सत्य है तो वो आनंद भाव का है , उत्सव भाव का है। यदि  कहीं आपने सुना  है की संसार  दुखमय , दुःख सागर  है  तो गलत नहीं सुना ,  अवश्य ही  ये संसार दुःख का सागर  है , जहाँ   माता के गर्भ से ही दुःख का सिलसिला शुरू होजाता है और  मृत्यु तक किसी  न किसी  शारीरिक  या मानसिक  पीडा  रूप में वेदना और दर्द से हमारा  परिचय होता ही रहता है।   और इसी लिए  हम आजीवन  मनोवैज्ञानिक कारणों से सुख के पीछे  भागते दौड़ते रहते है , थोड़ा सा सुख हमारे जीवन को थोड़ा सा धक्का दे जाता है।  

सुख  और दुःख  भाव  भी ठीक है  यदि ज्ञान है  और जागरूकता है , अज्ञानता में  और नासमझी के अंधकार में होता कुछ है …  दीखता कुछ है … और समझ में  आता कुछ है .... रस्सी में भी सर्प के होने का भान होता है,  और इस  जो भी कुछ समझ में आ गया  उसी  को जीवन की अंतिम  सच्चाई  मान के जान के , हार मान के , जो जीवन हमारा नहीं उसी को जीने लग जाते है।  

" समझना ये है  की क्षणिक  और लौकिक सुख  छलावा जैसा ही धक्का देते है  जो पल भर में  विलुप्त भी हो जाते है। ऐसा सुख  जो परमानन्द की झलक दिखाए ,  ऐसा सुख जो  इस  छोर से  उस छोर तक साथ निभाए ,ऐसा कौन सा सुख है ?"


कभी आपने यदि किसी समुद्री जहाज पे यात्रा की हो ( अवश्य की होगी ) तो आपको अथाह जल के ऊपर तैरती हुई बड़ी छोटी नावें भी दिखी होंगी , जिनको नाविक अपनी अपनी शक्ति और श्रम से चलते नजर आते है , कई तो मैकेनिकल होती है जिनको बस हिसाब से चलना होता है , तो कई मानव चलित होती है। 


नुमान कीजिये , संसार एक भव सागर है जैसा वर्णन शास्त्रो में भी है , और आप अपनी नाव पे सवार है , उस अथाह समुद्र में , मौसम की परेशानिया है ही , साथ ही जल की अपनी समस्या , पता नहीं कब हिंसक जंतु धावा बोल दे ,और तो और , समुद्र में चल रहे समान श्रेणी की नौकाएं कब प्रतिस्पर्धा में आपके जीवन को क्षति करदे , और उनसे भी चलिए निबटने का साहस किया , परन्तु आपकी नाव में सवार साथी ही कब छल ले पता नहीं , यदि न भी छले तो भी कब तक किसका साथ है पता नहीं , इतनी असम्भवनाये होती है , एक छोटी सी यात्रा में , फिर ये तो जीवन यात्रा है , देखने योग्य है की यात्रा छोटी सी हो या जीवन में फैली हुई , एक ही भाव है एक संकल्प है की गंतव्य तक जाना ही है। यात्रा शुरू की , इस विश्वास के साथ की सब अच्छा ही होगा , जैसा हम सभी करते है , कोई अनिष्ट भाव के साथ यात्रा नहीं शुरू करता , योजना बनाते है , कितने दिन की यात्रा है , पैसे इकठा करते है , छूटी लेते है , की लौट के फिर काम पे जायंगे। परन्तु अनिष्ट कहके नहीं आता। और वो इतना भी सोचने का अवसर नहीं देता की आप दो मिनट बाद की योजना भी बना सके। आया और ले गया।
अनेकानेक  अनिश्चिताओं के साथ  हम सब इस भवसागर में अपनी छोटी छोटी नौकाओं के साथ अपनी अपनी नौका खे रहे है , जल अथाह है जैसा की कहा भी गया है और हम सब को अनुमान भी है की यहाँ इस संसार को दुखमय कहा गया है , यूँ ही नहीं ।  इसका गहरा अर्थ है। " ये भव सागर रूपी संसार अथाह अनंत और असीमित दुखो से भरा हुआ है , सत्य है  !  हमारे सबके जन्म के दर्द के साथ होते है और मृत्यु भी दर्द के साथ ही  होती है,  इसमें कोई शक नहीं की दर्द के समुद्र में हम सब तैर रहे हैं ....  जिसमे सुख या उम्मीद की छोटी सी नाव लेके हम अपनी यात्रा कर रहे है। जब तक नाव पे सवार है जल हमे डरा तो सकता है , किन्तु हमारी यात्रा में बाधा नहीं बन सकता , समुद्री जीव भयभीत कर सकते है परन्तु साहस हमें आगे बढ़ाता है । तो … जब तक आप अपनी सुख_ नाव पे सवार है आपका बाल बांका भी नहीं हो सकता , और इस आपकी नाव पे ही सवार आप  अपनी बुद्धिमत्ता से अन्य लोगो के भी यात्रा को आसान बनाते है।  हमारी बुद्धि हमें सिखाती है की शरीर के साथ रहे या आत्मा के साथ, !  हम यदि शरीर का चयन करते हैं निश्चित रूप से जब हम शारीरिक और भावनात्मक दर्द को चुनते हैं, लेकिन जब हम बुद्धिमानी से रहने का फैसला एक बार करते है और अनश्वर आत्मा का चयन करते है " जो की हम है " तो उलट स्थिति होती है सुख -नाव पर सवारी कर रहे होते हैं, , और समुद्रीय दर्दजल नाव से नीचे नीचे लहरिया बहाव रूप में बहता तो रहता है बिना हमे छुए .... . बल्कि आत्मा- परिचय  के साथ हम समुद्रीय सौंदर्य को देखने में सक्षम हो जाते है . 
अब आप जरा भीषण  दारुण दुःख की  कल्पना कीजिये , मध्य सागर में जैसा की हम सभी जन्मसे ही मध्य सागर में उतराने लगते है किनारा तो सिर्फ इस पार है या फिर उस पार , बीच का सम्पूर्ण जीवन मध्य ही है। जरा कल्पना कीजिये , किसी भी कारन से टूटी हुई नाव कैसे यात्रा पूरी करेगी ? आप तो जायेंगे ही समुद्र में आपके साथ सभी जायेंगे। और तब आपको समझ आएगा की अथाह सागर क्या होता है , और नाव का महत्त्व क्या है ? वैसे ये जीवन भी अद्भुत है , हर एक की अपनी नाव है , अपना समुद्र है , परन्तु फिर भी परिवार की अपनी नाव और अपना समुद्र। बिलकुल वैसे ही जैसे देश की अपनी नाव और अपना समुद्र। फिर भी अंततोगत्वा मायावी समुद्र एक ही है जिसको भवसागर कहते है।
ये दारुण संताप देने वाला दुःखरूपी सागर सुखरूप हो सकता है यदि आपकी नाव दुरुस्त है तो आप लहरों का सीना चीरते हुए मंतव्य गंतव्य को जा सकते है। और इस नाव को दुरुस्त रखने के लिए इसकी उपयोगिता को समझना आवश्यक है , मंदबुद्धि हम लोग सिर्फ कारन से ही उपयोगिता समझ पाते है , बिना कारण उपयोगिता समझ नहीं आती , इसके लिए आपको निश्चित ही ध्यान करना जरुरी है , जिसमे सबसे पहले , सुख और दुःख को समझना पड़ेगा , तभी आप अपनी मजबूत नाव का निर्माण कर सकेंगे , जिस सुख की बात मैं कर रही हूँ उसका क्षय नहीं होता , उस आनंद की बात मैं कर रही हूँ , जहाँ लौकिक उपलब्धियों से मिलने वाले सुख क्षणिक लगते है। आपको इसी सुख के तत्वों से अपनी नाव बनानी है।
इतना तो हम सभी को समझ है जैसा सामान लगेगा वैसा ही वस्तु का निर्माण होगा , यदि आप क्षणिक सुख सामग्री का चयन करोगे तो , नाव भी ऐसी ही बनेगी , जो बीच धारा में गल के समाप्त हो गई और आप गपाक से समुन्द्र के अंदर , जीवों का भोजन बनेंगे। पर यदि नाव का निर्माण भवसागर की शक्ति के अनुरूप हो जिसमे सुख की सामग्री लगी हो , फिर वो नाव जीसस की नाव के समक्ष हो सकती है , बहुत प्रतीक कथा है हमारे पुराण में भी ऐसी नाव का वर्णन है , जिसमे सब पवित्र आत्माएं सवार हो के भवसागर पार करते है। कथाओं को सिर्फ प्रतीक रूप में ही लेना है और अपने लिए सामग्री जमा करनी है , वैसे तो हम सब को ईश्वर ने शरीर रुपी नाव दी है , और उस महान ने तमाम सावधानियों के साथ इस का निर्माण किया है , ऊर्जान्वित सात चक्रों का वास इसका प्रमाण है , परन्तु अपनी ही अज्ञानतावश उस प्रभु के किए को दिए को हम मिटाते रहते है। मानसिक आत्मिक और शारीरक रूप से रुग्ण होके, क्षति पहुंचाते है , अब अपनी मूर्खता समझ आती है , उस परम ने समुद्र में हमें उतारा , विशिष्ट प्रयोजन से , अनुभव के लिए , प्रारब्ध से , परन्तु सम्पूर्ण व्यवस्था के साथ , जिसमे रोग से लड़ने की ताकत है , जिसमे भावनाओ के उठपुतल को सँभालने की ताकत है , जिसमे बुद्धि बल से जीवन यापन करने की ताकत है।
ऐसी नाव को हम बीच समुद्र में क्षतिग्रस्त करके " दया दया " की गुहार लगाते रहते है , और वो मंद मंद मुस्कराता है। और एक दिन जब दया करता है तो सिर्फ ये ज्ञान देके की तुम जिसके लिए करुण क्रंदन कर रहे हो , पीड़ित हो रहे हो , वो तो तुम्हारे पास है ही। आवश्यकता सिर्फ ज्ञान की है , देखो और जानो। सुनो और मानो नहीं , देखो और जानो। अपने को दुरुस्त रखो , ज्ञान रखो , अपना स्थान जानो , जन्म का औचित्य जानो , और सबसे बड़ी बात ये सब क्षणिक मौन में उपलब्ध है। अपने गंतव्य को देखो। अपनी यात्रा को समझो। सब कुछ तो है तुम्हारे पास। फिर क्यों नादान बालक के समान गिड़गिड़ा रहे हो ?
यदि सुखनाव बचा ली तो समुद्र पार और नहीं तो बीच समुद्र में उठती गिरती शोर मचाती लहरों के बीच धड़ाम / भड़ाक / छपाक। पर मनुष्य है तो आशा है और आशा है तो प्रयास है और प्रयास है तो , सुखनाव को कोई क्षति नहीं हो सकती।
सुखनाव आपका अपना यानी आत्मा का अनुभव है , ज्ञान है विज्ञानं है और मनोवज्ञान है। यहाँ सुबह शाम के लौकिक सुख और दुःख स्थान नहीं पा सकते , जो छलावे की तरह सहारा देते लगते है , परन्तु लौकिक में गति है स्थ्रिता नहीं , इसलिए इनमे भी गति है , रुक नहीं सकते। यहाँ समझने वाली बात है , की गति उनमे भी है , परन्तु इनकी गति संसार के समय के अनुसार है , और उनकी गति हमारे जीवन समय के अनुसार , आपकी नैया पार लगा देते है , और वह फिर कोई दूसरी नाव मिल ही जाएगी , कोई दूसरा किनारा , और खेवनहार तो साथ में है ही। बस यही भरोसा और विश्वास। जो स्वयं हमारे भूले हुए जन्मों का हिसाब रखे है , और हमारी नौका को ठोंक पीट के सही करता रहता है। जब ये नौका साथ नहीं तो दूसरी नौका का बंदोबस्त करना भी उसीकी जिम्मेदारी।
कही पढ़ा था किसी महात्मा के अनुभव है " "जीवन के दुःख बिलकुल नमक की तरह हैं ; न इससे कम ना ज्यादा . जीवन में दुःख की मात्र वही रहती है , बिलकुल वही . लेकिन हम कितने दुःख का स्वाद लेते हैं ये इस पर निर्भर करता है कि हम उसे किस पात्र में डाल रहे हैं . इसलिए जब तुम दुखी हो तो सिर्फ इतना कर सकते हो कि खुद को बड़ा कर लो …ग़्लास मत बने रहो झील बन जाओ .”शायद स्पष्ट कर पायी हूँ की सुखनाव क्या है ! , भवसागर क्या है ! और कैसे आपकी अपनी छोटी सांसारिक सामुद्रिक यात्रा से इस वृहत सामुद्रिक यात्रा का सांकेतिक मेल हो सकता है।
यदि उस दिव्यता और भव्यता की एक छोटी सी झलक भी विचारों में आपको दिख सकी हो , तो मैं धन्य हो जाउंगी 
शुभकामनायें

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