Sunday 22 June 2014

वातावरण में तैरती ध्वनियां


(ये जो चित्र है ये रीढ़ के अंदर प्रवाहित होती ऊर्जा तरंगो को स्पष्ट करने का अथक प्रयास है , और कैसे तरंगे इन ऊर्जा क्षेत्रो हो छूती प्रभावित करती हुई उर्ध्वगामी होती है , चूँकि तरंगित जगत है इसलिए सांकेतिक भी है , तत्व प्रमाण मिलना कठिन है पर हाँ भाव प्रमाण स्वयं के अंतर्भाव के होते हुए विकास से मिल सकता है )
हले बचपन में  कथा की तरह सुना ही था , अचरज भी हुआ था इन ध्वनि तरंगो का वैज्ञानिक विश्लेषण , अपने बड़े भाईयों से जान कर  ,चूंकिं विज्ञानं मेरा विषय नहीं था , पर अद्वैत में रुझान था , सो कोई भी बात जो अद्वैत को छूती थी वो दिल को भी छू जाती थी पर लड़कपन में ज्यादा समय तक विचार टिक नहीं पाया , फिर थोड़ा बड़े होते हुए किसी ज्ञानी के द्वारा लिखा गया लेख पढ़ा की ध्वनि तरंगे किस तरह से वातावरण में फैली रहती है , बाद में  इसी की गहराई की  अनुभव किया  और  ध्यान में महसूस भी किया , तरंगित ऊर्जाओं के सामान ही ध्वनि की भी तरंगे होती है , और समस्त  उर्जाये अपने अपने क्षेत्र  में विद्यामान  है  कहीं नहीं गयीं।  वरन   जैसे ही संकेत पातीं है  स्वयं को प्रकट भी करती है।  

आप सभी विद्वान लोगो के लिए ये पहले से ही जाना हुआ है की ध्वनि तरंगो का भी झुण्ड होता है , और बहाव भी होता है , इनका भी अपना वातावरण होता है , केंद्र होता है और उपयुक्त पर्यावरण में प्रसार भी होता है। 

फिर तो ये भी आप सभी जानते ही होंगे की सभी ध्वनियां हमारे सुनने के लिए नहीं होती , एक निश्चित दायरे में घूम रही ध्वनि तरंगो की स्केल सीमा के अंदर ही हमें सुनाई देती है , वैसे इस पृथ्वी पे और भी जीव है जो अलग अलग स्केल की तरंगो को सुन सकते है। 

फिर तो ये महसूस करना और भी सरल हो जाता है की जो हमारे लिए उपलब्ध ध्वनि तरंगे है उनके भी अलग अलग स्केल के अलग अलग प्रभाव हमारे मस्तिष्क द्वारा हमारे शरीर पे हमारी चेतना पे पड़ते है.

और जब इस प्रभाव की शक्ति को जान लिया , तो ये जानना और भी सरल है , की क्या क्या ध्वनि सुख देती है और क्या कष्ट। मंत्रोच्चार में अधिक गहरे न जा के बस यही तक रहते है की ओम / यँ / हु ध्वनि के जो प्रभाव है वो हर स्थति परिस्थति में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करते है। इनके कम्पन अलग अलग चक्रो को जागृत करते है। 

आज की चर्चा ये हमारा मूल विषय चक्रो का जागरण नहीं था , ये तो बस प्रवाह में निकल गया। 

ज का विषय है , वातावरण में तैरती ध्वनिया , जी हाँ , वातावरण में ध्वनिया जो तैर रही है वो बयनेरी भाषा है , सांकेतिक भाषा है , जिनको हमारा मस्तिष्क बेहतर कम्प्यूटर के सामान हमारी जानी हुई भाषा में परिवर्तित कर देता है , बिलकुल ठीक वैसे ही जैसे अन्य भाषाओँ के अनुवाद मस्तिष्क करता है। 

हमारे पर्यावरण में घूमती इन तरंगो को इन्ही के स्केल पे प्रभावित किया जाता है , और ये बहुत वैज्ञानिक पद्धति है , जिसके आधार पे , टेलीविजन और रेडिओ काम करते है। 

इतना समझने के बाद ये तो स्पष्ट हो गया की ध्वनि तरंगे धुल कणो के समान , हमारे आस पास ही है , हमसे दूर नहीं। और इसके साथ ही ये भी स्पष्ट हो गया , की कहा गया और सुना गया सब कुछ वातावरण की गर्त में महफूस है , बस जरुरत है ध्यान की और मौन की। 

ध्यान और मौन दो ऐसी प्रबल विधिया है जिनके माध्यम से प्रकति हमारी मदद कर पाती है। अन्यथा उसके पास कोई अन्य उपाय नहीं जो हमारे शोर को हमसे दूर कर पाये , और हमें वो सुनने को कहे जो वो हमसे कहना चाहती है। 

इन सब के साथ एक और अति महत्वपूर्ण बात , जो मैं कहना चाहती हूँ , की जो भी शब्द इतिहास में कभी भी किसी के भी द्वारा कहे गए है , और जो भी शब्द आपकी मानसिक तरंगो से मेल खा जाते है , वो स्वयं आप तक आकर्षित होके आपको छू जाते है , और ये एकदम सच है। आप भरोसा कर सकते है , इसके वैज्ञानिक तथ्य भी है। सिर्फ अनुकूल पर्यावरण , तरंगित ध्यान , और एकाग्र मस्तिष्क तथा मनःस्थति का अनुकूल होना जब उन तरंगो के स्केल पे सेट हो जाता है तो चमत्कार जैसा ही होता है , हलाकि उनके लिए नहीं , क्यूंकि वो तो पहले से ही मौजूद है , हमारी ही तैयारी में कमी रहती है। 

आपकी उन्ही सधी हुई तरंगो के माध्यम से उर्जाये संपर्क करती है , समाधान और विषयगत स्पष्टता भी देती है , वो सब करती है , और करना चाहती है जो भी मानव कल्याण के लिए हो। 

और वो ही उर्जाये समग्र रूप से आपके प्रारब्ध अनुसार उन्नत ज्ञान का वातावरण भी नियत करती है। वो ही सहयोग करती है , जिनको हम कहते है की , जब सच्ची लगन लग जाती है तो सम्पूर्ण कायनात हमारी मदद करने को तैयार हो जाती है। 

वैसे तो हम सभी जानते है की शुन्य का गुना भाग शुन्य ही है , कुछ नहीं है , न आगे न पीछे , परन्तु ये जो बीच का जीवन है ये ही भोग काल , ये ही ज्ञान काल है , और यही प्रभु की और बढ़ता एक एक कदम भी। जन्म से पहले का काल और मृत्यु के बाद का जो आधा घेरा है वो निष्क्रिय है अंधकार में है , ऊर्जा कर्म नहीं कर सकती। परन्तु पूर्ण चक्र के इस उजले पक्ष में , गर्भादान के अद्वितीय प्राकृतिक सहयोग से पांच तत्वों के साथ मिल के ऊर्जा शरीर धारण करती है , तब ही कर्म के काण्ड को पूरा कर सकती है। इसीलिए मानव जन्म दुर्लभ है , सीमित है और उद्देश्य पूर्ण है। इसके महत्त्व को समय रहते ही जान लेना उचित है , वार्ना भ्रमित करने वाली शक्तियों की भी कमी नहीं , जिनको मायावी शक्तियां भी कहते है , कहते है किसी भी ज्ञानी का ज्ञान पल में समाप्त करने का साहस रखती है। संसार की असारता को जान के समझ के जीवन जीना है , मिले हुए का उपयोग बुद्धिमानी से करना है। बिलकुल वैसे ही जैसे एग्जामिनेशन हॉल में पेन पेपर और ज्ञान के साथ ही सफलता पूर्वक समय पार होता है . वैसे ही यहाँ भी है , असीमिनित ने हमारी सीमा निश्चित की है। उसी के अंतर्गत हमें सभी कार्य करने है। जिम्मेदारी भी , प्रेम भी , करुणा भी और ज्ञान को आगे बढ़ने की परंपरा का भी पालन करना है। 

जो जैसा हमारे पूर्वज कर गए , वो सब वातावरण में सुरक्षित है , उनको ही सुनकर दोबारा शब्दों में उतारना और बयिनेरी से समझ में आने वाली भाषा में बदलना वो ही उर्जाये करती है। शायद माध्यम द्वारा। मानवता के हित में। 

पर हर बात की सीमा है , तो इसकी भी है। इसकी सीमा गृह्यता है , पात्रता है । इसकी सीमा बदलती हुई विकसित होती चेतना है , इसकी सीमा , वैज्ञानिक विकास भी है , जो किसी हद तक सहयोगी भी है। पर विज्ञानं का हर विकास , जहाँ रहना सुविधाजनक बनाता है , वहीं उसकी भरपाई भी चुकानी पड़ती है , ये भी प्राकृतिक नियम है। 

बहरहाल , आगे पीछे का मुझे ज्ञान नहीं , इतना जरूर ज्ञान है , की आज का जीवन पूरी संवेदना , सामर्थ्य , और कृतार्थ भाव से जीना है , और अपनी सीमित शक्ति से प्रयास करने है , फिर उसके बाद समर्पण। फिर जो भी हो सब स्वीकार है। 

ॐ 


शुभकामनाये !

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