प्यारे ओशो,
आप हमें इतना हंसाते है, मगर स्वयं कभी क्यूँ नहीं हँसते ?
Osho , " एकांत में हँसता हूँ ! इधर तो तुमको देखता हूँ तो रोना आता है !
आदमी की हालत इतनी बुरी है कि हंसो तो कैसे हंसो !
आदमी बड़ी दयनीय अवस्था में है, बड़ी आतंरिक पीड़ा में है !
कैसे जिंदा है , यह भी आश्चर्य की बात है !
इसलिए तुम्हें तो हंसा देता हूँ , लेकिन खुद नहीं हँस पाता हूँ !
एकांत में हंस लेता हूँ !
जब तुम नहीं होते, जब तुम्हारी याद बिलकुल भूल जाती है,
तुम्हारे चेहरे नहीं दिखाई पड़ते, तुम्हारी पीड़ा, तुम्हारा दुःख विस्मृत हो जाता है - तब हंस लेता हूँ ! 4
लेकिन तुम्हारे सामने हंसना असंभव है !
जिनकी साँसों में कभी गंध न फूलों की बसी
शोख़ कलियों पे जिन्होंने सदा फब्ती ही कसी
जिनकी पलकों के चमन में कोई तितली न फंसी
जिनके होंठों पे कभी आई न भूले से हंसी
;
ऐसे मनहूसों को जी भर के हंसा लूँ तो हंसू,
अभी हँसता हूँ , जरा मूड में आ लूँ तो हंसू !
बेख़ुदी में जो कभी पंख लगाकर न उड़े
होश में जो न महकती हुई जुल्हों से जुड़े
देखकर काली घटाओं को हमेशा जो कुढ़े
कभी मयखाने की जानिब न कदम जिनके मुड़े;
उन गुनाहगारों को दो घूंट पिला लूँ तो हंसू ,
अभी हँसता हूँ , जरा मूड में आ लूँ तो हंसू !
होश में जो न महकती हुई जुल्हों से जुड़े
देखकर काली घटाओं को हमेशा जो कुढ़े
कभी मयखाने की जानिब न कदम जिनके मुड़े;
उन गुनाहगारों को दो घूंट पिला लूँ तो हंसू ,
अभी हँसता हूँ , जरा मूड में आ लूँ तो हंसू !
जन्म लेते ही अभावों की जो चक्की में पिसे
जान पाए न जो, बचपन यहाँ कहते हैं किसे
जिनके हांथों ने जवानी में भी पत्थर ही घिसे
और पीरी में जो नासूर के मानिंद रिसे
;
उन यतीमों को कलेजे से लगा लूँ तो हंसू
,
अभी हँसता हूँ , जरा मूड में आ लूँ तो हंसू !
जान पाए न जो, बचपन यहाँ कहते हैं किसे
जिनके हांथों ने जवानी में भी पत्थर ही घिसे
और पीरी में जो नासूर के मानिंद रिसे
;
उन यतीमों को कलेजे से लगा लूँ तो हंसू
,
अभी हँसता हूँ , जरा मूड में आ लूँ तो हंसू !
जिनकी हर सुबह सुलगती हुई यादों में कटी
और दोपहरी सिसकते हुए वादों में कटी
शाम जिनकी नए झगड़ों में, फसादों में कटी
रात बस ख़ुदकुशी करने के इरादों में कटी
;
ऐसे कमबख्तों को मरने से बचा लूँ तो हंसू
,
अभी हँसता हूँ , जरा मूड में आ लूँ तो हंसू !
और दोपहरी सिसकते हुए वादों में कटी
शाम जिनकी नए झगड़ों में, फसादों में कटी
रात बस ख़ुदकुशी करने के इरादों में कटी
;
ऐसे कमबख्तों को मरने से बचा लूँ तो हंसू
,
अभी हँसता हूँ , जरा मूड में आ लूँ तो हंसू !
हंसना मुश्किल है !
मनुष्य को देखकर आंसुओं को रोक लेता हूँ, यही काफी है !
तुम्हारे प्रश्न के उत्तर थोड़े ही देता हूँ ! तुम्हारी पिटाई करता हूँ !
तुम्हारे प्रश्न तो बहाने हैं कि मैं तुम्हें झकझोर सकूँ !
इसलिए तुमसे कहता हूँ पूछो !
उत्तर देने का थोड़े ही सवाल है ; कुटाई -पिटाई करने का सवाल है !
उत्तर पीने में तो तुम ऐसे कुशल हो कि शास्त्रों को पी जाओ और डकार न
लो !!
लो !!
Just Superb..Ma..._()_ .... :))
ReplyDelete:) thank you :)
Deleteall cause of you :) for brilliant share ..
Deleteblissful
ReplyDeletethank you , welcome to read more :) pranam rajesh ji
DeletePlease give me link of this video or audio
ReplyDeleteIski video ya audio mil sakti hai
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