Tuesday, 29 April 2014

प्रवेश द्वार (Note)

कभी आपने अगर खो-खो_खेल देखा या खेला !! यदि हाँ तो इस बात का अर्थ समझते देर नहि लगेगी , कितनी तरीको से प्रवेश संभव है , कहीं से भी एक झलक और आप ज्ञान के अंदर और दूजे पल ज्ञान का प्रवेश ह्रदय द्वार मे । खेल खेलते समय बालक प्रसन्न होते है किन्तु केंद्रित होते है , फोकस_बालक लक्ष्य की ओर और प्रवेश द्वार खुल जाता है ... लक्ष्य की स्पष्टता ही प्रेरक का काम करती हैं , और इसी खेल_प्रसन्नता के भाव से आपकी प्रेरणाएँ आपको दिशा निर्देशन करती है।

महत्वपूर्ण ये है की आप स्वयं से क्या चाहते है , सर्वप्रथम ये सुनिश्चित करना आवश्यक है , इसके पश्चात् अपने ह्रदय के मौन को समझना आवश्यक है , कुछ तर्क सुनने को मिलेंगे कीं दिल में तो खून और मांस के सिवा कुछ नहीं , ये भाषा विग्यान की है , जो सिर्फ़ प्रमाण स्वीकार करते है वो मस्तिष्क मे जीते है .... विचार कीजिये ! अच्छा भला जीवित इन्सान जिसको जलती माचिस की तीली से छाला पड़ जाता था , आज वो आग की लपटों मे घिरा है , जल रही है उसकी देह परन्तु न छाला , न दर्द न चीत्कार। क्या ऐसा था जो चला ग़या ? ये विज्ञान की पकड़ मे भी नही।

मित्रों ! तरंगो के भी प्रमाण है , सूक्ष्म से सूक्ष्म तरंगे यंत्रों की पकड में आती हैं किन्तु फिर भी "यंत्र" यंत्र ही है, आप द्वरा निर्मित ... आपके आदेश के गुलाम , उससे अधिक कुच्छ नहीं। पूरी तरंगे पकड़ने में यंत्र अभी भी सक्षम नही , उदाहरण की लिए चक्रो की ऊर्जा का विश्लेषण और प्रमाण अभी भी विज्ञानं जगत में नहीं , रीढ़ को काट के देख ले एक भी चक्रीय ऊर्जा का सूक्ष्म सा भी प्रमाण नहीं मिलेगा। इसी तरह मस्तिष्क मे जिस ऊर्जा का वास है उसका सम्बन्ध तर्क से है , हठ से है , और आज्ञां से है , इसी प्रकार ह्रदय में जिस ऊर्जा का वास हैं उसके संबन्ध भाव से है और भाव अपने शुद्धतम रूप में परम से जुड़ता है। इसीलिए ध्यान द्वारा योगी को आज्ञा के माध्यम से मस्तिष्क पे काबू पाते हुए भाव में प्रवेश करना होता है , वही पे भावज्ञान का दीपक जला हुआ मिलता हैं।

ये उपर्युक्त तब संभव है जब आप स्वयं को जान लेते है ,

शुरूआती उलझन है , किस द्वार से प्रवेश हो , कोई भी एक धागा सूत्र का पकड में आ जाएं , तो बस छोड़ना नहीं हैं। एक एक कदम चल पड़ना हैं ," बेबी स्टेप " ........कुछ तत्व ज्ञानी कहते है स्वयं को जानते ही , आपकी ज्ञात यात्रा आरम्भ हो जाती है , हालाँकि अपनी अज्ञात यात्रा में तो आप जन्म से जुड़ें हैं , संभवतः जन्मो से।

आपको ये द्वार अपनी दैनिक दिनचर्या से लेकार , किसी विशेष मानसिक अवस्था या समय या अवधि या स्थान में भी दिख सकता है। कही से परिचय हो सकता हैं , कहीं से भी उत्पत्ति कर्ता अपने स्वरुप का परिचय करा सकते हैं।

दूसरे शब्दों मे ," आप तपस्या मे है , अभी अज्ञात है जब ज्ञात होंगी तो आपको सत्य के दर्शन होंगे ,ज्ञान गंगा अवतरण के लिये आपको हर वखत तैयार रहना है , भूमि बनानी है , दृढता से पैर ज़माने है, एकदम शिव समान , ताकि उसका वेग आपको विचलित न कर सके , और परम आपको गंगा अवश्य भेंट करेंगे। "

ध्यान दीजियेगा , प्रश्न सही और गलत का नहीं , प्रश्न धारा का है , और मुझे क्या चाहिए ! उदाहरण के लिये यदि आप अपना रुझान कर्म कांडो मे पाते है , तो आपको धर्म व्यवस्था भली लगेगी , यदि आप अपना रुझान सीधा परम से जोड़ने मे पाते है तो आपको अध्यात्म और ध्यान का रास्ता प्रीतिकर लगेगा। व्यवस्था मे उलझाव है , भ्रम है , स्वयं काटने पड़ते है एक एक फेरे व्यवस्था के , अभिमन्यु भेदन करके केंद्र तक जाना पड़ता है , थोड़ा कठिन हो जाता है क्यूंकि , समाज धर्म रीति रिवाज़ इन सबके कुछ नियम है और आपसे तदनुसार अपेक्षाएं है , यदि आप सामाजिक है तो आप उन अपेक्षाओं को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते , जबकि अध्यात्म मे आपको सीधे नाभी से जोड़ता है और ये नाभी परम से जुड़ती है। इसमें शुरुआत में सबसे बड़ा युद्ध स्वयम से ही है , एक एक फेरे अपने ही काटने है।

कोई रास्ता न कठिन है न सरल सिर्फ़ आपकी यात्रा और रुझान पे निर्भर है। जहाँ रूचि वहाँ कठनाई और असंभव शब्द प्रवेश नहीं कर पाते। सिर्फ व्यक्ति चल पड़ते है , फिर रास्ते जहाँ ले जाएँ।

चित्रकारी नृत्य गीत संगीत युक्त विभिन्न कलाएं , एक एक विषय , स्वयम विज्ञानं , गणित , प्रकृति की गोद , फूलोँ का सानिध्य , जल का बहना , समंदर में लहरो का उठना और बिखरना , पक्षी का उड़ना , नैसर्गिक सौन्दर्य , जीवों की सहजता , सरलता , प्रकृति से वार्तालाप , …।

सबसे एक ही स्वर एक ही नाद निकल निकल रहा है वो 
है 
ओमकार का , परम का। क्यूंकि शब्दों मे भी भेद करके फ़िर उनके छोटे छोटे टुकड़े करके इधर उधर फेंकने मे हमारा मस्तिष्क माहिर है , तो ये आखिरी शब्द भी मानवीय भेद से बच नहीं सकता। इनसे भी पार जो है वो शून्य है , मित्रों "उसको" इस नाम के चक्कलस से बाहर ही रखें , वर्ना उसका तो कुछ नहीं जायेगा आपका ही दिमाग हरकत मे दोबारा आ जायेगा। 



































(The beautiful ancient Angel Oak Tree in Angel Oak Park, on Johns Island, Southern Carolina.)

(चित्र मे आप देख रहे है ! घना वृक्ष जिसकी अनगिनत छोटी बड़ी शाखाये मूल विकसित उन्नत तने से निकल रहीं है , और ये तना अपनी जडों से जुड़ा हुआ है , यानि कि उद्गम स्थल , जहाँ कभी इस वृक्ष का बीज पड़ा होगा। अब इसको समझने के लिये , किसी पत्ती के द्वारा बड़ी छोटी शाखाओं से होते हुए उद्गम तक पहुंचे , या फ़िर सीधा बीज स्वरुप हो के एक एक पत्ती तक जायेँ , पर यात्रा पूरी करनी ही होंगी। जिस तरह ये वृक्ष आपसे बहुत कुछ कह रहा है वैसे ही प्रकृति का कण कण आपसे सब कुछ कह रहा है। सुनिए , मौन में उस मुखर आवाज़ को। )






असीम शुभकामनायें



ॐ    ॐ    ॐ

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