मैं जो अपने तल पे कह रहा हूँ , सदियों से एक ही बात कह रहा हूँ ...... और वो ही दोहराये जाता हूँ की कभी तो सुनोगे , कभी तो समझोगे ..और तुमने बस्ते में क्या इकठा कर लिया !
मेरी कोशिश यही रही की तुम बोझ मुक्त हो सको , हलके हो सको , परन्तु क्यों तुम शिथिल थके और अपना पीठ का वजन बढ़ाते जाते हो ?
मेरे कहने में कोई फर्क नहीं। तुम्हारे सुनने में और ग्रहण करने में और ग्रहण करके आत्मसात करने में फर्क है जरूर ...... जरूर तुम्हारी समझ में विभिन्नता है , जो एक शब्द ध्वनि ने हजार रागों के रूप ले लिए है। मैं तो एक ही बात और वो भी एक ही स्थानसे कह रहा हूँ , मेरा तो न स्थान बदला है , न शब्द , न आवाज़ , तो फिर सुनते सुनते होमवर्क करते करते तुम्हारा स्कूल बैग क्यों भारी होगया ? पीठ पे लदे बोझ को उतारो , खोलो , झांको जरा, देखो तो सही ! क्या क्या भरा हुआ है ?
देखो जरा ध्यान से !! अपने बस्ते में अंदर झांक के , कितना कचरा इकठ्ठा हो गया है , थोड़ा वक्त दो सफाई के लिए , कहाँ तक यही पुराना कचरे से भरा बस्ता कंधे पे लटकाये रखोगे ? व्यर्थ के बोझ से तुम्हारे कंधे झुक गए है , सफाई करो , अनुपयोगी सामान फेंको दो , थोड़ा विश्राम करो , और नया अध्याय शुरू करो.... नयी किताब खोलो ..... नयी कॉपी बनाओ..... नया पेन लो..... सुन्दर रंग की स्याही भरो ......
और लिख डालो तीन वाक्य के तीन अध्याय और सम्पूर्ण शास्त्र ; पहला वाक्य " मैं प्रेम हूँ " का इससे ज्यादा मत लिखना , किसी व्याख्या में मत पड़ना। दूसरा वाक्य लिखो " मैं सरल हूँ " तीसरा लिखो " मैं सहज हूँ " . और इसके बाद पेन की नोंक तोड़ डालना , इतना लिखने के बाद कुछ और लिखने की जरुरत ही नहीं।
ॐ ॐ ॐ
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