Friday, 18 April 2014

आध्यात्मिकता एक शक्ति या कायरता का आवरण

एक आध्यात्मिक व्यक्ति के गुण हैं शांत , मौन , मितभाषी , सहज स्वीकार का भाव , सहनशीलता , इक्छाओं अनिक्छाओं से परे ... जो उपलब्ध है ... समग्र जीवन मौज में जीना।

तो क्या , ये इन सब गुणों के विपरीत जो सांसारिकता के एक ही धागे के दूजे छोर का खिंचाव का परिणाम है , दरअसल किसी निष्कर्ष को एकदम से देना अति कठिन है , क्युकी यहाँ भी मन शामिल है और इस मन के शामिल होते ही रंग अपने आप घुलने लगते है। चलिए चर्चा करते है , समझते है वास्तविकता आखिर क्या है ? एक तो मोटी मोटी परिस्थति है जिसको समझना बहुत सरल है , की प्रारब्ध की इक्षा से .... जन्म से ही रुझान जीव में जागृत रहता है , और वे लोग भी आते है जिनके जीवन में प्रारब्ध की इक्षानुसार घटना क्रम जीवन के मध्यांतर में घटित होते है ... इनकी राहें , मंजिल और रुझान उसी तरफ इनको धक्का देते है , इनके जीवन में उपलब्ध घटनाये , मित्र , प्रेमी , माँ पिता सभी इनके मार्ग में सहायक होते है , दूसरी तरफ इसी राह पे वो लोग भी आते है जो हताशा को सहन नहीं कर पाते तो छाते की तरह अध्यात्म की छाया स्वीकार करते है। तीसरे प्रकार के वो लोग है , जिनका दिमाग व्यावसायिक है और जिनकी रूचि में ये विषय आता है। जिनको ये विषय समझ आता है रुचिकर भी लगता है और धनोपार्जन का अच्छा साधन भी लगता है , क्यूंकि इस धारा में सहजता और सरलता की नदी गंगा सामान अनवरत बहती है , ऐसे में लोग सहज विश्वास करते भी है और पाते भी है। चौथा प्रकार उन लोगो का है जो रूचि का पीछा करते है और इसी अर्थ में जीवन यापन करते रहते है , और मगन रहते है , पांचवा प्रकार ऐसे लोगो का है जो पीछा करते है फूल का सुगंध के लिए थोड़ी देर के लिए फिर वापिस लौट जाते है अपनी गुफा में , इतने सारे प्रकार जब होंगे तो रंग तो बिखरेंगे ही , सुगंध भी अलग अलग होगी।

प्रथम को छोड़ कर विभिन्न व्यक्तियों ये सब प्रकार सिर्फ सतही स्तर पे जीवित रहते है , वास्तविक अर्थ में अध्यात्म एक जीवन है आत्मा की दिशा है , जिस प्रकार संसार में विचरण करे के अपने स्वाभाव होते है उसी प्रकार अध्यात्म में विचरण करने के भी अपने स्वाभाव होते है , जिस प्रकार संसारी बिना गुणधर्म धारण किये आध्यात्मिक नहीं बन सकता , उसी प्रकार आध्यात्मिक को भी संसारित्व में ढलने के लिए सांसारिकता के गुणधर्म धारण करने ही होते है। बिना गुणधर्म धारण किये कोई न वास्तविक आध्यात्मिक हो सकता है न ही आध्यात्मिक संसारी हो सकता है। ये दो व्यक्तित्व है अलग अलग दो नदी की धारा के समान है जिनमे सांसारिक तो फिर भी आध्यात्मिक के पास कुछ पाने की इक्षा से जा सकता है , आध्यात्मिक का जीवन स्वतंत्र होता है इसलिए उसका मेल भी सांसारिकता से नहीं हो पाता ..... यहाँ व्यवसायी एक ऐसी मानवीय मानसिक प्रजाति है जो आलू की तरह किसी भी सब्जी में पड़ सकती है या पड़ जाती है। ये कही भी किसी भी गुणधर्म में देखे जा सकते है , राजनीती , धर्मनीति , व्यवसायनीति , गृहस्थ , और सन्यासी , क्यूंकि इनको मात्र चोला बदलना पड़ता है और ये उस समूह में घुस के अपना स्वार्थ सिद्ध करते ही रहते है।

ये जो कायरता के आवरण की बात है ये उनके लिए जो प्रथम श्रेणी के गुणधर्म वाले नहीं दूजे प्रकार के होते है , उनपे सिद्ध होती है , प्रथम श्रेणी के गुणों से युक्त व्यक्ति को आवरण की आवशयकता ही नहीं पड़ती , न राजनीती में न धर्मनीति में , न व्यवसाय नीति में न गृहस्थी में और न सन्यस्थ में , प्रथम श्रेणी के जीव अपने स्वाभाव से स्वक्छंद विचरण करते है, इन्हे मिलावट और दोहरी रणनीति अपनाने से भी सख्त परहेज होता है , खुले मापदंड , खुले विचार , खुला व्यक्तित्व इनकी निशानी है , आवरण की आवश्यकता द्वितीय श्रेणी के लोगो को पड़ती है।

और सामान्य रूप से सरलता और सहजता की आध्यात्मिक नदी में स्नान करते समय जिज्ञासु को सावधान भी इन्ही द्वितीय श्रेणी से रहनेकी आवश्यकता है।

और सावधानी भी किसलिए ? सरलता की इस राह पे कोई सरल से क्या ले जायेगा ! वो निर्णय आपको करना है की क्या बचाना है और क्या संवरना और सहेजना है। साधारतः इस मार्ग पे खोने को कुछ बचता ही नहीं , और यदि कुछ सांसारिक दृष्टि से बहुमूल्य है तो उसको पहले ही छोड़ देना होता है। समस्या भी यही से शुरू होती है , व्यवसायी को तो जो चाहिए सरल साधक पहले ही छोड़ चूका है , ऐसे साधक को यहाँ पनाह नहीं मिलेगी। यही सबसे बड़ा मापदंड है। इसका एक अर्थ और भी है , आपकी राहें ही आपको आपकी मंजिल तक ले जाएँगी। व्यर्थ की उलझन बढ़ाना सही नहीं। क्यूंकि जो आपके योग्य नहीं या आप जिसके योग्य नहीं , न तो आप उसको स्वीकार कर पाएंगे , न ही वो आपको , तो समस्या ही खत्म हो गयी।

दोनों चुम्बक के दो सिरे .... जहाँ उचित रूप से ..... बिना प्रयोजन और प्रयास मिल गए , बस वही सही रास्ता है , और सहज स्वीकारोक्ति भी वहीँ है ..... वहीं प्रभु / प्रारब्ध की इक्षा। 

Photo: ( यहाँ वो विषय  लिया गया है  जो जनसामान्य की  सामान्य  वार्ता का विषय  रहता है , मंथन दवरा विषय को   समझने की चेष्टा की गयी है )

आध्यात्मिकता एक शक्ति  या  कायरता का आवरण:
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एक   आध्यात्मिक  व्यक्ति के गुण  हैं  शांत , मौन , मितभाषी  , सहज स्वीकार  का भाव ,  सहनशीलता  , इक्छाओं अनिक्छाओं  से परे ... जो उपलब्ध  है ... समग्र  जीवन  मौज में जीना।  

तो क्या , ये  इन सब गुणों के विपरीत जो सांसारिकता के एक ही धागे के दूजे छोर का   खिंचाव का परिणाम है ,  दरअसल  किसी निष्कर्ष को एकदम से देना अति कठिन है , क्युकी  यहाँ  भी  मन  शामिल है  और इस मन के  शामिल होते ही  रंग  अपने आप घुलने लगते है।  चलिए चर्चा करते है  , समझते है  वास्तविकता  आखिर क्या है ? एक तो मोटी मोटी  परिस्थति है  जिसको समझना   बहुत सरल है , की प्रारब्ध  की इक्षा  से .... जन्म  से ही  रुझान  जीव में  जागृत  रहता  है , और वे लोग भी  आते है जिनके जीवन में प्रारब्ध की इक्षानुसार घटना क्रम जीवन  के   मध्यांतर  में घटित होते है ...  इनकी राहें , मंजिल  और रुझान  उसी तरफ  इनको धक्का देते है , इनके जीवन में उपलब्ध  घटनाये , मित्र , प्रेमी ,  माँ पिता  सभी इनके  मार्ग में सहायक होते है ,  दूसरी तरफ  इसी राह  पे वो लोग भी  आते है  जो  हताशा  को सहन नहीं कर पाते  तो छाते की तरह  अध्यात्म  की छाया  स्वीकार करते है।  तीसरे प्रकार के वो लोग है , जिनका  दिमाग व्यावसायिक है  और जिनकी  रूचि में ये विषय आता है।  जिनको ये विषय समझ आता है  रुचिकर भी लगता है  और  धनोपार्जन का अच्छा साधन भी लगता है , क्यूंकि इस धारा में  सहजता और सरलता  की  नदी गंगा सामान  अनवरत बहती है , ऐसे में लोग  सहज  विश्वास करते भी है और पाते भी है। चौथा प्रकार उन लोगो का है  जो  रूचि का  पीछा करते है और इसी अर्थ में जीवन यापन करते रहते है  ,  और मगन  रहते है , पांचवा  प्रकार  ऐसे लोगो का  है जो पीछा करते है फूल  का सुगंध  के लिए   थोड़ी देर के लिए  फिर वापिस लौट  जाते है  अपनी गुफा में , इतने सारे प्रकार जब होंगे  तो रंग तो बिखरेंगे ही , सुगंध भी अलग अलग होगी।  

प्रथम को छोड़ कर विभिन्न व्यक्तियों  ये सब प्रकार  सिर्फ सतही स्तर पे जीवित रहते है , वास्तविक  अर्थ में  अध्यात्म  एक जीवन है  आत्मा की दिशा है , जिस प्रकार  संसार में विचरण करे के  अपने स्वाभाव होते है उसी प्रकार अध्यात्म में  विचरण करने के भी अपने स्वाभाव होते है , जिस प्रकार संसारी  बिना  गुणधर्म धारण किये  आध्यात्मिक नहीं बन सकता , उसी प्रकार आध्यात्मिक को भी  संसारित्व  में ढलने के लिए  सांसारिकता के गुणधर्म  धारण करने ही होते है। बिना  गुणधर्म धारण किये  कोई न  वास्तविक  आध्यात्मिक हो सकता है न ही  आध्यात्मिक  संसारी  हो सकता है।  ये दो  व्यक्तित्व है अलग अलग  दो नदी की धारा के समान है जिनमे  सांसारिक तो फिर भी आध्यात्मिक के पास कुछ पाने की इक्षा से जा सकता है , आध्यात्मिक का जीवन स्वतंत्र होता है  इसलिए उसका मेल भी सांसारिकता से  नहीं हो पाता .....   यहाँ व्यवसायी एक ऐसी मानवीय मानसिक प्रजाति है  जो आलू  की तरह  किसी भी सब्जी  में    पड़  सकती है  या  पड़ जाती है।  ये कही भी किसी भी  गुणधर्म  में देखे जा सकते है , राजनीती ,  धर्मनीति , व्यवसायनीति ,  गृहस्थ  , और सन्यासी ,  क्यूंकि  इनको मात्र चोला बदलना पड़ता है  और ये उस  समूह में घुस के  अपना स्वार्थ सिद्ध करते ही रहते है।  

ये जो कायरता के आवरण की बात है  ये  उनके लिए जो प्रथम श्रेणी के  गुणधर्म वाले नहीं दूजे  प्रकार के होते है , उनपे सिद्ध होती है , प्रथम श्रेणी  के  गुणों  से युक्त व्यक्ति को आवरण की आवशयकता ही नहीं पड़ती , न राजनीती में  न धर्मनीति में  , न व्यवसाय नीति में  न गृहस्थी में  और न सन्यस्थ में , प्रथम श्रेणी के जीव अपने स्वाभाव से  स्वक्छंद विचरण करते है, इन्हे  मिलावट  और दोहरी रणनीति अपनाने से भी सख्त परहेज  होता है , खुले मापदंड , खुले विचार , खुला व्यक्तित्व  इनकी निशानी है ,  आवरण  की आवश्यकता  द्वितीय  श्रेणी के लोगो को पड़ती है।  

और सामान्य रूप से सरलता और सहजता की आध्यात्मिक नदी  में स्नान करते समय जिज्ञासु को सावधान भी इन्ही  द्वितीय  श्रेणी से रहनेकी आवश्यकता है।  

और सावधानी भी  किसलिए ? सरलता की इस राह पे कोई  सरल से क्या ले जायेगा ! वो निर्णय आपको करना है  की क्या बचाना है और क्या  संवरना  और सहेजना है।   साधारतः   इस मार्ग पे खोने को कुछ बचता ही नहीं ,  और यदि कुछ सांसारिक दृष्टि  से  बहुमूल्य है  तो उसको पहले ही छोड़ देना होता है।   समस्या भी यही से शुरू होती है , व्यवसायी को तो जो चाहिए  सरल साधक पहले ही छोड़ चूका है , ऐसे साधक को यहाँ पनाह नहीं मिलेगी।   यही सबसे बड़ा मापदंड है।  इसका  एक अर्थ और भी है , आपकी  राहें ही आपको आपकी मंजिल तक ले जाएँगी।  व्यर्थ  की उलझन  बढ़ाना सही नहीं।  क्यूंकि जो आपके योग्य नहीं  या आप जिसके योग्य नहीं  , न तो आप उसको स्वीकार कर पाएंगे  , न ही वो आपको , तो समस्या ही  खत्म हो गयी।  

दोनों  चुम्बक के दो सिरे ....  जहाँ उचित रूप से ..... बिना प्रयोजन और प्रयास मिल गए ,   बस वही  सही रास्ता है ,  और सहज स्वीकारोक्ति  भी वहीँ है ..... वहीं प्रभु  / प्रारब्ध  की इक्षा। 

नदी  की उपमा  समग्र जीवन से दी जाती है  इसीलिए , और  एक  जीवन   बहाव का दूजा  नाम  है ,  जल  बहता चलता है  , तिनके  इधर_उधर  हिलते_डुलते ... प्रवाह के साथ ... मिलते_बिछड़ते  बहते जाते है।  गति होना  , प्रवाह होना ,  बहना ही जिंदगी  की निशानी है।  

असीम शुभकामनों के साथ प्रणाम




नदी की उपमा समग्र जीवन से दी जाती है इसीलिए , और एक जीवन बहाव का दूजा नाम है , जल बहता चलता है , तिनके इधर_उधर हिलते_डुलते ... प्रवाह के साथ ... मिलते_बिछड़ते बहते जाते है। गति होना , प्रवाह होना , बहना ही जिंदगी की निशानी है।

असीम शुभकामनों के साथ प्रणाम

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