Wednesday, 23 April 2014

हार-जीत का भ्रम (note )

हार शब्द याद दिलाता है पंक्तियों की " मन के हारे हार है मन के जीते जीत " मन हारा जग हारा , मन जीता जग जीता , मन गिरा तो तन गिरा , मन जगा तो जग उठा , एकमात्र इस मन में संसार समाया है .......

हारे तो आखिर हारे क्या ? जीते तो आखिर जीते क्या ? मंथन है ह्रदय का , मथेंगे तो नग मिलंगे ! प्रेम में हार के भी जीत है , और प्रेम की जीत में तो जीत है ही , अहंकार में जीत के भी हार है और हार के जीत। 

हार-जीत का भ्रम मन की माया वस्तुतः संसार में खोने को कुछ नहीं न ही पाने को है। प्रकृति प्रदत्त जो है वो मात्र उपयोग के लिए है , जितना उपयोग हो गया , उतना ही स्वारथ बाकि सब निरर्थक ....

समय की वैतरणी नदी का बहाव है , और तिनके से हम बहते जाते है , किस बात का घमंड करे ? किस बात का अभिमान ? पैसे का और जमीं का घमंड होता है और ज्ञान और कला का अहंकार , पर गौर से देखने पे पाते है न ही ज्ञान और कला और न ही धन और जमीं , कुछ भी होते हुए भी नहीं होता , सब उपलब्धियों का नाता सिर्फ शरीर से है , शरीर छूटा सारी कलाएं सारे उपलब्धियों के झंडे एक साथ दफ़न हो जाते है या अग्नि में जल के खाक हो जाते है , रह जाते है तो सिर्फ छाया के स्मृतिचिन्ह ; वो भी उनके जिन्होंने अपने जीवन काल में कुछ अनूठे प्रयोग किये। 

अपने-अपने सत्य को समय रहते पहचान लेना ही किसी के लिए भी ; बुद्धिमानी है। 

जीव के अपने आत्मिक स्वस्थ्य के लिए जीवन का मर्म समझना और लौकिक पर्दो का उठना अति आवश्यक है। 

ध्यान कीजिए परम सत्ता का , प्राथना कीजिये सारे अँधेरे दूर हो !


प्रश्न कीजिये स्वयं से .... मैं कौन ? ........... मेरा क्या ? 



राह दिखाने को उस रौशनी की एक किरण ही पर्याप्त है , 



जीवन वो नहीं जो हम जी रहे है , ये तो मूर्छा है 



जिसमे मारकाट है , व्यापार है ,अतिक्रमण है 



मद है , लोभ है , अहंकार है , रुदन है .......



जागृत करुणामय है प्रेममय है 

जागृत कर्तव्ययुक्त है 

जागृत समर्पित है 

सत्य का दीप

जला जीवन में 

जागृत जीवित 

रहता तनमन में !

वो मदिरा अच्छी वो मद अच्छा जो उसका नाच नचाये , वो लोभ अच्छा जो उसको चाहे , वो व्यापर अच्छा जिसमे छाया हो उसी की , अतिक्रमण भागते बे_लगाम अश्वों का हो तो सुन्दर , रुदन भी अच्छा जो प्रिय की प्यास बढ़ाये , दृष्टि अच्छी तो हर भाव अच्छा। 


Photo: हार-जीत का भ्रम :
----------------------

हार शब्द  याद दिलाता  है पंक्तियों की " मन के हारे हार है मन के जीते जीत " मन हारा जग हारा , मन जीता जग जीता , मन  गिरा  तो तन गिरा  , मन जगा तो जग उठा , एकमात्र  इस मन में संसार समाया है .......

 हारे  तो आखिर  हारे  क्या ?  जीते तो आखिर जीते क्या ?  मंथन है  ह्रदय का , मथेंगे  तो नग मिलंगे !  प्रेम में हार के  भी जीत है , और प्रेम की जीत में तो जीत है ही , अहंकार में  जीत  के भी हार है  और हार के जीत।  

हार-जीत का भ्रम मन की माया वस्तुतः  संसार में खोने को कुछ नहीं न ही पाने को है। प्रकृति प्रदत्त   जो है  वो मात्र  उपयोग के लिए है , जितना उपयोग हो गया , उतना ही स्वारथ बाकि सब निरर्थक ....

समय की  वैतरणी नदी का बहाव है , और तिनके से हम  बहते जाते है , किस बात का घमंड करे ?  किस बात का अभिमान ?  पैसे का  और जमीं का घमंड होता है  और ज्ञान और कला  का अहंकार , पर गौर से देखने पे पाते है न ही  ज्ञान और कला और न  ही धन  और जमीं  ,  कुछ भी  होते हुए भी नहीं होता , सब उपलब्धियों का नाता सिर्फ शरीर से है , शरीर छूटा  सारी कलाएं  सारे  उपलब्धियों के झंडे एक साथ दफ़न हो जाते है या अग्नि में जल के खाक हो जाते है , रह जाते है तो सिर्फ  छाया के स्मृतिचिन्ह ; वो भी उनके  जिन्होंने अपने जीवन काल में कुछ अनूठे प्रयोग किये।  

अपने-अपने सत्य को समय रहते पहचान लेना ही किसी के लिए भी ; बुद्धिमानी  है। 

जीव के  अपने आत्मिक  स्वस्थ्य  के लिए  जीवन का मर्म समझना  और  लौकिक  पर्दो का उठना  अति आवश्यक है। 

ध्यान कीजिए परम सत्ता का , प्राथना कीजिये  सारे अँधेरे  दूर हो !

प्रश्न  कीजिये  स्वयं से ....  मैं कौन ? ........... मेरा क्या ? 

राह दिखाने को उस रौशनी  की एक किरण ही पर्याप्त है , 

जीवन वो नहीं जो हम जी रहे है , ये तो मूर्छा है 

जिसमे मारकाट है , व्यापार है ,अतिक्रमण है 

मद है , लोभ है , अहंकार है , रुदन है .......

जागृत  करुणामय  है प्रेममय है 
जागृत  कर्तव्ययुक्त है 
जागृत समर्पित है 
सत्य  का  दीप
जला  जीवन में 
जागृत  जीवित 
रहता तनमन में !

वो मदिरा  अच्छी  वो मद अच्छा जो उसका नाच नचाये  , वो लोभ अच्छा  जो उसको चाहे , वो  व्यापर अच्छा जिसमे छाया हो उसी की , अतिक्रमण  भागते बे_लगाम  अश्वों का हो तो सुन्दर , रुदन भी अच्छा जो  प्रिय की प्यास बढ़ाये ,  दृष्टि अच्छी तो हर भाव अच्छा।  

अभी भी समय  है ,भाग्यशाली है  हम  अभी  साँसे  चल रही है , परम की कृपा  और अवसर दोनों ही मौजूद है। 

ॐ ॐ ॐ

अभी भी समय है ,भाग्यशाली है हम अभी साँसे चल रही है , परम की कृपा और अवसर दोनों ही मौजूद है। 

ॐ ॐ ॐ

No comments:

Post a Comment