Friday 18 April 2014

कुछ महत्त्व पूर्ण बातें , बीज रूप में :-

 मौन और संयम तप है , इस में विश्वास रखे। ये कायर का हथियार नहीं सच्चे साथी है , ये आपको अवसर देते है पुनर्विचार का। 

* सबको प्रेम करें सबका आभार , इस श्रृंखला में सबसे पहले स्वयं को आभारदे और स्वयं से प्रेम करें।

* बाह्य दृष्टि के साथ अंतर्दृष्टि का भी विकास आवश्यक है।

* ध्यान सच्चा साथी है।

* सत्संगति का मूल अर्थ सत+ निः + संगती से है।

* भाषागत या फिर विषयगत शब्दों की वैधानिक व्याख्या या विवेचना में उलझना आत्मिक स्वस्थ्य के लिए हानिकारक है। मूल को ग्रहण करें। 'सार सार को गहि रहे थोथा देहि उड़ाय'

* सु_निर्णय के लिए जीव का आनंद पूर्ण स्थति में होना आवश्यक है , इसके लिए दौड़ते भागते निरंकुश मस्तिष्क रुपी अश्व की कमान थामना ही है।

* किसी विषय को सुनते ही झट से अपना मूल्यांकन / निर्णय न दे इस आदत को यथा शीघ्र बदल डाले।

* शरीर और मन में तादात्म्य बनाये , क्युंकि जो शरीर की चाल और आवश्यकता है वो ही मन की भी , दोनों एक दूसरे के प्रतिरूप है... पूरक है , यिन और यांग के समान।

* इन्द्रिओं को समझे आत्मा मंथन द्वारा , आत्मा को जाने इन्द्रियों द्वारा , दोनों एक दूसरे के लिए द्वार है।

* अकेले भी या भीड़ में भी एकांत भाव उपयोगी है और अकेलापन दुखदायी है अकेले और भीड़ में भी।

* प्रकृति रोज नयी है , बिना भेद भाव रोज पुनः पुनः अवसर के साथ आपके जागने की प्रतीक्षा में रत है।

* स्वयं से बेहतर साथी कोई नहीं , अपने साथी स्वयं बनिए

* करुणा और प्रेम सुगंध के सामान है , फूल खिलते ही सुगंध वातावरण को सुवासित करेगी ही।

* निरक्षर से बड़ा अक्षर ज्ञान , अक्षर ज्ञान से बड़ा वैषयिक ज्ञान और वैषयिक ज्ञान से बड़ा अनुभव , जाना हुआ ज्ञान समूह में गेंद की तरह उछाल उछाल के खेलने के काम आता है। अनुभव व्यक्तित्व से झलकता है , उसको उछाला नहीं जा सकता।

इन सबको साधने के लिए शुरुआत में ह्रदय में अलार्म क्लॉक सेट करें। जैसे ही भाव बने अलार्म बज पड़े। बाद में यही अभ्यास में आ जायेगा। 


Photo: कुछ महत्त्व पूर्ण  बातें , बीज रूप में :-

* मौन  और  संयम तप है ,   इस में विश्वास रखे। ये  कायर का हथियार  नहीं सच्चे साथी है , ये आपको अवसर देते है पुनर्विचार का। 

*  सबको प्रेम करें  सबका आभार , इस श्रृंखला में सबसे पहले स्वयं को आभार दे  और स्वयं से प्रेम करें।  

* बाह्य  दृष्टि के साथ अंतर्दृष्टि का भी विकास  आवश्यक है।   

* ध्यान  सच्चा साथी  है।  

* सत्संगति  का मूल  अर्थ सत+ निः + संगती  से है। 
 
* भाषागत  या फिर विषयगत  शब्दों की  वैधानिक व्याख्या या विवेचना में उलझना   आत्मिक स्वस्थ्य के लिए हानिकारक है। मूल को ग्रहण करें।  'सार सार को गहि रहे थोथा देहि उड़ाय' 

* सु_निर्णय के लिए जीव का आनंद पूर्ण स्थति में होना आवश्यक है , इसके लिए दौड़ते भागते निरंकुश मस्तिष्क  रुपी  अश्व की कमान थामना ही है।  

* किसी विषय को सुनते ही  झट से  अपना  मूल्यांकन / निर्णय  न दे  इस आदत को  यथा शीघ्र बदल डाले।  

* शरीर    और   मन में  तादात्म्य  बनाये ,  क्युंकि जो शरीर  की चाल और आवश्यकता  है वो ही मन की भी , दोनों एक दूसरे के प्रतिरूप है...  पूरक है  , यिन और यांग के समान। 

* इन्द्रिओं को  समझे  आत्मा मंथन द्वारा , आत्मा को जाने इन्द्रियों द्वारा , दोनों एक दूसरे के लिए द्वार है।  

* अकेले भी या भीड़ में भी एकांत भाव   उपयोगी है और  अकेलापन दुखदायी है  अकेले और भीड़ में भी। 

* प्रकृति रोज नयी है , बिना भेद भाव रोज पुनः  पुनः  अवसर के साथ  आपके जागने  की प्रतीक्षा में रत  है।  

*  स्वयं  से बेहतर  साथी कोई नहीं , अपने साथी स्वयं बनिए 

*  करुणा और प्रेम  सुगंध के सामान है , फूल खिलते ही  सुगंध  वातावरण को सुवासित करेगी ही। 

* निरक्षर से बड़ा  अक्षर  ज्ञान , अक्षर ज्ञान से बड़ा  वैषयिक  ज्ञान  और  वैषयिक ज्ञान से बड़ा  अनुभव   , जाना हुआ   ज्ञान समूह में   गेंद की तरह  उछाल उछाल के  खेलने के काम आता है।   अनुभव  व्यक्तित्व से झलकता है , उसको उछाला नहीं जा सकता। 

इन सबको साधने के लिए  शुरुआत में  ह्रदय में  अलार्म क्लॉक  सेट  करें।  जैसे ही भाव बने  अलार्म बज पड़े।  बाद में यही अभ्यास में आ जायेगा।  

"माला फेरत जग भय गया न मन का फेर 
करके मनका डाल के मन का मनका फेर "

ॐ ॐ ॐ



"माला फेरत जग भय गया न मन का फेर


करके मनका डाल के मन का मनका फेर "


ॐ ॐ ॐ

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