मौन और संयम तप है , इस में विश्वास रखे। ये कायर का हथियार नहीं सच्चे साथी है , ये आपको अवसर देते है पुनर्विचार का।
* सबको प्रेम करें सबका आभार , इस श्रृंखला में सबसे पहले स्वयं को आभारदे और स्वयं से प्रेम करें।
* बाह्य दृष्टि के साथ अंतर्दृष्टि का भी विकास आवश्यक है।
* ध्यान सच्चा साथी है।
* सत्संगति का मूल अर्थ सत+ निः + संगती से है।
* भाषागत या फिर विषयगत शब्दों की वैधानिक व्याख्या या विवेचना में उलझना आत्मिक स्वस्थ्य के लिए हानिकारक है। मूल को ग्रहण करें। 'सार सार को गहि रहे थोथा देहि उड़ाय'
* सु_निर्णय के लिए जीव का आनंद पूर्ण स्थति में होना आवश्यक है , इसके लिए दौड़ते भागते निरंकुश मस्तिष्क रुपी अश्व की कमान थामना ही है।
* किसी विषय को सुनते ही झट से अपना मूल्यांकन / निर्णय न दे इस आदत को यथा शीघ्र बदल डाले।
* शरीर और मन में तादात्म्य बनाये , क्युंकि जो शरीर की चाल और आवश्यकता है वो ही मन की भी , दोनों एक दूसरे के प्रतिरूप है... पूरक है , यिन और यांग के समान।
* इन्द्रिओं को समझे आत्मा मंथन द्वारा , आत्मा को जाने इन्द्रियों द्वारा , दोनों एक दूसरे के लिए द्वार है।
* अकेले भी या भीड़ में भी एकांत भाव उपयोगी है और अकेलापन दुखदायी है अकेले और भीड़ में भी।
* प्रकृति रोज नयी है , बिना भेद भाव रोज पुनः पुनः अवसर के साथ आपके जागने की प्रतीक्षा में रत है।
* स्वयं से बेहतर साथी कोई नहीं , अपने साथी स्वयं बनिए
* करुणा और प्रेम सुगंध के सामान है , फूल खिलते ही सुगंध वातावरण को सुवासित करेगी ही।
* निरक्षर से बड़ा अक्षर ज्ञान , अक्षर ज्ञान से बड़ा वैषयिक ज्ञान और वैषयिक ज्ञान से बड़ा अनुभव , जाना हुआ ज्ञान समूह में गेंद की तरह उछाल उछाल के खेलने के काम आता है। अनुभव व्यक्तित्व से झलकता है , उसको उछाला नहीं जा सकता।
इन सबको साधने के लिए शुरुआत में ह्रदय में अलार्म क्लॉक सेट करें। जैसे ही भाव बने अलार्म बज पड़े। बाद में यही अभ्यास में आ जायेगा।
"माला फेरत जग भय गया न मन का फेर
करके मनका डाल के मन का मनका फेर "
ॐ ॐ ॐ
* सबको प्रेम करें सबका आभार , इस श्रृंखला में सबसे पहले स्वयं को आभारदे और स्वयं से प्रेम करें।
* बाह्य दृष्टि के साथ अंतर्दृष्टि का भी विकास आवश्यक है।
* ध्यान सच्चा साथी है।
* सत्संगति का मूल अर्थ सत+ निः + संगती से है।
* भाषागत या फिर विषयगत शब्दों की वैधानिक व्याख्या या विवेचना में उलझना आत्मिक स्वस्थ्य के लिए हानिकारक है। मूल को ग्रहण करें। 'सार सार को गहि रहे थोथा देहि उड़ाय'
* सु_निर्णय के लिए जीव का आनंद पूर्ण स्थति में होना आवश्यक है , इसके लिए दौड़ते भागते निरंकुश मस्तिष्क रुपी अश्व की कमान थामना ही है।
* किसी विषय को सुनते ही झट से अपना मूल्यांकन / निर्णय न दे इस आदत को यथा शीघ्र बदल डाले।
* शरीर और मन में तादात्म्य बनाये , क्युंकि जो शरीर की चाल और आवश्यकता है वो ही मन की भी , दोनों एक दूसरे के प्रतिरूप है... पूरक है , यिन और यांग के समान।
* इन्द्रिओं को समझे आत्मा मंथन द्वारा , आत्मा को जाने इन्द्रियों द्वारा , दोनों एक दूसरे के लिए द्वार है।
* अकेले भी या भीड़ में भी एकांत भाव उपयोगी है और अकेलापन दुखदायी है अकेले और भीड़ में भी।
* प्रकृति रोज नयी है , बिना भेद भाव रोज पुनः पुनः अवसर के साथ आपके जागने की प्रतीक्षा में रत है।
* स्वयं से बेहतर साथी कोई नहीं , अपने साथी स्वयं बनिए
* करुणा और प्रेम सुगंध के सामान है , फूल खिलते ही सुगंध वातावरण को सुवासित करेगी ही।
* निरक्षर से बड़ा अक्षर ज्ञान , अक्षर ज्ञान से बड़ा वैषयिक ज्ञान और वैषयिक ज्ञान से बड़ा अनुभव , जाना हुआ ज्ञान समूह में गेंद की तरह उछाल उछाल के खेलने के काम आता है। अनुभव व्यक्तित्व से झलकता है , उसको उछाला नहीं जा सकता।
इन सबको साधने के लिए शुरुआत में ह्रदय में अलार्म क्लॉक सेट करें। जैसे ही भाव बने अलार्म बज पड़े। बाद में यही अभ्यास में आ जायेगा।
"माला फेरत जग भय गया न मन का फेर
करके मनका डाल के मन का मनका फेर "
ॐ ॐ ॐ
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