मुझे याद गयी ओशो की बात " आओ मैं तुम्हें मृत्यु सिखाता हूँ " । Osho says: "जीवन जैसा है, उसका निचोड़ ही तो मृत्यु के समय चेतना के समक्ष हो सकता है। मृत्यु क्या है? क्या वह जीवन की ही परिपूर्णता नहीं है? वह जीवन के विरोध में कैसे हो सकती है? वह तो उसका ही विकास है। वह तो जीवन का ही फल है। ये कल्पनाएँ काम नहीं देंगी। "
अच्छा लगा ये वाक्य जब पढ़ा , समग्रता का अनुभव हुआ , लगा जैसे बस निचोड़ यही है , बाकी सव विस्तार है , दोस्त को धन्यवाद , इतना सुन्दर और जीवंत विचार बाटने के लिए ,
मित्रों ये ध्यान सभी उन मित्रों को जरूर करना चाहिए जो भी वास्तविकता से दो चार होना चाहते है , जो भी जीवन का मर्म आत्मसात करना चाहते है , जो भी माया के प्रपंच से छुटकारा पाना चाहते है।
मृत्यु का ध्यान, जीवन के लिए ; करना ही चाहिए।
जब ये ध्यान गहराता है तो सारी वास्तविकता स्वयं ही अपना आवरण हटा के सामने सम्मुख खड़ी हो जाती है , वास्तव में .... मृत्यु से बड़ा सच कोई है ही नहीं। और मृत्यु देवी के ध्यान से बड़ा ध्यान कोई नहीं।
एक मृत्यु शय्या पे पड़ा आदमी क्या सोचता है ! एक_एक सांस जब पूरी जा भी नहीं पा रही है किसी प्रकार पूरी शक्ति का उपयोग करके भी आधी_आधी सांस उखड-उखड के ले पा रहा है , सब आस पास खड़े है या के अकेला है मृत्यु शय्या पे , क्यूंकि सबके जीवन में मृत्यु एक ही तरह से हो संभव नहीं , जिस प्रकार से जितने जीवन है उसी प्रकार से उतनी मृत्यु है। सारा जीवन उसके आगे घूम रहा होता है , अच्छा कर्म भी , और बुरा कृत्य भी , भला भी और बुरा भी , ऐसा भला जिसको सिर्फ वो ही जानता है और ऐसा बुरा भी जिसको सिर्फ वो ही जानता है , ऐसा हर कृत्य नंगा उपस्थित हो जाता है।कर्म ...... कृत्य रूप हो अथवा विचार रूप हो, पूरा हिसाब मांगता है हर अच्छे और बुरे कृत्य का ...... आजीवन की गयी कल्पनाए भी नंगी होती है , वास्तविकताएं भी नग्न खड़ी होती है. मृत्यु से बढ़ा साक्षात्कार कोई और नहीं।
कर्म भी नंगा और धरम भी नंगा होता है और अध्यात्म भी नंगा , सब कुछ वास्तविक और प्रत्यक्ष।
इसीलिए मित्रों , इस ध्यान से बड़ा और कोई ध्यान हो ही नहीं सकता , ये कोई कल्पना नहीं देता , वरन सारी कल्पनायें छीन लेता है , मित्रों सिर्फ साक्षी भाव जगाना है , साक्षी भाव के साथ मरणासन्न के शरीर में जा के , उसके ह्रदय और बुद्धि की यात्रा करनी है।
पल पल एक एक सांस बिना आहट के धीरे धीरे पास आती मृत्यु को देखता ये मरणासन्न वृद्ध हो सकता है , आखिरी सांस लेता हुआ असाध्य रोग का रोगी हो सकता है , ये मरणासन्न , ह्रदय आघात से पीड़ित हो सकता है , या सड़क दुर्घटना का शिकार , आखिरी प्रयास रत नदी में डूब रहा कोई प्रिय हो सकता है , या फिर अपराधिक हादसे का शिकार हो सकता है , मृत्यु का कारन कोई भी हो सकता है। सत्य ये है की वो इस वक्त बेसहारा , आखिरी हिचकियाँ ले रहा है, क्या विचार उठ रहा होगा ? क्या सोच रहा होगा ? इसके पहले मृत्यु देवता मेहरबान हो के बेहोश करदे , जरा उसके बुद्धि और ह्रदय की यात्रा कीजिये।
( हो सकता है बिना तैयारी के ध्यान में उतरते वख्त आपको घबराहट हो सकती है , होने दीजिये , वो घबराहट आपको नहीं आपकी बुद्धि को हो रही है , एक बार में दो बार में फल हासिल हो ऐसी गिनती कोई नहीं , बस ध्यान टूटना नहीं चाहिए जब तक सवालों के जवाब हासिल न हो जाये )
आपके आधे से ज्यादा संशय स्वयं समाप्त हो जायेंगे ....
वास्तव में आजीवन संजोयी कल्पनायें , आपके दवरा अपनी बुद्धि से या फिर दुसरो की बुद्धि से , धर्म से , अध्यात्म से कहीं से भी , कल्पनायें आपके काम नहीं आएँगी ! सिर्फ और सिर्फ वास्तविकता का धागा ही बचेगा !!
अच्छा लगा ये वाक्य जब पढ़ा , समग्रता का अनुभव हुआ , लगा जैसे बस निचोड़ यही है , बाकी सव विस्तार है , दोस्त को धन्यवाद , इतना सुन्दर और जीवंत विचार बाटने के लिए ,
मित्रों ये ध्यान सभी उन मित्रों को जरूर करना चाहिए जो भी वास्तविकता से दो चार होना चाहते है , जो भी जीवन का मर्म आत्मसात करना चाहते है , जो भी माया के प्रपंच से छुटकारा पाना चाहते है।
मृत्यु का ध्यान, जीवन के लिए ; करना ही चाहिए।
जब ये ध्यान गहराता है तो सारी वास्तविकता स्वयं ही अपना आवरण हटा के सामने सम्मुख खड़ी हो जाती है , वास्तव में .... मृत्यु से बड़ा सच कोई है ही नहीं। और मृत्यु देवी के ध्यान से बड़ा ध्यान कोई नहीं।
एक मृत्यु शय्या पे पड़ा आदमी क्या सोचता है ! एक_एक सांस जब पूरी जा भी नहीं पा रही है किसी प्रकार पूरी शक्ति का उपयोग करके भी आधी_आधी सांस उखड-उखड के ले पा रहा है , सब आस पास खड़े है या के अकेला है मृत्यु शय्या पे , क्यूंकि सबके जीवन में मृत्यु एक ही तरह से हो संभव नहीं , जिस प्रकार से जितने जीवन है उसी प्रकार से उतनी मृत्यु है। सारा जीवन उसके आगे घूम रहा होता है , अच्छा कर्म भी , और बुरा कृत्य भी , भला भी और बुरा भी , ऐसा भला जिसको सिर्फ वो ही जानता है और ऐसा बुरा भी जिसको सिर्फ वो ही जानता है , ऐसा हर कृत्य नंगा उपस्थित हो जाता है।कर्म ...... कृत्य रूप हो अथवा विचार रूप हो, पूरा हिसाब मांगता है हर अच्छे और बुरे कृत्य का ...... आजीवन की गयी कल्पनाए भी नंगी होती है , वास्तविकताएं भी नग्न खड़ी होती है. मृत्यु से बढ़ा साक्षात्कार कोई और नहीं।
कर्म भी नंगा और धरम भी नंगा होता है और अध्यात्म भी नंगा , सब कुछ वास्तविक और प्रत्यक्ष।
इसीलिए मित्रों , इस ध्यान से बड़ा और कोई ध्यान हो ही नहीं सकता , ये कोई कल्पना नहीं देता , वरन सारी कल्पनायें छीन लेता है , मित्रों सिर्फ साक्षी भाव जगाना है , साक्षी भाव के साथ मरणासन्न के शरीर में जा के , उसके ह्रदय और बुद्धि की यात्रा करनी है।
पल पल एक एक सांस बिना आहट के धीरे धीरे पास आती मृत्यु को देखता ये मरणासन्न वृद्ध हो सकता है , आखिरी सांस लेता हुआ असाध्य रोग का रोगी हो सकता है , ये मरणासन्न , ह्रदय आघात से पीड़ित हो सकता है , या सड़क दुर्घटना का शिकार , आखिरी प्रयास रत नदी में डूब रहा कोई प्रिय हो सकता है , या फिर अपराधिक हादसे का शिकार हो सकता है , मृत्यु का कारन कोई भी हो सकता है। सत्य ये है की वो इस वक्त बेसहारा , आखिरी हिचकियाँ ले रहा है, क्या विचार उठ रहा होगा ? क्या सोच रहा होगा ? इसके पहले मृत्यु देवता मेहरबान हो के बेहोश करदे , जरा उसके बुद्धि और ह्रदय की यात्रा कीजिये।
( हो सकता है बिना तैयारी के ध्यान में उतरते वख्त आपको घबराहट हो सकती है , होने दीजिये , वो घबराहट आपको नहीं आपकी बुद्धि को हो रही है , एक बार में दो बार में फल हासिल हो ऐसी गिनती कोई नहीं , बस ध्यान टूटना नहीं चाहिए जब तक सवालों के जवाब हासिल न हो जाये )
आपके आधे से ज्यादा संशय स्वयं समाप्त हो जायेंगे ....
ॐ ॐ ॐ
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