गुरु ने कहा , जब भी कोई निर्णय करना हो , जब ऐसी बेला आजाये की अब इस पार या उस पार … तो अवश्य चुनाव करना ! हर जीव स्वतंत्र है स्व - निर्णय के लिए , मृत्यु को भी यदि चुनना पड़े ....तो चुनना , परन्तु एक बात का विचार आवश्यक है , की निर्णय की उस अवस्था में अंदर की स्थिति अल्हादपूर्ण होनी चाहिए और वैचारिक स्पष्टता की होनी चाहिए , भावनायें आज ये कहती है कल वो कहती है , बदलती रहती है , इसलिए इन बदलती भावनाओ के आधार पे आप जीवन के बड़े निर्णय नहीं कर सकते , क्यूंकि चुनाव के क्षण आपके लिए अगली यात्रा का द्वार है , जो अधोगामी भी हो सकती है और उर्ध्वगामी भी। परन्तु यदि आप अल्हादपूर्ण स्थति में स्पष्टता के साथ किये गए निर्णय द्वारा चयन का भी फल आपके लिए शुभ होगा ...
http://sadhguru.podomatic.com/entry/2014-04-01T06_56_13-07_00
ध्यान दीजियेगा !! " पल_पल बदलती छद्म भावनाए चाहे कितनी भी ताकतवर हों , चाहे कितना ज्वार समेटे हो , चाहे कितना आपको विचलित कर रही हों आपके महत्वपूर्ण निर्णयों के सत्कार योग्य नहीं है। "
जब भी भावनाओ का वेग आपको कोई भी निर्णय लेने को विवश करे , तो सावधान हो जाना , स्वयं को आदेश करना , कहना अभी नहीं ! पहले मुझको मेरे निर्णय लेने के सिंहासन पे बैठने तो दो , बिना उचित स्थान ग्रहण किये न तो भोजन करना उचित है न पूजा भजन और न निद्रा , उचित स्थान और परिस्थति (मानसिकस्थिति ) के आभाव में निर्णय करना तो सर्वथा अनुचित है।
No comments:
Post a Comment