पुनरावलोकन , पुनर्निरीक्षण , एक ऐसा रक्षात्मक- संरक्षण है जो स्वेक्छा से स्वयं के लिए है , कर्मों के कलात्मक योगदान में तो ये अमृतफल सदृश है इसके अलावा भी किसी भी कार्य संपादन के दौरान ये कर्म को बेहतर दिशा गति देने में सहायक होते है , आप भी इनका उपयोग कर सकते है। इसका दूसरा नाम बुद्धिमानी भी है , पर मात्रा का निर्धारण अवश्य करे क्यूंकि औषधि की मात्रा का अनुपात में होना आवशयक है। कम या ज्यादा मात्रा घातक परिणाम भी दे सकते है।
किसी भी दिशा में किसी भी कर्म में जो जीवन यात्रा से जुड़ा है , मात्रा के सन्तुलन में ये सहायक_उत्प्रेरक है , अध्यात्म में इसका अद्वितीय उपयोग है , संसार में लौकिक कर्तव्यों में भी इसका उपयोग है , तथा जब भी कहीं कोई आपके जीवन की गति में कोई कंकड़ या रोड़ा आता लगे (रूकावट ) इन गुणों का उपयोग है , मध्यांतर ( मध्य का विश्राम ) शब्द अति महत्त्व पूर्ण है। कर्म की किसी भी अवस्था में , योजना में , कार्यशैली में , या के आयु में , मध्यान्तर का मतलब आधा खुला और आधा बंद। ये समय उचित है , पुनरावलोकन और पुनर्निरीक्षण के लिए।
यदि आप कर्ता है ऐसा मानते है , योजना बनाते है , आप भी अपने रुके हुए पलों का , या फिर दो अवधि के मध्य का , या फिर उचित परिणाम न मिल पाने के कारन का , अथवा आयु के मध्यान्तर का निरिक्षण और अवलोकन करे , और पुनः उचित दिशा की और कदम बढ़ाएं।
पुनरावलोकन , पुनर्निरीक्षण सिर्फ गुण भाव रूप है , अच्छे या बुरे से इनका सम्बन्ध नहीं ये भी एक ऐसा मध्य बिंदु है , जहाँ से भाव अनुसार योजनाये बनती है , जो सिर्फ फलित होती है , भाव के अनुसार , उदाहरण के लिए , यदि कोई साधु (सज्जन ) ये भाव साधता है तो उसके अंदर जो पुष्प खिलता है उसकी सुगंध फैलती है , और यदि यही भाव कोई गलत भाव से साधता है , तो परिणाम इसमें भी मिलते है , किन्तु आस पास का वातावरण दुर्गन्ध से भरता है।
इनका प्रारब्ध से भी ज्यादा खास सरोकार नहीं , ये हमारी अपनी चेतना यानि की मन की उपज है, जिसकी प्रेरणा स्वयं के अंदर से मिलती है , स्व _प्रकृति इनको गति और दिशा देती है , इसी लिए ये अच्छे और बुरे से ज्यादा मन से निर्देशित है ; परिणाम स्वरुप फल मिलते है। इनका कार्य किये गए संकल्प को वञ्छित दिशा में धक्का देना मात्र है। और " पुनः " शब्द एक बार फिर योजनाओ को उचित और अनुचित की दिशा में खटखटाने का कार्य करता है। अपवाद स्वरुप ये मन को भी उचित दिशा में मोड़ने का कार्य करती है कभी कभी कर्म और सोच की दिशा को यु टर्न भी इन्ही से मिलता है ,
आपको भी यदि अपने कार्य और संकल्प बाधित या अटके हुए परिणाम वाले लग रहे है , तो इनका उपयोग कीजिये। परन्तु स्वाभाविक जीवन के बहाव में आप स्वयं बाधा मत बनियेगा , क्यूंकि उस बहाव को रोकना आपके बस में नहीं।
वो बहाव ही आपका प्रारब्ध है।
Nothing is actually affecting you when you just observe, when you don’t say, ‘This should not be.’
Pay attention to this wonderful power within you that simply observes without judgment, intention and attachment.
Feel that space and peace.
Give it a chance.
~ Mooji
किसी भी दिशा में किसी भी कर्म में जो जीवन यात्रा से जुड़ा है , मात्रा के सन्तुलन में ये सहायक_उत्प्रेरक है , अध्यात्म में इसका अद्वितीय उपयोग है , संसार में लौकिक कर्तव्यों में भी इसका उपयोग है , तथा जब भी कहीं कोई आपके जीवन की गति में कोई कंकड़ या रोड़ा आता लगे (रूकावट ) इन गुणों का उपयोग है , मध्यांतर ( मध्य का विश्राम ) शब्द अति महत्त्व पूर्ण है। कर्म की किसी भी अवस्था में , योजना में , कार्यशैली में , या के आयु में , मध्यान्तर का मतलब आधा खुला और आधा बंद। ये समय उचित है , पुनरावलोकन और पुनर्निरीक्षण के लिए।
यदि आप कर्ता है ऐसा मानते है , योजना बनाते है , आप भी अपने रुके हुए पलों का , या फिर दो अवधि के मध्य का , या फिर उचित परिणाम न मिल पाने के कारन का , अथवा आयु के मध्यान्तर का निरिक्षण और अवलोकन करे , और पुनः उचित दिशा की और कदम बढ़ाएं।
पुनरावलोकन , पुनर्निरीक्षण सिर्फ गुण भाव रूप है , अच्छे या बुरे से इनका सम्बन्ध नहीं ये भी एक ऐसा मध्य बिंदु है , जहाँ से भाव अनुसार योजनाये बनती है , जो सिर्फ फलित होती है , भाव के अनुसार , उदाहरण के लिए , यदि कोई साधु (सज्जन ) ये भाव साधता है तो उसके अंदर जो पुष्प खिलता है उसकी सुगंध फैलती है , और यदि यही भाव कोई गलत भाव से साधता है , तो परिणाम इसमें भी मिलते है , किन्तु आस पास का वातावरण दुर्गन्ध से भरता है।
इनका प्रारब्ध से भी ज्यादा खास सरोकार नहीं , ये हमारी अपनी चेतना यानि की मन की उपज है, जिसकी प्रेरणा स्वयं के अंदर से मिलती है , स्व _प्रकृति इनको गति और दिशा देती है , इसी लिए ये अच्छे और बुरे से ज्यादा मन से निर्देशित है ; परिणाम स्वरुप फल मिलते है। इनका कार्य किये गए संकल्प को वञ्छित दिशा में धक्का देना मात्र है। और " पुनः " शब्द एक बार फिर योजनाओ को उचित और अनुचित की दिशा में खटखटाने का कार्य करता है। अपवाद स्वरुप ये मन को भी उचित दिशा में मोड़ने का कार्य करती है कभी कभी कर्म और सोच की दिशा को यु टर्न भी इन्ही से मिलता है ,
आपको भी यदि अपने कार्य और संकल्प बाधित या अटके हुए परिणाम वाले लग रहे है , तो इनका उपयोग कीजिये। परन्तु स्वाभाविक जीवन के बहाव में आप स्वयं बाधा मत बनियेगा , क्यूंकि उस बहाव को रोकना आपके बस में नहीं।
वो बहाव ही आपका प्रारब्ध है।
प्रणाम
Just see......!
Nothing is actually affecting you when you just observe, when you don’t say, ‘This should not be.’
Pay attention to this wonderful power within you that simply observes without judgment, intention and attachment.
Feel that space and peace.
Give it a chance.
~ Mooji
No comments:
Post a Comment