Monday 30 December 2013

जिंदगी के जुड़ते और बिखरते समीकरण - Note

जिंदगी के जुड़ते और बिखरते समीकरण ; अति सरल और प्रेममय :

जो मिल रहे है ऐसा नहीं की हर बात में स्वीकृति ही है या विचारों में सहमति ही है , या फिर जो बिखर रहे है , ऐसा नहीं की कोई विरोध है या मनमुटाव है , ये दोस्ती की तरंग भी अजब है , है तो है , नहीं है तो नहीं है .... इसका कोई दूसरा स्पष्टीकरण है ही नहीं ......बस एक लहर उठी … उठी ....... कुछ वख्त चली और बस उसका वक्त पूरा हुआ इतना ही …

हर एक की सोच का सम्मान है ..... हर एक का विचार है ...... व्यक्तित्व है .. अपनी अपनी पृकृति और क्षमता के अनुसार धाराये मिलती > अलग होती > और जीवन _ नदिया क्रम बद्धः आगे बढ़ती चलती है ...

जाते-आते लोग बिलकुल उठती_गिरती _मचलती _भागती लहरों की तरह ही है ,
अपनी _अपनी वृति और पृवृत्ति अनुसार जुड़ते_आगे बढ़ते_बिखरते चलते रहते है ,
चाहे संसार हो या मिनी संसार (fb) . सब एक ही प्राकृतिक गुण से जुड़े है ,
यहाँ सही और गलत का प्रश्न ही नहीं ... आखिर इंसान ही तो है .

वास्तव में प्रश्न ये नहीं 
 कि किसी सोशल वेबसाइट  पे बनी प्रोफाइल की मित्र सूची में  दोस्त ; किसी का नाम है कि नहीं , दूर रह कर भी मानसिक रूप से साथ और सहयोगी हो सकते है ..... पास रह कर भी एक दूसरे के प्रति अनपेक्षित कठोर और दृढ व्यवहार कर सकते है. यहाँ सिर्फ एक भाव कार्य करता है कि आप कितने संवेदनशील है और दुसरो के विचारों के प्रति आपमें ग्राह्यता और स्वीकारोक्ति कितनी है। यही किसी भी सांसारिक रिश्ते का सच है ; आपका लचीलापन ही आपको स्वतंत्र बनाता है। 

यही सबके लिए सच है और यही मेरा भी सच है  क्यूंकि सच तो एक ही है ,

आते हुए मित्रों का स्वागत , और जाते हुए मित्रों को स _स्नेह प्रणाम .

सभी मित्रों को दिल से प्रणाम

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