Monday 10 November 2014

ध्यान साहस है (Osho)


राइट हैंड दोनों आंखों के बीच में रख लेना है भृकुटी पर और दोनों तरफ आजू-बाजू, ऊपर-नीचे रगड़ना है। वही है जगह जहां तीसरा नेत्र है। वही है जगह जहां से द्वार है अंतर्यात्रा का, जहां से मनुष्य स्वयं के भीतर प्रवेश करता है।.................

पहले ध्यान के संबंध में कुछ बातें और फिर हम ध्यान में प्रवेश करेंगे।

सबसे पहली बात, साहस न हो तो ध्यान में उतरना ही नहीं। और साहस का एक ही अर्थ है: अपने को छोड़ने का साहस। और सब साहस नाम मात्र के ही साहस हैं। एक ही साहस--अपने से छलांग लगा जाने का साहस, अपने से बाहर हो जाने का साहस--ध्यान बन जाता है। जैसे कोई वस्त्रों को उतार कर रख दे, नग्न हो जाए, ऐसे ही कोई अपने को उतार कर रख कर नग्न हो सके तो ही ध्यान में प्रवेश कर पाता है।

शरीर भी वस्त्र से ज्यादा नहीं है और मन भी वस्त्र से ज्यादा नहीं। लेकिन इन वस्त्रों से हमारा बड़ा मोह है। इन वस्त्रों को ही हमने अपनी आत्मा समझा है, इन वस्त्रों को ही हमने अपना जीवन माना हुआ है। इसलिए उतारने मं बड़ी कठिनाई होती है।

लेकिन एक बार कोई साहस कर ले और उतार कर रख पाए, तो फिर कोई कठिनाई नहीं होती, फिर किसी भी क्षण इस शरीर से अलग हुआ जा सकता है। और जो शरीर से अलग होना नहीं जानता, वह संसार से अलग होना कभी भी सीख नहीं पाएगा। क्योंकि संसार शरीर का ही फैलाव है, वह शरीर का ही विस्तार है। और जो शरीर से अलग होना जान लेता है, वह संसार से अलग होने का सीक्रेट, राज, गुर सीख गया।

शरीर से अलग होते ही पता चलता है कि मैं कौन हूं। जैसे शरीर का विस्तार संसार है, वैसे ही शरीर से अलग होकर जिसकी प्रतीति होती है, उसी का पूर्ण रूप ब्रह्म है।

ध्यान साहस है अपने से छलांग लगाने का, ए जंप फ्रॉम वनसेल्फ। इसलिए कमजोर उसमें प्रवेश नहीं कर पाएंगे। पर इतना कमजोर कोई भी नहीं है कि साहस करे और प्रवेश न कर पाए। कमजोरी केवल मन की है। दुर्बल से दुर्बल भी इतना तो सबल है कि छलांग लगा सकता है। लेकिन अक्सर ऐसा होता है कि हम अपनी सबलता को भी दुर्बलता बना लेते हैं।

एक मित्र कल मुझे आकर कह रहे थे कि पहले तो मैंने सोचा कि बुद्धिमान आदमी हूं, यह मैं क्या कर रहा हूं? यह नाचना, यह कूदना, यह तो बुद्धिहीनता है! लेकिन फिर उन्हें खयाल आया कि अगर मैं बुद्धिमान आदमी हूं, तो मुझे और भी बुद्धिमानी से इसमें प्रवेश करने की कोशिश करनी चाहिए। और वे प्रवेश कर गए। चाहते तो अपनी बुद्धिमानी को बाधा बना लेते, चाहा तो उसे सहयोग बना लिया। हमारे हाथ में निर्भर है। हम सीढ़ियों को पत्थर बना सकते हैं मार्ग का और चाहें तो मार्ग के पत्थरों को सीढ़ी भी बना सकते हैं चढ़ने के लिए।

तो अपने-अपने पर खयाल करना कि हम अपनी सबलता को निर्बलता तो नहीं बना रहे हैं? और कोई चाहे तो निर्बलता को भी सबलता बना लेता है। अगर यह भी पता चल जाए कि मैं निर्बल आदमी हूं और हम परमात्मा के हाथ में सौंप दें और कह पाएं कि मैं कुछ भी न कर सकूंगा, तुझे जो करना हो कर। अगर यह भी पूर्णता से हम कह सकें, तो निर्बलता भी सबलता बन जाती है। और जो बिलकुल असहाय अपने को छोड़ देता है, उसे प्रभु का सहारा मिल जाता है।

तो ध्यान के लिए पहली बात तो है साहस । दूसरी बात, अपने से सावधान रहना । क्योंकि आप ही अपने को धोखा दे सकते हैं, कोई और नहीं । सच तो यह है कि इस जगत में दूसरे को धोखा देना संभव ही नहीं है । सिर्फ अपने को ही धोखा दिया जा सकता है । वी कैन डिसीव ओनली अवरसेल्व्स । कोई किसी दूसरे को धोखा दे ही नहीं सकता । दूसरे को धोखा देकर अगर आप कुछ पा भी लेंगे, तो वह दो कौड़ी का है, मौत उसे छीन लेगी । लेकिन अपने को धोखा देकर हम ऐसा कुछ खो सकते हैं कि जन्म-जन्म भटक जाएं और उसे पाना मुश्किल हो जाए । और हम सब अपने को धोखा देते हैं । तो दूसरी बात आपसे कहता हूं, अपने को धोखा देने से सावधान रहना ।

धोखा हम किस-किस ढंग से दे लेते हैं? 

एक मित्र परसों मेरे पास आए थे। वे कहने लगे, मैं तो बिलकुल शांत ही हूं, आनंद से ही भरा हुआ हूं। और परमात्मा का तो मुझे साक्षात्कार हो चुका है। 

मैंने कहा, धन्यवाद ! अब और क्या बाकी है ?

उन्होंने कहा, लेकिन ध्यान का कोई रास्ता बताइए !

शांत हैं, आनंदित हैं, परमात्मा का साक्षात्कार हो चुका। अब ध्यान का क्या करिएगा? अब ध्यान से क्या प्रयोजन है?

नहीं लेकिन, अपने को धोखा देने की कोशिश चलती है। ध्यान क्या है, यह जानने का सवाल ही तब उठता है जब न मन शांत हो, न आनंद मिला हो, न प्रभु की कोई किरण उतरी हो। तभी तो ध्यान को जानने का सवाल है। लेकिन आदमी का अहंकार ऐसा है कि वह कहता है, ऐसे तो सभी मिला हुआ है।
ऐसा अपने को धोखा मत देना। धोखे की बड़ी संभावना है। देख कर कोई भी जान नहीं सकता है। बाहर खड़े होकर दर्शक की भांति कोई ध्यान को नहीं जान सकता। कुछ चीजें हैं जो उतर कर ही जानी जाती हैं। होकर ही जानी जाती हैं। कुछ चीजें हैं जिनका एक ही रास्ता है जानने का। उनके लिए टु बी इज़ दि ओनली वे टु नो। जानने का और कोई रास्ता नहीं है। हो जाएं, तो ही जान सकते हैं। और जितनी गहरी हो बात, उतना ही जान कर नहीं जानी जाती, होकर जानी जाती है। जितनी ऊपरी हो बात, बिना जाने, बिना हुए भी जान ली जा सकती है।

ध्यान मनुष्य की आत्यंतिक संभावना है, आखिरी संभावना है। वह जो मनुष्य का बीज फूल बनता है, वही फूल है ध्यान, जहां मनुष्य खिलता है, उसकी पंखुड़ियां खुलती हैं और उसकी सुगंध परमात्मा के चरणों में समर्पित होती है। ध्यान आखिरी संभावना है मनुष्य के चित्त की। उसे तो होकर ही जाना जा सकेगा। कोई बीज फूल के संबंध में कितनी ही खबर सुन ले, तो भी फूल को नहीं जान पाएगा, जब तक कि टूटे नहीं और फूल न बन जाए। और फूल के संबंध में सुनी गई खबरों में फूल की सुगंध नहीं हो सकती है। और फूल के संबंध में सुनी गई खबरों में फूल का खिलना और वह आनंद, वह एक्सटैसी, वह समाधि नहीं हो सकती है। बीज कितनी ही खबरें सुने फूलों के बाबत, बीज को कुछ भी पता न चलेगा, जब तक स्वयं न टूटे, अंकुरित न हो, बड़ा न हो, आकाश में पत्तों को न फैलाए, सूरज की किरणों को न पीए और खिलने की तरफ स्वयं न बढ़े।

तो दूसरे को देख कर कभी निर्णय मत करना कि हमने जान लिया कि लोग कीर्तन करते हैं, ध्यान करते हैं। स्वयं डूबना उस सागर में, तो ही जीवन के आनंद के मोती उपलब्ध होते हैं। 

दो त्तीन बातें ध्यान की इस प्रक्रिया के संबंध में।

आज कुछ और भी इसमें जोडूंगा। कल जिन लोगों ने माथे पर हाथ को रगड़ने का, तीसरे नेत्र को जगाने की कोशिश की है, उसमें बहुतों को बहुत अदभुत परिणाम हुए हैं। उनके लिए एक चीज आज और जोड़नी है और वह है: जब तीसरा चरण मौन का पूरा होगा, तब मैं आपसे कहूंगा कि दोनों हाथ आकाश की तरफ उठा लें, आंख खोल कर आकाश को देखें और आकाश को देखने दें आपकी आंखों में। और जब आप दोनों हाथ आकाश की तरफ उठाए हों, तब जो आनंद आपके भीतर भर गया हो, उसे अभिव्यक्त करें, उसे प्रकट करें, उस आनंद को आपके रोएं-रोएं से प्रकट होने दें। अगर प्रफुल्लता की एक लहर प्रकट हो जाए, हंसी फूट पड़े या आनंद के आंसू बहने लगें या थिरक में आप नाच उठें, तो उसे प्रकट करें।

एक तो नृत्य है जो हम प्रभु के द्वार पर जाने के लिए करते हैं और एक और भी नृत्य है जो उसके द्वार पर पहुंच कर धन्यवाद की तरह होता है।

तीसरे चरण को समाप्त करने के पहले, इसके पहले कि हम परमात्मा को धन्यवाद दें, उसका अनुग्रह स्वीकार करें, आप दोनों हाथ आकाश की तरफ उठा कर, आंखें आकाश को देखेंगी और आकाश को आंखों में झांकने देना, और फिर जो भी अभिव्यक्ति आनंद की आपको सहज घटित हो जाए उसे प्रकट करना।

वन थिंग मोर इज़ टु बी एडेड टुडे। आफ्टर दि डीप साइलेंस, थर्ड स्टेप, यू हैव टु रेज़ योर बोथ हैंड्स टुवर्ड्स दि स्काई एंड ओपन योर आइज, सो दैट यू कैन सी दि स्काई एंड दि स्काई कैन सी यू। यू विद योर आइज इनटु दि स्काई एंड स्काई विद हिज़ आइज पेनिट्रेटिंग डीपली इनटु यू। ए कम्यूनियन विद दि स्काई। एंड व्हेन यू फील दि कम्यूनियन, देन लेट दि ब्लिस दैट इज़ फ्लोइंग इन यू बी एक्सप्रेस्ड विद एनी गेस्चर दैट हैपन्स स्पांटेनियसली, दैट हैपन्स। विद एनी गेस्चर--विद लाफ्टर, विद टियर्स ऑफ ब्लिस, विद डांसिंग--विद एनी मूवमेंट, व्हाट सो एवर हैपन्स टु यू, एक्सप्रेस इट एज ए थैंक्स गिवेन टु दि डिवाइन। बिफोर वी गिव दि थैंक्स, एड दिस टुडे। आई विल गिव यू दि सजेशंस, आफ्टर थर्ड स्टेप ऑफ डीप साइलेंस, एक्सप्रेस योर ब्लिस।

और कल जो मैंने जोड़ा है, वह तो आपको खयाल में है। पंद्रह मिनट के कीर्तन और पंद्रह मिनट के व्यक्तिगत सक्रिय-ध्यान के बाद आपको अपना सीधा हाथ, राइट हैंड दोनों आंखों के बीच में रख लेना है भृकुटी पर और दोनों तरफ आजू-बाजू, ऊपर-नीचे रगड़ना है। वही है जगह जहां तीसरा नेत्र है। वही है जगह जहां से द्वार है अंतर्यात्रा का, जहां से मनुष्य स्वयं के भीतर प्रवेश करता है।

आई मस्ट टेल यू अगेन, आफ्टर दि सेकेंड स्टेप, यू हैव टु पुट योर राइट हैंड पाम बिट्वीन दि आइब्रोज एंड देन रब इट साइडवेज, अप एंड डाउन फॉर वन मिनट कंटिन्युअसली। बिकाज दैट इज़ दि प्वाइंट, दि सेंटर फ्रॉम व्हिच वन गोज इनवर्ड्स।

रब इट, सो दैट दि स्क्रीन--ए वेरी थिन स्क्रीन इज़ देयर, व्हिच इज़ हाइडिंग दि थर्ड आई--इज़ जस्ट रब्ड ऑफ। विद दि एनर्जी ओवर फ्लोइंग, विद दि एनर्जी मूविंग इन यू, दि राइट पाम जस्ट बिकम्स ए वीहिकल फॉर दि एनर्जी टु वर्क ऑन दि थर्ड आई स्पॉट। सो रब इट फॉर वन मिनट कंटिन्युअसली, देन गो इन डीप साइलेंस इन दि थर्ड स्टेप। एंड नाउ वी विल बिगिन।

जो लोग भी यहां देखने को आ गए हों, वे कुर्सियों पर बैठ जाएं। कोई देखने वाला व्यक्ति यहां ध्यान करने वालों के साथ न हो। जिसको भी देखना हो, वह कुर्सियों पर बैठ जाए। और देखने वाले किसी तरह की बात नहीं करेंगे, शांत बैठ कर देखते रहेंगे।

और करने वाले दूर-दूर फैल जाएं। जितने दूर फैलेंगे, उतनी गति आएगी। दूर-दूर फैल जाएं, बड़ी जगह है, दूर-दूर फैल जाएं। बातचीत न करें, दूर-दूर फैल जाएं।

और देखने वाले बातचीत नहीं करेंगे। खड़े न हों, कुर्सियों पर बैठ जाएं। काफी कुर्सियां हैं, देखने वाले कुर्सियों पर बैठ जाएं। देखिए इस तरफ भी कोई देखने वाला न खड़ा रहे। किसी को खड़ा होना हो, तो यहां कुर्सियों पर आ जाएं।

 - "ओशो 
Dhyan Ke Kamal – 03

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