Friday 5 September 2014

आत्मा से परमात्मा में छलांग (Osho)



ऐसा समझो कि एक वृक्ष का एक पत्ता होश में आ जाए, तो उसे पड़ोस का जो पत्ता लटका हुआ दिखाई पड़ रहा है, वह दूसरा मालूम पड़ेगा। उसी वृक्ष की दूसरी शाखा पर लटका हुआ पत्ता उसे स्वयं कैसे मालूम पड़ सकता है कि यह मैं ही हूं! दूसरी शाखा भी छोड़ दें, उसी शाखा पर लगा हुआ दूसरा पत्ता भी उस वृक्ष के पत्ते को कैसे लग सकता है कि मैं ही हूं! उतनी दूरी भी छोड़ दें, उसी के बगल में, पड़ोस में लटका हुआ जो पत्ता है, वह भी दूसरा ही मालूम पड़ेगा; क्योंकि पत्ते का भी जो होश है, वह व्यक्ति का है। फिर पत्ता अपने भीतर प्रवेश करे, तो बहुत शीघ्र वह पाएगा कि मैं जिस डंठल से लगा हूं, उसी डंठल से मेरे पड़ोस का पत्ता भी लगा है, और हम दोनों की प्राणधारा एक ही डंठल से आ रही है। वह और थोड़ा प्रवेश करे, तो वह पाएगा कि मेरी शाखा ही नहीं, पड़ोस की शाखा भी एक ही वृक्ष के दो हिस्से हैं और हमारी जीवनधारा एक है। वह और थोड़ा नीचे प्रवेश करे और वृक्ष की रूट्स पर पहुंच जाए, तो उसे लगेगा कि सारी शाखाएं और सारे पत्ते और मैं, एक ही के हिस्से हैं। वह और वृक्ष के नीचे प्रवेश करे और उस भूमि में पहुंच जाए जिस भूमि से पड़ोस का वृक्ष भी निकला हुआ है, तो वह अनुभव करेगा कि मैं, मेरा यह वृक्ष, मेरे ये पत्ते, और यह पड़ोस का वृक्ष, ये हम एक ही भूमि के पुत्र हैं, और एक ही भूमि की शाखाएं हैं। और अगर वह प्रवेश करता ही जाए, तो यह पूरा जगत अंततः उस छोटे से पत्ते के अस्तित्व का अंतिम छोर होगा। वह पत्ता इस बड़े अस्तित्व का एक छोर था! लेकिन छोर की तरह होश में आ गया था तो व्यक्ति था, और समग्र की तरह होश में आ जाए तो व्यक्ति नहीं है।

तो कुंडलिनी के पहले जागरण का अनुभव तुम्हें आत्मा की तरह होगा और अंतिम अनुभव तुम्हें परमात्मा की तरह होगा। अगर तुम पहले जागरण पर ही रुक गए, और तुमने घेराबंदी कर ली अपने कुएं की, और तुमने भीतर खोज न की, तो तुम आत्मा पर ही रुक जाओगे।


इसलिए बहुत से धर्म आत्मा पर ही रुक गए हैं। वह परम अनुभव नहीं है; वह अनुभव की आधी ही यात्रा है। और थोड़ा आगे जाएंगे तो आत्मा भी विलीन हो जाएगी और तब परमात्मा ही शेष रह जाएगा। और जैसा मैंने तुमसे कहा कि और अगर आगे गए तो परमात्मा भी विलीन हो जाएगा, और तब निर्वाण और शून्य ही शेष रह जाएगा--या कहना चाहिए, कुछ भी शेष नहीं रह जाएगा।


तो परमात्मा से भी जो एक कदम आगे जाने की जिनकी संभावना थी, वे निर्वाण पर पहुंच गए हैं; वे परम शून्य की बात कहेंगे। वे कहेंगे: वहां जहां कुछ भी नहीं रह जाता। असल में, सब कुछ का अनुभव जब तुम्हें होगा, तो साथ ही कुछ नहीं का अनुभव भी होगा। जो एब्सोल्यूट है, वह नथिंगनेस भी है।



ओशो....

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