जो भी हमने जान लिया है--जान लिया है--उससे पीछे लौटने का सवाल नहीं है। उसको फिर अनजाना नहीं किया जा सकता। उसे अनजाना करना मुश्किल है। हां, जो हमने न जाना हो, ऐसे ही सीख लिया हो जबरदस्ती, वह कल फिर डांवाडोल हो सकता है। लेकिन जो मैंने जान लिया है--जैसे एक बच्चे ने प्रेम जान लिया, नहीं जाना था अब तक, अब उसने प्रेम जान लिया। अब वह प्रेम को अनजाना नहीं कर सकता। उसका अनजाना होना अब असंभव है। जानना जो है, चूंकि वह हमारा हिस्सा ही हो जाता है, वह हमसे कहीं अब छूट सकता नहीं। हां, जानना ऐसा हो सकता है कि उसने प्रेम की चार किताबें पढ़ ली हों और प्रेम के संबंध में कुछ जानना सीख लिया हो, वह अनजाना कल हो सकता है।
जागरण के प्रयोग से धीरे-धीरे-धीरे-धीरे जो भी हममें होता है, तो जागरण कोई ऐसी क्वालिटी नहीं है जो बाहर से आकर आपसे जुड़ जाती है, बल्कि आपका ही इनर बीइंग है जो धीरे-धीरे प्रकट हो जाता है। यह कोई ऐसी चीज होती कि आपके खीसे में रख दी गई, तो गिर सकती थी, खो सकती थी, जा सकती थी। यह आप ही थे जो रि-डिस्कवर हो गए। यह आप ही थे जो आपने उघाड़ लिया अपने को। अब, अब कोई सवाल नहीं रहा। - "ओशो"....
Cheti Sake To Cheti - 04
मेरी एक ही प्रार्थना है उन लोगों से जो मुझे प्रेम करते हैं, कि उनके प्रेमका एक ही सबूत होगा, कि वे मुझे क्षमा कर दें और मुझे सदा के लिए भूल जाएँ। भूल जाएँ मेरा नाम, भूल जाएँ मेरा पता, अपनी याद करें। हाँ, अगर कोई सत्य मुझसे प्रकट हुआ हो,तो सत्य को पी लें — जी भर कर पी लें। लेकिन वह सत्य मेरा नहीं है।सत्य किसी का भी नहीं है। सत्य तो बस अपना है। उस पर कोई लेबल नहीं है, कोई विशेषण नहीं है। मै अपने पीछे कोई धर्म नहीं छोड़ जाना चाहता हूँ। मैं तो घुल जाना चाहता हूँ, मिलजाना चाहता हूँ, मिट जाना चाहता हूँ। यूँ कि मेरे पैरों के निशान भी जमीन पर न रह जाएँ कि कोई उनका अनुसरण करे। जैसे पक्षी आकाश में उड़ते हैं, लेकिन उनके पैरों के कोई चिह्न आकाश मे नहीं छूटते। मैं भी कोई चिह्न अपने पीछे नहीं छोड़ जाना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि मनुष्यता सत्य को, प्रेमको, करुणा को, ध्यान को, अस्तित्वको — इनको प्रेम करे। मैं तो कल नहीं था, कल नहीं हो जाऊँगा। इस अस्थिपिंजर को मूर्ति मत बना लेना।
- ओशो
- ओशो
फिर अमृत की बूँद पड़ी
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