Saturday, 31 May 2014

असंभव-संभव तंत्र

असंभव-संभव;अलौकिक-शरीर  लौकिक-शरीर सूक्ष्म-शरीर अतिसूक्ष्म-शरीर तंत्र का ताना - बाना 



*
कुछ कार्य-संपादन इस तत्व निर्मित शरीर के जन्म के साथ असंभव है और कुछ इस शरीर के माध्यम से ही संभव ... इसकी सीमितता को मान के , जान के , आत्मसात कर लेना ही सम्पूर्ण आत्मस्वीकारोक्ति 
है

*
जन्म स्वयं में स्वप्निल सत्य है जो अपने ही स्वप्न के 
अर्थात मृत्यु नाम के दूसरे किनारे पे जाके अपनी सीमितता को पूर्ण करता है और दूसरे सत्य की तरफ अग्रसर होता है। 

*
इस स्वप्नवत संसार में धरती का छोर फिर भी मिल जायेगा परंतु तरंगो के किनारे ढूंढने निकलोगे तो जीवन समाप्त हो जायेगा , मृगमरीचिका रूप में ये आत्मा-मृग .. असार वन में भटक भटक के समाप्त हो जायेगा।

*
जन्म से मृत्यु के बीच के घटना क्रम का एक एक करके घटती हुई घटना क्रमबद्धः रूप से जीवन रुपी माला में पिरोये हुए मनके के सामान स्वप्निल सत्य है 

*
लोगो का अकस्मात् भेंट होना ,संपर्क होना ,अलग होना ,
नदी में बहते पत्तो के समान अथवा पहले से उपस्थित तरंगो का प्रवाह जैसा ही है जो मात्र सब स्वप्निल घटनाक्रम है. जीवो का जनम कहाँ किस रूप में कब तक किसके साथ बसेरा है , आदि आदि सब तरंगित यात्रा के भाग है

*
एक बालक जन्म लेता है यदि समय पाश द्वारा तुरंत अलग करदिया जाये तो असीम कष्ट देता है परन्तु यही
समय के साथ अपना स्थान बनाने के बाद सहज रूप से चिड़िया जैसा उड़ जाये तो भी सिर्फ प्रसन्नता और आशीष ही बचता है। यदि इसके आलावा सम्बन्धो से कोई कष्ट ह्रदय में बाकी है तो वो स्वयं की अपरिपक्वता है , स्वयं का अज्ञान चित्त दशा है।

*
ये भी विलक्षण है , जिस क्रम में जो भाव या वस्तु प्राप्त होती है उसी क्रम में वो अलग भी होती जाती है , और ध्यान दीजियेगा ,
जो वस्तु या भाव जी लिया जाता है , उसकी उपयोगिता पूर्ण हो जाती है , फिर वो अलग हो के भी कष्ट नहीं देती। कष्ट ...पीड़ा ....कच्चा भाव और 
शरीर से.जीवित अँग अलग अलग हो जाये वो ही देता है। स्वेक्छा से पूर्णता के साथ जिया हुआ भाव या अलग होता हुआ अंग भी पीड़ा नहीं देता , उदाहरण के लिए नाखून , या फिर केश या शरीर से उतरती हुई पुरानी खाल। 

*
परिस्थतिजन्य सुख दुःख की तीव्रता का भान होना , छटपटाहट का भाव इसी स्वप्नमयी स्थति के अंश है 


*
जो है जैसा है इसका भान होना आवश्यक है वो भी सम्पूर्ण स्वीकृति के साथ। किसी भी सम्बन्ध की खुदाई करने चले तो कुछ नहीं नहीं मिलगा शुन्य के सिवा , क्यूंकि मनुष्य स्वयं में शुन्य है। अस्तित्व विहीन है।

*
इस शरीर और ऊर्जा के सम्मिलन में ही सारा रहस्य अपने को अनावृत करता है , ऊर्जा की सीमितता भी यही है की वो शरीर में है , तत्व उस ऊर्जा को बल पूर्वक गुरुत्वाकर्षण से पृथ्वी से जोड़ के रखता है, और उसकी निरंतर उर्ध्व गति की आकांछा बताती है की उसको ऊर्जा स्वरूप उसको निरंतर जागृत कर रहा है।

*
संघर्ष असमंजस प्रयास और अस्थिरता , और निरंतर उद्वेग में रहना मस्तिष्क द्वारा स्वयं की चेतना को अनुभव करने की अवस्था का जीवित स्वप्निल प्रमाण है।

*
ये भी अहसास होना की परिस्थतियाँ स्वयं की चाल से ही चल रही है , मनुष्य का संतुलन और समायोजन करते जाना , उसकी चेतना की निरंतर उर्ध्वगामी होती चेतना को दर्शाता है।

*
क्लिष्ट और दुरूह शब्दों में न बांध के इसको सहज रूप से समझना ज्यादा उचित है की जन्म के साथ जो भी आपको मिला है , वो मृत्यु तक आपके साथ रहेगा। वो प्रतीति बहुत मौलिक है। इसके लिए किसी गहरे ध्यान की भी आवश्यकता नहीं।

*
जब भी किसी ऐसे भाव का जन्म हो जो आपको निराशा की तरफ ले जाये , या फिर अत्यधिक सुख की तरफ खींचे , सुख में तो बिरले ही विचार करते है यदि किसी को सुख में विचार आ जाये तो निराशा घटेगी ही नहीं, निराशा अज्ञानता ही है, तो अपनी निराशा में विचार कीजियेगा , क्या ये आपको जन्म से मिला था ? यदि नहीं तो वो अपनी यात्रा में है और आप अपनी यात्रा में और ये भाव घट रहे है , भाव का घटना यानि की गति , प्रवाह , रुकेंगे नहीं , बह जाएंगे.... फिर वो चाहे अपना स्वयं से सम्बन्ध हो अथवा दूसरे से , कैसा भी सांसारिक भाव हो , वासनाएं हो , शोक हो , क्षणिक मोह हो , सब जो भी आपको यात्रा के मध्य में मिला है , वो आपसे अपने निश्चित समय पे अलग होना ही है। और जो भी जन्म से मिला है उसमे विकास हो या न हो , नश्वरता के सिद्धांत में क्षय भी हो , रोग हो पीड़ा हो (
दुर्घटना अथवा प्रारब्ध जन्य अपवाद छोड़ के ) परन्तु सामान्य रूप से वो मृत्यु तक चलेगा !

*
ध्यान में अवश्य अपने स्वयं के गर्भ में नौ माह के वास की अवधि की यात्रा कीजियेगा स्वयं को उसी बीज रूप में, पहुँचाना है जहाँ से आपने ऊर्जा रूप में जननी के गर्भ में प्रवेश किया था ! और इस बीज रूप से बस पल भर दूर है आपका वास्तविक स्वरुप , शायद पल भी नहीं। और पास।

*
इस वास्तिवक स्वरुप में या तो इस छोर से उत्तार जाइए जो जन्म से पूर्व का है , या फिर उस छोर से जो मृत्यु के पश्चात है , ये ऊर्जामय स्वरुप आपका ही है जो समस्त विकारो से अलग है। एक विकार छोड़ के , और वो है समस्त विकारो का जन्म स्थान , इन्द्र्य जनित सुखी जीवन जीने की परम आकांक्षा। यही है वो उद्भव स्थल जहाँ से बैठ के आपका तथाकथित मन और बुद्धि खेल खेलते है। तब तक जब तक मृत्यु आपको अपने आगोश में नहीं ले लेती।  पर ये भी जन्म तो आपकी ही इक्छा  थी ऊर्जा सहित सूक्ष्म शरीर रूप में। 


*
थोड़ा और गहरे उतरेंगे तो ये सूक्ष्म शरीर भी नजर आएगा , और इसी बंधी समस्त वासनाओ की डोर भी दिखेगी। और इसका साक्षात्कार ही इससे छूटने का उपाय भी है। क्यूंकि इस सूक्ष्म शरीर से परे जो ऊर्जा है वो उस परम ऊर्जा का ही अंश है , इस परम अवस्था में कोई राग नहीं कोई द्वेष नहीं , मोह नहीं क्रोध नहीं , वासना नहीं , और स्वयं में परम पवित्र है। परम शब्द सबसे अधिकतम अभिव्यक्ति है भाषा की इसलिए मनुष्य के पास इसके अतिरिक्त कोई शब्द भी नहीं जो इस अवस्था को वर्णित करे ....

***


इस अवस्था की परम अनुभूति ध्यानावस्था में सहज उपलब्ध है। स्वयं को स्वयं से जोड़ने का इससे बेहतर कोई उपाय ही नहीं , चूँकि इस अवस्था के लिए शब्द नहीं , भाषा यहाँ पंगु है , इस छलांग को सुखद मौन के माध्यम से पूरा किया जाता है। ( 
सुखद इसलिए  क्यूंकि मौन  अति दुःख की अवस्था का भी सूचक है जो फलित नहीं होता ,दुःख कारण  बन सकता है परन्तु शांति - सुख की अवस्था का मौन ही अनुकूल फलित होता है और सुख  का अर्थ  शांति से है आत्मिक  विश्राम से है )

बस जीवन का , यही छोटा सा असंभव - संभव सा शाश्वत सत्य है !


Buddha says: THE MASTER SHINES IN MEDITATION in the night.
By "the master" he means one who is trying to be a master of himself; by "warrior" he means one who is trying to be a master of others. But once you have attained, once you have become enlightened, then there is no question of day and night, no question of sun and moon. Osho 
The Dhammapada: The Way of the Buddha, Vol 11
Chapter #7
Chapter title: Beyond the beyond
17 April 1980 am in Buddha Hall


जीवन यात्रा की असीम शुभकामनाये !

ऊर्जा को उर्ध्वगामी करना (ओशो )

I say: Die, so that you can live!
When the seed destroys itself, it becomes the tree;
when the drop loses itself, it becomes the ocean.
But man -- man refuses to lose himself.
How then can God manifest in him?
Man IS the seed, God is the tree.
Man is the drop, God is the ocean. Osho 




A Cup of Tea

Letters written from 1962 to 1971
Miscellaneous
350 Letters
Year published: 1983


Never ask "why".(osho)

"Osho speaks to a mother who has just lost her child.......


We are all here just to disappear sooner or later. Life is very precarious, accidental, any moment anybody can go.

So don't ponder upon what happened, there is no why. All the answers that can be given to your why will be nothing but consolations to somehow rationalise a thing which is mysterious, but which by rationalising we hope to console ourselves. I am not interested in consoling, because it is a dangerous game this consolation. It keeps you hidden behind buffers.

The truth is that the child was alive and is alive no more. This should make you understand the dreamlike quality of life. Life is made of the stuff called dreams. We may be seeing a beautiful dream but it can be broken by any small thing - just a noise and the dream disappears. It may have been a sweet dream and one feels hurt and one wants to close one's eyes and continue dreaming - but now nothing can be done.

Rather than finding explanations and consolations, always look at the naked truth. It is sad, it hurts, it is painful: see it, that it is so, but don't try to somehow whitewash it. All explanations and all philosophies are nothing but efforts to whitewash things which are not white, which are very dark and mysterious.

When such moments come, they are of tremendous significance because in these moments, awakening is possible. When your child dies, it is such a shock; you can awaken in such a shock; rather than crying and wasting this significant moment. After a few days the shock will be shock no more: time heals everything. After a few years you will forget all about it. By the end of your life it may look as if you had seen it in some movie or read about it in a novel. In time it would have faded and faded so far away that only an echo..............catch hold of it right now. This is the moment when it can help you to be alert, awake. Don't miss the opportunity; all consolations are ways of missing opportunities.

Never ask "why". Life is without any "why" and death is without any "why". The "why" cannot be answered, need not be answered. Life is not a problem that can be solved, neither is death. Life and death are both parts of the mystery which knows no answer. The question mark is ultimate. So all that can be done in such situations is that one should awaken, because these shocks can become a breakthrough. Thinking stops, the shock is such that the mind goes in a blur. Nothing seems to be meaningful, all seems to be lost. One feels an utter stranger, outsider, uprooted. These are tremendously significant moments; these are the moments when you enter into a new dimension. And death is one of the greatest doors that open into the divine. When somebody so close as a child is to a mother, dies, it is almost the death of yourself, as if you had died, a part of you has died.

So just see that life is a dream, that everything will disappear sooner or later, dust into dust. Nothing abides here. We cannot make our home here. It is a caravanserai, an overnight's stay and in the morning, we go. But there is one thing which is constantly there and permanently there - that is your watching, your witnessing. Everything else disappears, everything else comes and goes, only witnessing remains.

So witness this whole thing. Just be a witness, don't become identified. Don't be a mother, otherwise you are identified. Just be a witness, a silent watcher and that watching will help you tremendously, that is the only key which opens the doors of mysteries. Not that it solves anything, but it makes you capable to live the mysterious, and to live it totally...........

Total surrender and Total understanding

When i say that Buddha says about total surrender and total understanding , here is no bald-line space left for further extra analysis the term which is linked with heavy meanings and objects .

Buddha says total surrender ; means all those activities from mind and heart which is giving illusion " yes ! i am doing and results are highly disappointing or vise-a-versa . " and due to wisdom all are becomes illusive by the feel of Only karma of this moment is in our hand . neither past nor future . if my mind is over occupied with results fear , this is cause of free running of catalyst maunda . 

once i know my limits , i m able to understand the term total surrender . just try this principal of neti-neti , what is done by you ? breath , hunger , feeding , any body intakes and outs . feels through senses , even mind;s thoughts process , maunda's running s , what are performed by you . "you " means " soul "

nothing is performed by you all are under presumption . without senses you are nothing and without your senses ; you are useless .

this acceptance with knowing not by force by accepting our limit is total surrender .

total understanding is what ? now i understand my limits , but i have so much gifts to use with in life , God gives me strength to live , hope to survive , and mind to serve humanity , my mind have tremendous potential , i have many abilities whatever i can serve to society in many ways ( few are nature lover few have mathematical brains , and few have artistic interests , few are perform better with Science world and few can serves through Spiritual inclinations these are born qualities ) if thou gives life he gives parallel many gifts also , so that humans able to create best for them .out of all nature-furies .

but with this finest natural ability , one have to understand realty also , and this is total understanding with total surrender . and finally with these understanding people able to allow themselves for free fall .

Free fall :

living with out fear comes Automatic when we start living with present ,and rest is under surrender .

very simple meaning is only live in present , enjoy present , results are not in hand and past is also not present .

this is our limit and life is Spontaneous. that is .

free fall is ; to allow yourself , without any bondage of past or future . rest is not in our hand only one step is in our reach .

And after touch that wisdom point ; any one can feel - karta-bhav (self doing ) is illusion , fears are also related with self doing illusion because fears related with results and Karta (doing) appears as Personality . and finally Understanding is all are only Illusive .



Only one's acceptance of reality  can left among all dreams or illusions . is One source and one energy .



(
In picture shown , how wordily affairs left behind and soul with wisdom move ahead )


all the best to all

Vibrations of Negatives and Controls


Energy  and  Energy Flow  and effects in surroundings 

As is in one cell , so that Universe 


Not forget : if we can  produce  negative vibes  also  can generate positive , positive and negative are  two directions of one  thread . when we connected with our Source ; we move upward  and when we connected with world  of desires and  lust  , our  fears  are more powerful than  we moves to downwards .....keep in mind ;  upward  is positive  and downward is negative .( remeber , nothing is related with pictorial upward and downwards , all are Internal conditions)


For Sure !! All fears and emotional setbacks  becomes  illusion  under  the shelter of pure wisdom only , not before that !

Fears are vibrational  , very true ,  all those things  which are concern  with frequencies  are vibrational ,  so that fear also , it is direct  linked with Bhava  and Bhava  itself  is frequency . 

vibrations are two directional , one is connect to you with world and other is connected to ultimate source . when you connected with world , you will automatic get connected with wordily desires fears and unlimited efforts... and on other hand , once one get connected with Source , Slowly all fears comes illusive . all desires become faded , they can not serve pain at all . even , one is live in world 


(with all 7 chakras wisdom lives  within )

Now point is : how to convert fear into positive believe?

Among 7 chakras   each chakra is associated  with concern  vibrational  or frequencies  deal . many of us known  about  all chakras  again i am repeating ..  from down to  up 

1-  Mooladhar          (  root  )
2-  Swadhishathn     ( spleen) 
3-  Manipur             (  solar  )
4-  Anahat chakra   (  heart  ) 
5-  Vishudhhi          (  throat ) 
6-  Agyan                ( brows )
7-  Shastradhar        ( crown ) 




Every chakra  is  correlated with back bone and  energy flow is through sushmna nadi with the help of Ingla and Pingla (Name  of Important Nadies  which are flown  parallel both side of Sushmana) .  Through  Sushmana-nadi  all energy center  direct connected  with brain , the brain who are the main  pilot  of our travel-medium body .  




** each and every positive  vibe  give  them  life  and strength .  and  negative vibes   can convert in positive  band  through  intake of  positivism  with every breath  , and negativity will comes out  if one is  fill with positivism .  

for fears  we will work on two chakras * Spleen  and Heart,  heart is energy center  and spleen need  power  from heart .  this  power of transmission can do only in dhayn or meditation .

One can give strength  to weak area  through chakra  treatment . Fear is the place of . Must say  correction will  start with dhyan on effected charka , bhav chakra is in Heart and  Naval point  is the place where all fears lives . through the power of  dhyan here give power to yourself on these points positively . your correct effort will show you strength with in . .



Now point is what is Dhyan  ? and how it can perform  ?

very initially ,  I must say Dhayn / Meditation is self introspection and  pure  inner being , it is state of mind , not performance .self exploration is Dhyan .  From here is the  center  of power ;from where  you send  powerful vibes  with-in throughout body ,  With patience you have to sit on Dhyan . All answers are with in you only , because  if all questions come s from you  all answers must come out from you only  only your inner being will guide you , All powers are with in ..  rest of all outer helps are just supporting staff. 

continue .........

Friday, 30 May 2014

understandings and capabilities ; Budhha ((Note)

Hit The Life with understandings and capabilities :

Buddha try to penetrate in human minds , not required to leave outer search that is for humanity , – the sun, the moon, the stars – to find answers. At the same time, nature represents the inward search, which has more to do with inside. but inner search also not omit-able at all . Inside is something that you have to experience yourself. Knowledge can be learned and taught ....

On that higher state of understanding Budhha never ever can say to their followers only for coward Sanyas (something is great behind to understand proper , to check misunderstood according to facility of minds and available resource .




Two Qualities are greatly valued and to be proper efforts to find Madhyam Marg , its essential to understand Buddha teachings , what he want to communicate through basic four facts

1- Birth is fact
2- Disease is facts
3- Old age is fact
4- Death is fact

these facts which were change Siddhartha's life and they get entered in another zone of wisdom ... after that they trying to convinced people through noble facts are below >>

Noble four facts are >

1- the truth of suffering
2- the truth of origin of suffering
3- the truth of cessation of suffering
4- truth of the path

they tried to penetrate in minds with daily preaches of their followers >

Nothing is permanent ,
World is full of miseries cause of unawareness
Do not give faith without own understandings
Live like Lotus in mud
selfish desires leads to sufferings
yes; there is suffering , suffering can cease there is path to go out of sufferings

than Buddha gifted eight fold path , is very famous ..

1- right view
2- right intention
3- right speech
4- right action
5- right live hood
6- right effort
7- right mindfulness
8- right concentration

they did their best efforts to take out people of all sufferings , they saw their sufferings in daily lives , small causes ,

Buddha try to give understanding of Middle path . and facing the fact of life and practicing the attitude of gratitude .

things to be understand openly what is our's and what are we have to just for to attend . without any attachment .

here is nothing is to live with out or against of Humanity ! actually with all understandings if people can serve to society it is more magical in results findings .

Understanding of life and capabilities to utilize is two aspects or weighing scale with balance ... Heart Needle to settle in middle is Madhyam-Marg is the most prescribed by Siddhartha as " the way of living ."

Capabilities are the novelty of human talent , it is boon from Source to protect and to face hardships of lives .

Buddha never teach to drop your life only for Spirituality ; Spirituality is way of life and capabilities are boon of life for humanitarian cause , through Science through Arts through any born capability , name of subjects are just to describe .

But very sure , live with Spirituality and use of Capability wisely must've told by Budhha .




It is not way of the popular Budhha Ashram Meaning to learn Buddha teachings Soul should have to go * budhham sharnam * dhammama sharnam * sangham sharnam or in other popular meaning escape from lives or escape from responsibilities ..just pass all live  in aloofness  in caves ......  
Sanyasi doesn't means  escapist , Buddhist doesn't means  escapist .Budhiist / Sanyasi  Understands  beautiful meaning  of  life "Only and truthfully"    , also Spiritually ;  Budhhist / Sanyasi get  ready  to serve Society  with all his / her  born capabilities .

If missing understanding about to understand  realities in totality   than Budhha  and his teachings  must'hv totally misunderstood !!

Check Origin !!

be wise and be safe

Good wishes to All

Two wisdom thoughts from Osho





हां, जो मैंने यह कहा कि जो सहज-सहज जागते चले जाना है। यह जागरण जैसे ही आ जाता है, इसके लौटने का कोई सवाल ही नहीं है। क्योंकि इसको आप लाए नहीं हैं, यह आया है। और धीरे-धीरे-धीरे-धीरे जागरण और आप दो चीजें नहीं रह गए हैं, आप ही जागरण हो गए हैं। आपने क्रोध तक को दूसरा नहीं माना, तो जागरण को दूसरा मानने का क्या सवाल है! वह धीरे-धीरे आप ही हो गए हैं, आप ही हैं। उसके लौटने का कोई प्रश्न नहीं है, उसके लौटने का कोई सवाल नहीं है।

जो भी हमने जान लिया है--जान लिया है--उससे पीछे लौटने का सवाल नहीं है। उसको फिर अनजाना नहीं किया जा सकता। उसे अनजाना करना मुश्किल है। हां, जो हमने न जाना हो, ऐसे ही सीख लिया हो जबरदस्ती, वह कल फिर डांवाडोल हो सकता है। लेकिन जो मैंने जान लिया है--जैसे एक बच्चे ने प्रेम जान लिया, नहीं जाना था अब तक, अब उसने प्रेम जान लिया। अब वह प्रेम को अनजाना नहीं कर सकता। उसका अनजाना होना अब असंभव है। जानना जो है, चूंकि वह हमारा हिस्सा ही हो जाता है, वह हमसे कहीं अब छूट सकता नहीं। हां, जानना ऐसा हो सकता है कि उसने प्रेम की चार किताबें पढ़ ली हों और प्रेम के संबंध में कुछ जानना सीख लिया हो, वह अनजाना कल हो सकता है।

जागरण के प्रयोग से धीरे-धीरे-धीरे-धीरे जो भी हममें होता है, तो जागरण कोई ऐसी क्वालिटी नहीं है जो बाहर से आकर आपसे जुड़ जाती है, बल्कि आपका ही इनर बीइंग है जो धीरे-धीरे प्रकट हो जाता है। यह कोई ऐसी चीज होती कि आपके खीसे में रख दी गई, तो गिर सकती थी, खो सकती थी, जा सकती थी। यह आप ही थे जो रि-डिस्कवर हो गए। यह आप ही थे जो आपने उघाड़ लिया अपने को। अब, अब कोई सवाल नहीं रहा। - "ओशो"....

Cheti Sake To Cheti - 04


मेरी एक ही प्रार्थना है उन लोगों से जो मुझे प्रेम करते हैं, कि उनके प्रेमका एक ही सबूत होगा, कि वे मुझे क्षमा कर दें और मुझे सदा के लिए भूल जाएँ। भूल जाएँ मेरा नाम, भूल जाएँ मेरा पता, अपनी याद करें। हाँ, अगर कोई सत्य मुझसे प्रकट हुआ हो,तो सत्य को पी लें — जी भर कर पी लें। लेकिन वह सत्य मेरा नहीं है।सत्य किसी का भी नहीं है। सत्य तो बस अपना है। उस पर कोई लेबल नहीं है, कोई विशेषण नहीं है। मै अपने पीछे  कोई धर्म नहीं छोड़ जाना चाहता हूँ। मैं तो घुल जाना चाहता हूँ, मिलजाना चाहता हूँ, मिट जाना चाहता हूँ। यूँ कि मेरे पैरों के निशान भी जमीन पर न रह जाएँ कि कोई उनका अनुसरण करे। जैसे पक्षी आकाश में उड़ते हैं, लेकिन उनके पैरों के कोई चिह्न आकाश मे नहीं छूटते। मैं भी कोई चिह्न अपने पीछे नहीं छोड़ जाना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि मनुष्यता सत्य को, प्रेमको, करुणा को, ध्यान को, अस्तित्वको — इनको प्रेम करे। मैं तो कल नहीं था, कल नहीं हो जाऊँगा। इस अस्थिपिंजर को मूर्ति मत बना लेना

- ओशो

फिर अमृत की बूँद पड़ी

Thursday, 29 May 2014

हम यहां पर अजनबी हैं ( Osho )

अजनबी


तुम्हें इस सत्य को स्वीकारना होगा कि तुम अकेले हो--हो सकताहै कि तुम भीड़ में होओ, पर तुम अकेले जी रहे हो; हो सकताहै कि अपनी पत्नी के साथ, गर्लफ्रेँड के साथ, ब्वॉयफ्रेँड के साथ, लेकिन वे अपने अकेलेपन के साथ अकेले हैं, तुम अपने अकेलेपन के साथ अकेले हो, और ये अकेलेपन एक-दूसरे को छूते भी नहीं हैं, एक-दूसरे को कभी भी नहीं छूते हैं। 

हो सकताहै कि तुम किसी के साथ बीस साल, तीस साल, पचास साल रहते हो--इससे कोई फर्क नहीं पड़ताहै, तुम अजनबी बने रहोगे। हमेशा और हमेशा तुम अजनबी होओगे। इस तथ्य को स्वीकारो कि हम यहां पर अजनबी हैं; कि हम नहीं जानते कि तुम कौन हो, कि हम नहीं जानते कि मैं कौन हूं। मैं स्वयं नहीं जानता कि मैं कौन हूं, तो तुम कैसे जान सकते हो? लेकिन लोग अनुमान लगाते हैं कि पत्नी ने पति को जानना चाहिए, पति यह अनुमान लगाताहै कि पत्नी को पति ने जानना चाहिए। सभी इस तरह से बरताव कर रहे हैं जैसे कि सभी को मन को पढ़ने वाला होना चाहिए, और इसके पहले कि तुम कहो, तुम्हारी जरूरत को, तुम्हारी समस्याओं को उससे जानना चाहिए। उसे जानना चाहिए--और उन्हें कुछ करना चाहिए। अब यह सारी बातें नासमझी हैं।

तुम्हें कोई नहीं जानता, तुम भी नहीं जानते, इसलिए अपेक्षा मत करो कि सभी को तुम्हें जानना चाहिए; चीजों की प्रकृति के अनुसार यह संभव नहींहै। हम अजनबी हैं। शायद संयोगवश हम साथ हैं, लेकिन हमारा अकेलापन होगा ही। इसे मत भूलो, क्योंकि तुम्हें इसके ऊपर कार्य करना होगा। सिर्फ वहां से तुम्हारी मुक्ति, तुम्हारा मोक्ष संभवहै। लेकिन तुम इससे ठीक उल्टा कर रहे हो : कैसे अपने अकेलेपन को भूलो? ब्वॉयफ्रेँड, गर्लफ्रेँड, सिनेमा चले जाओ, फुटबाल मैच देखो; भीड़ में खो जाओ, डिस्को में नाचो, स्वयं को भूल जाओ, शराब पीओ, ड्रग्स ले लो, लेकिन किसी भी तरह से अपने अकेलेपन को, अपने सचेतन मन तक मत आने दो--और सारा रहस्य यहीं परहै। तुम्हें अपने अकेलेपन को स्वीकारना होगा, जिसे तुम किसी भी तरह से टाल नहीं सकते। और इसके स्वभाव को बदलने का कोई मार्ग नहींहै। यह प्रामाणिक वास्तविकताहै। यह तुम हो।

Master-file - Helping Nuts



3 Questions that Will Free Your Mind and Turn Your Life Around

1. If you had a friend who spoke to you in the same way that you sometimes speak to yourself, how long would you allow this person to be your friend?

2. If today were the last day of your life, would you want to do what you are about to do today?

3. What are you holding on to that you need to let go of?





****

6 Things what happy people never do 

They NEVER…

1. Mind other people’s business.

2. Seek validation of self-worth from others.

3. Rely on other people and external events for happiness.

4. Hold on to resentment.

5. Spend prolonged periods of time in negative environments.

6. Resist the truth.

****

Easy-to-Steal  Rituals of Extremely Successful People

1. Do the work… practice, practice, practice your craft!

2. Build trust by standing behind every one of your promises.

3. Focus more on less.

4. Only use quality tools.

5. Spend quality time with quality people.


****

Yes, life is tough, but you are tougher. Find the strength to laugh every day. Find the courage to feel different, yet beautiful. Find it in your heart to make others smile too. Don’t stress over things you can’t change. Live simply. Love generously. Speak truthfully. Work diligently. And even if you fall short, keep going. Keep growing.

Awake every morning and do your best to follow this daily TO-DO list:

Think positively.
Eat healthy.
Exercise today.
Worry less.
Work hard.
Laugh often.
Sleep well.


Repeat… The floor is yours…



****

8 Helping tips , most are just reminders ... 

Things to Remember When Everything Goes Wrong

1. Pain is part of growing.

2. Everything in life is temporary.

3. Worrying and complaining changes nothing.

4. Your scars are symbols of your strength.

5. Every little struggle is a step forward.

6. Other people’s negativity is not your problem.

7. What’s meant to be will eventually, BE.

8. The best thing you can do is to keep going.




****

Good Reminders When You’ve Had a Bad Day

1. YOU are okay. You are just a little stronger now.

2. You are far more capable than you think.

3. The struggle is the path, and it leads to better days.

4. Taking the next step is always worth it.

Wednesday, 28 May 2014

The genius collection from the psychologists

30 Tips for 30 days : The genius collection from the psychologists : live and plane life as you can .. and see the positive results .. A brilliant Month tip to change life complete Positive , to change negative circumstances , Only One condition is here , whatever you start not left behind to pick another tip . take all along as you can ... and see changes in quality life .. 


One - Use words that encourage happiness. –


Two - Try one new thing every day. – 



Three- Perform one selfless act every day. –



Four - Learn and practice one new skill every day. –



Five - Teach someone something new every day. –



Six - Dedicate an hour a day to something you’re passionate about.



Seven - Treat everyone nicely, even those who are rude to you. 



Eight - Concentrate on being positive at all times. –



Nine - Address and acknowledge the lesson in inconvenient situations. –



Ten - Pay attention and enjoy your life as it happens. –



Eleven - Get rid of one thing a day for 30 days. –



Twelve - Create something brand new in 30 days or less. (as per interest )



Thirteen - Don’t tell a single lie for 30 days. – 



Fourteen - Wake up 30 minutes early every morning. –



Fifteenth - Ditch 3 bad habits for 30 days. –



Sixteenth - Watch less than 30 minutes of TV every day. 



Seventeenth - Define one long-term goal and work on it for an hour every day. 



Eighteenth - Read one chapter of a good book every day. 



Nineteenth - Every morning, watch or read something that inspires you. – 



Twentieth -Do something every day after lunch that makes you laugh. – 



Twenty first - Go alcohol and drug free for 30 days. – 



Twenty two -Exercise for 30 minutes every day for 30 days. – 



Twenty three - Get uncomfortable and face a fear every day. –



Twenty four - Cook one brand new, healthy recipe every day. 



Twenty five -Spend 10 minutes every evening reflecting on what went well.



Twenty six - Have a conversation every day with someone you rarely speak to. 



Twenty seven - Pay down debt and don’t create any new debt for 30 days. –



Twenty eight - Let go of one relationship that constantly hurts you. –



Twenty nine - Publicly forgive someone who deserves another chance. – 



Thirtieth - Document every day with one photograph and one paragraph.



As you progress through these challenges remember, personal growth is a slow, steady process. It can't be rushed. You need to work on it gradually every day. There is ample time for you to be who you want to be in life. Don't settle for less than what you think you deserve, or less than you know you can be. Despite the struggles you’ll face along the way, never give up on yourself. You're braver than you believe, stronger than you seem, smarter than you think, and twice as capable as you have ever imagined

विश्व एक खोज

आह !! अद्भुत !! ये विस्तार, दो दशमलव  दो लाख  वर्षो  का  मानव इतिहास .. 
11 July 2013 at 12:26 PM
(ब्रह्माण्ड  पे अंकित  प्रश्न  का  अद्भुत चित्र)
(ब्रह्माण्ड पे अंकित प्रश्न का अद्भुत चित्र)

पहला कदम इस धरती  पे  , कल्पना  से परे सौंदर्य , असमान , धरती , नदिया , फूल , पहाड़ , झरने , अन्य  बंधू जीव .. और हम । अचानक अन्य जीव  के आक्रमण से  पहले डर का जनम  हुआ , असुरक्षा  ने घेरा डाला , वहा से  बचे  तो   फिर भूख ओ  प्यास  लगी ,  मौसम बदला ,  गर्म हवाए  बदली सर्द हवाओ में  अब सब डराने वाले दृश्य थे  सुन्दरता खो गयी , ऊँचे  गिरते  धसते पहाड़ , तेज गहरी विध्वंस  मचाती  नदिया , ऊपर से आग  , नीचे पानी , और फिर तेज हवाए , आस्मां से  आक्रमण करते जीव , धरती पे आक्रमणकारी जीव , और  समंदर  के भयानक जीव ,  

" आश्रय "  सुरक्षा  का प्रथम ख्याल  डर ही तो  था , फलस्वरूप  मिलते जुलते  एक प्रजाति के कुछ लोग इकट्टा हुए , सोच समझ के साथ रहना शुरू हुआ (समाज का प्रथम सूत्रपात ) उनमे से  कुछ ज्यादा फुर्तीले  बलशाली  लोगो ने सभाल ली  जिम्मेदारी  अन्य को  सुरक्षा देने की (राजतन्त्र  का सूत्रपात ), बाहरी ताकतों से सुरक्षा मिली , पर  उपरी  और  ज़मीं की अंदरूनी पाताली  ताकतों से कैसे सुरक्षा मिले , शुरू हुआ  तंत्र  मंत्र  का सिलसिला (पूजा उपासना का सूत्रपात ), कबिलियाई  अपने अपने रीती रिवाज़ के प्रति  अति आस्थावान  कट्टर  हुए  तो  धर्म का  सूत्रपात  हो गया ,  अपने अपने काबिले के प्रति प्रेम आस्था  बढ़ी  तो , आपसी जंग शुरू हो गयी , कमजोर  हारने लगे , ..

अब यहाँ  प्रश्न  मौलिक जरुरतो  पूरा करना मात्र नहीं रह गया था . मामला धार्मिक  सामाजिक  और  राजनैतिक  हो गया था । भाई बंधू जन  ने सुरक्षा  और मजबूत करनी उचित समझी  अपने ही  लोगो की सुरक्षा के लिए , अपने ही जैसे लोगो से । कबीला धर्म का उदय हुआ , अपने काबिले  के लिए  मरने वाले  विशेष  सम्मान के अधिकारी  बने , अपने  काबिले के समाज में  विशेष दर्जा  मिला । और दूसरी तरफ  आक्रमण करने वाले  अपने काबिले में सम्मान का  अधिकारी  बने , उनको विशेष दर्जा मिला ।( प्रथम युध्ह और युध्ह  के महत्त्व का सूत्रपात ). अब सिर्फ अन्य जीव और प्राक्रतिक सुरक्षा  के डर का विषय नहीं रहगया था , अब विषय बदल चुका   था .

वख्ति  बदलाव , युद्धों  के इतिहास  के फलस्वरूप काबिले देशों  में  बदल  गए .. पर  डर  वही का वही था , जिस डर पे विजय हासिल करने के लिए इतना सब किया , वो डर  सिर्फ वस्त्र  बदल के  अब भी साथ था . बल्कि  अबतो  दृश्य  ये था  की जो डर से बचने का वादा  किये थे  वो ही डर बन गए . डर नहीं गया , रूप बदलता  गया , डर नहीं गया .


डर का तो  अलाम  ये है की चूहे कुत्ते , बिल्ली मच्हर , काक्रोच , मकड़ी , छिपकली .. दिन रात , हवा पानी , ऊँचाई , गहराई ... अतीत - वर्तमान - भविष्य  की तिगडी  , प्राकर्तिक उपद्रव , अपक्रतिक उपद्रव , अपने ही समाज के उपद्रव , आस पास  बने कबिलियाई  समाज के उपद्रव .. 


कितने ही डर  बन गए गए है , उस एक डर  ( जो जंगली जानवरों से शुरू हुआ था ) पे विजय पाने के लिए ..  

आज भी हम डरे हुए है  वो सभी डर  जो पहले थे  आज भी  है , वक्ती प्रगति के  साथ  डर की  संख्या  बदती ही जा रही है , पुरुष  डरे है स्त्री डरी है  , बच्चे  डरे  है , जीव जंतु डरे है , इंसान  जीवो से डरे है जीव इंसानों से डरे है ,  और आगे चले तो   घर डरे है  समुदाय डरे  है , प्रदेश  डरे  है ,  देश  डरे  है , कमजोर डरे है , बलशाली डरे  है , धर्म डरे है , पुजारी , मौलवी , पादरी  सभी डरे  है ।  डर से सुरक्षा  देने के नाम पर  क्या क्या नहो हुआ सैन्य बल बन गए  हर देश (काबिले )  में ,  जो मर रहे है  देश के लिए   और जो मार रहे  है  देश के नाम पे , सभी अपने  अपने  कबीलों  में सम्मानित  किये जा रहे है ।  विशेष  हथियार  भी बनगए है  जो पलक झपकते  ही  हमको दो लाख  वर्ष पूर्व  पहुंचा सकते है । ये विकास और ये विकास की यात्रा  या फिर हमारी  उपलब्धि |

तीन हज़ार  वर्षो में पंद्रह  हज़ार  युद्धों का लेख जोखा  इतिहास में कैद  है .. उसके पहले की  लक्खो वर्षो  की छोटी बड़ी लड़ाईयों का कोई  आंकड़ा नहीं , पर अंदाज़ा तो लगाया ही जा सकता है ।

मुझे  तो लगता है , ये डर ही सबसे बड़ा  छलावा है , जो इस मानव रुपी  जीव की राह में आया  वो भस्म हो गया , ये सब कुछ नष्ट  कर देगा  अपने ही डर से , और तो और  खुद स्वयं ये  मानव भी  अपनी ही  आग में भस्म हो रहे है ,  शहीद  और जेहाद के नाम पे , धर्म और मजहब के नाम  पे .. सुलगता , झुलसता , सिसकता !!  आधुनिक  समाज ( कबीला )

ये है हमारा  आज !! 

इन सब में  ये विचार  करना  तो रह ही गया - क्या आप  अपने डर पे विजय हासिल कर सके ?  क्या  उस शुरूआती बलिष्ठ  व्यक्ति ने आपको वांछित  आपकी  सुरक्षा  दी ? क्या  अन्य उस शुरूआती  बलिष्ठ  व्यक्ति ने आपकी  धर्म  की स्थापना  के उध्हेय्श्य  से अवगत कराया , या  इन सभी ने सिर्फ  कई और  नए डर  थाली में परोसे ।  और अब आप अपने ही लाखों  वर्ष  बनाये नीतियों  में उलझ गए है ,

और अपने साथ ही आपने अन्य जीव  ओ   प्रक्रति को भी नहीं बक्शा ।

( घर की स्त्री की तरह गाय को देवी / गौ माता का दर्जा दे डाला , भैंस , बकरी , सभी का दोहन किया , बैल घोड़े ,  गधे  कुत्ते  , आदि , " मनुष्यों के मित्र "  मनुष्यों द्वरा  कहे गए , परिणाम है  मनुष्यों की मित्रता की कीमत जो वो चूका रहे है , शायद वे ही जानते होंगे । जंगली जानवर अजायब घरो में कैद  लोगो का मनोरंजन कर रहे है । और हम व्यवसाय कर रहे है ... उनसे (द्वारा )  और उनपे (जरिये ). बहुत बड़े व्यवसायी है हम , मित्र कहना तो छलावा है , जिस दिन  उनकी जरुरत नहीं रही , उनकी जगह मशीन  ने ले ली , फिर ? हम कितने धूर्त है  कितना छल  कर सकते है  , इसका हमे  शायद खुद भी अंदाजा नहीं . )


रामायण की एक चौपाई है – सुर नर मुनि सब की यह रीती, स्वारथ लागि करहिं सब प्रीती। ... यह संसार की रीति है। चौपाई लिखते समय तुलसी  जी ने  कुछ तो महसूस जरुर किया होगा ।




क्या  आप  अपने ही  विचारो पे पुनर विचार जरुरी  नहीं समझते ? 



Om Pranam !!