गुरजिएफ कहता था, अपने साधकों को, वह मैं तुमसे भी कहता हूं, बड़ा कीमती प्रयोग है। करो, तो बड़े परिणाम हो सकते हैं। सोते वक्त रोज पांच-सात मिनिट, जैसे ही तुम्हें लगे कि अब नींद आने के करीब है, पांच-सात मिनट में आ जाएगी, तुम एक बात भीतर स्मरण रखने की कोशिश करो, कि जो भी मैं देखूंगा, जानूंगा कि यह सपना है...जो भी मैं देखूंगा, जानूंगा कि यह सपना है।
वही अ मन है। वह पहली झलक है नो माइंड की। मन के न होने की पहली झलक है।...
गुरजिएफ अपने शिष्यों को कहता था, कि जब तक तुम सपना न तोड़ पाओगे, तब तक तुम माया भी न तोड़ पाओगे। और वह ठीक कहता था। और उसने बड़ी अनूठी प्रक्रिया खोजी थी। वह कहता था कि तुम संसार को न तोड़ पाओगे न संसार से मुक्त हो पाओगे अभी तुम सपने से नहीं मुक्त हो सके। संसार से मुक्त होना तो बड़ी दूर की बात है। संसार तो बहुत विराट सपना है, जिसे तुमने जन्मों-जन्मों से देखा है। इतनी बार देखा है कि वह तुम्हारे देखने-देखने से सत्य हो गया है। इतनी परतें जम गई हैं तुम्हारे अनुभव की संसार के साथ, कि आज बिलकुल असंभव है। मानना कि नहीं है। पहले तुम सपना तोड़ो।
तो गुरजिएफ कहता था, अपने साधकों को, वह मैं तुमसे भी कहता हूं, बड़ा कीमती प्रयोग है। करो, तो बड़े परिणाम हो सकते हैं।
सोते वक्त रोज पांच-सात मिनिट, जैसे ही तुम्हें लगे कि अब नींद आने के करीब है, पांच-सात मिनट में आ जाएगी, तुम एक बात भीतर स्मरण रखने की कोशिश करो, कि जो भी मैं देखूंगा, जानूंगा कि यह सपना है...जो भी मैं देखूंगा, जानूंगा कि यह सपना है।
तीन महीने तक कोई परिणाम नहीं होंगे। तीन महीने तक तुम दोहराओगे, लेकिन रात सपने में भूल जाओगे। सुबह उठकर याद आएगी कि सोचा था कि जो भी देखूंगा, स्मरण रखूंगा कि सपना है; लेकिन स्मरण न रहा। सपने में पकड़ लिया।
लेकिन तीन महीने के बाद धीरे-धीरे थोड़ी थोड़ी भान की अवस्था आनी शुरू होगी। थोड़ा सा शक पैदा होना शुरू होगा। थोड़ा सा संदेह सरकेगा। सपना भी चलेगा और थोड़ी सी भीतर बेचैनी मालूम होती कि कुछ गड़बड़ है। अभी साफ नहीं होगा कि सपना है। लेकिन एक बेचैनी, कुछ है जो ठीक नहीं मालूम हो रहा, कुछ गड़बड़ है। कुछ उलझ रहा हूं जाल में। ऐसा एक धीमा-धीमा बोध उठना शुरू होगा।
अगर तुमने सतत प्रयास जारी रखा तो तुम धीरे-धीरे पाओगे, छह महीने पूरे होते-होते किसी दिन अचानक ठीक बीच सपने में, नींद न टूटेगी और तुम जाग जाओगे। क्योंकि नींद टूट जाए, फिर तो कोई मतलब नहीं।
नींद टूट जाए, तब तो किसी को भी पता चल जाता है कि सपना था, लेकिन वह पता चलता है सपने में संबंध में जो जा चुका है। उसका कोई मूल्य नहीं है। मूल्य तो वर्तमान का है। अभी इस क्षण का है। एक दिन तुम पाओगे, तीन और छह महीने के बीच किसी दिन अचानक तुम पाओगे कि नींद तो लगी है, तुम भीतर जाग गए। तुम देख रहे हो कि यह सपना है। जैसे ही तुमने देखा है कि यह सपना है, सपना तिरोहित हो जाता है। खाली जगह छूट जाती है। और कहां से सपना तिरोहित होता है और वह जो खाली जगह छोड़ जाता है, वही अ मन है। वह पहली झलक है नो माइंड की। मन के न होने की पहली झलक है।
फिर इसको तुम बढ़ाए चले जाओ। धीरे-धीरे यह रोक का क्रम हो जाएगा। जैसे ही सपना पकड़ेगा, क्षण भी न बीतेगा कि तुम जाग जाओगे। सपना टूट जाएगा। नींद जारी रहेगी। और तुम पाओगे कि नींद में अगर सपना टूट जाता है, तो जागने में विचार टूटने लगते हैं। जैसे ही तुम जागने में विचार करोगे, अचानक भीतर कुछ होश से भर जाएगा और कहेगा कि ये विचार हैं, यह भी सपना है। विचार भी रुक जाएगा।
अगर नींद में सपना टूट जाए, जागने में विचार टूट जाए, तो तुम्हारा संसार छूट गया।
संसार छोड़ने के लिए हिमालय जाने से कुछ भी नहीं होता; घर छोड़ कर विरागी हो जाने से कुछ भी नहीं होता। क्योंकि घर थोड़े ही संसार है! पत्नी, बच्चे, पति थोड़े ही संसार हैं! संसार तो तुम्हारे भीतर देखने के ढंग में छिपा है। मूर्च्छा में छिपा है। तो तुम जहां जाओगे, क्या फर्क पड़ता है? तुम हिमालय चले जाओगे।-...
वही अ मन है। वह पहली झलक है नो माइंड की। मन के न होने की पहली झलक है।...
गुरजिएफ अपने शिष्यों को कहता था, कि जब तक तुम सपना न तोड़ पाओगे, तब तक तुम माया भी न तोड़ पाओगे। और वह ठीक कहता था। और उसने बड़ी अनूठी प्रक्रिया खोजी थी। वह कहता था कि तुम संसार को न तोड़ पाओगे न संसार से मुक्त हो पाओगे अभी तुम सपने से नहीं मुक्त हो सके। संसार से मुक्त होना तो बड़ी दूर की बात है। संसार तो बहुत विराट सपना है, जिसे तुमने जन्मों-जन्मों से देखा है। इतनी बार देखा है कि वह तुम्हारे देखने-देखने से सत्य हो गया है। इतनी परतें जम गई हैं तुम्हारे अनुभव की संसार के साथ, कि आज बिलकुल असंभव है। मानना कि नहीं है। पहले तुम सपना तोड़ो।
तो गुरजिएफ कहता था, अपने साधकों को, वह मैं तुमसे भी कहता हूं, बड़ा कीमती प्रयोग है। करो, तो बड़े परिणाम हो सकते हैं।
सोते वक्त रोज पांच-सात मिनिट, जैसे ही तुम्हें लगे कि अब नींद आने के करीब है, पांच-सात मिनट में आ जाएगी, तुम एक बात भीतर स्मरण रखने की कोशिश करो, कि जो भी मैं देखूंगा, जानूंगा कि यह सपना है...जो भी मैं देखूंगा, जानूंगा कि यह सपना है।
तीन महीने तक कोई परिणाम नहीं होंगे। तीन महीने तक तुम दोहराओगे, लेकिन रात सपने में भूल जाओगे। सुबह उठकर याद आएगी कि सोचा था कि जो भी देखूंगा, स्मरण रखूंगा कि सपना है; लेकिन स्मरण न रहा। सपने में पकड़ लिया।
लेकिन तीन महीने के बाद धीरे-धीरे थोड़ी थोड़ी भान की अवस्था आनी शुरू होगी। थोड़ा सा शक पैदा होना शुरू होगा। थोड़ा सा संदेह सरकेगा। सपना भी चलेगा और थोड़ी सी भीतर बेचैनी मालूम होती कि कुछ गड़बड़ है। अभी साफ नहीं होगा कि सपना है। लेकिन एक बेचैनी, कुछ है जो ठीक नहीं मालूम हो रहा, कुछ गड़बड़ है। कुछ उलझ रहा हूं जाल में। ऐसा एक धीमा-धीमा बोध उठना शुरू होगा।
अगर तुमने सतत प्रयास जारी रखा तो तुम धीरे-धीरे पाओगे, छह महीने पूरे होते-होते किसी दिन अचानक ठीक बीच सपने में, नींद न टूटेगी और तुम जाग जाओगे। क्योंकि नींद टूट जाए, फिर तो कोई मतलब नहीं।
नींद टूट जाए, तब तो किसी को भी पता चल जाता है कि सपना था, लेकिन वह पता चलता है सपने में संबंध में जो जा चुका है। उसका कोई मूल्य नहीं है। मूल्य तो वर्तमान का है। अभी इस क्षण का है। एक दिन तुम पाओगे, तीन और छह महीने के बीच किसी दिन अचानक तुम पाओगे कि नींद तो लगी है, तुम भीतर जाग गए। तुम देख रहे हो कि यह सपना है। जैसे ही तुमने देखा है कि यह सपना है, सपना तिरोहित हो जाता है। खाली जगह छूट जाती है। और कहां से सपना तिरोहित होता है और वह जो खाली जगह छोड़ जाता है, वही अ मन है। वह पहली झलक है नो माइंड की। मन के न होने की पहली झलक है।
फिर इसको तुम बढ़ाए चले जाओ। धीरे-धीरे यह रोक का क्रम हो जाएगा। जैसे ही सपना पकड़ेगा, क्षण भी न बीतेगा कि तुम जाग जाओगे। सपना टूट जाएगा। नींद जारी रहेगी। और तुम पाओगे कि नींद में अगर सपना टूट जाता है, तो जागने में विचार टूटने लगते हैं। जैसे ही तुम जागने में विचार करोगे, अचानक भीतर कुछ होश से भर जाएगा और कहेगा कि ये विचार हैं, यह भी सपना है। विचार भी रुक जाएगा।
अगर नींद में सपना टूट जाए, जागने में विचार टूट जाए, तो तुम्हारा संसार छूट गया।
संसार छोड़ने के लिए हिमालय जाने से कुछ भी नहीं होता; घर छोड़ कर विरागी हो जाने से कुछ भी नहीं होता। क्योंकि घर थोड़े ही संसार है! पत्नी, बच्चे, पति थोड़े ही संसार हैं! संसार तो तुम्हारे भीतर देखने के ढंग में छिपा है। मूर्च्छा में छिपा है। तो तुम जहां जाओगे, क्या फर्क पड़ता है? तुम हिमालय चले जाओगे।-...
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