Sunday, 26 January 2014

ह्रदय मंथन और आप ( kavita)

सुना है सब कल्पनाये है जो ध्यानी की पहली बैठक से शुरू होती है 
कुछ यूँ क्यूँ नहीं करते , कल्पनाओं में वो ही कल्पना करे जो सच हो।

छोड़ दे बाकि सब जो झूठ है और मात्र कोरा भ्रम प्रपंच फैलता हो
सोचेकुछ ऐसा जो सच हो और सच की धरती पे सच का हल चलाता हो

चलो नेति नेति का सिद्धांत बनाये , जो सच नहीं है उसे जड़ से उखाड़े
ध्यान करे ह्रदय से मंथन करे उस समुद्र-पर्वत का सर्प की रस्सी बना। 


























एक तरफ कतार में खड़े आपके राक्षस और एक तरफ आपके ही देवता
माया सुंदरी भी आपकी , और मंथनसे निकले नाग और नग भी आपके।


इस मंथन में जो विष उपजे उसको कंठ तक ले जा के नीलकंठ बने
और जो अमृत रुपी सार मिले उसका पान करे धारण करे शिव सदृश।

शुभ हो, कल्याणकारी हो ,विवेक पूर्ण हो, आपका हर कदम, हर प्रयास
यही सन्देश ओ सार , नेति नेति की महिमा अपार करे भवसागरसे पार।।


ॐ प्रणाम

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