उस सूफी फकीर ने अपने शिष्य को कहा कि अब शास्त्र बंद कर, तेरा पहला पाठ पूरा हुआ, अब भीतर का दीया जला।
ज्योति तेरे भीतर है। अपनी ज्योति जला। दूसरे की ज्योति में थोड़ी—बहुत देर कोई रोशनी में चल ले, यह सदा के लिए नहीं हो सकता, यह सनातन और शाश्वत यात्रा नहीं हो सकती। पराए प्रकाश में हम थोड़ी देर के लिए प्रकाशित हो लें, चाहिए तो होगा अपना ही प्रकाश।
इसलिए कहता हूं ज्ञान और ज्ञान में भेद है। एक ज्ञान, जो तुम्हें दूसरे से मिलता है। उसे तुम सम्हाल कर मत बैठ जाना। यह मत सोच लेना कि मिल गई नाव, भवसागर पार हो जाएगा। दूसरा एक ज्ञान, जो तुम्हारी अंतर्ज्योति के जलने से मिलता है, वही तुम्हें पार ले जाएगा।
ज्योति तेरे भीतर है। अपनी ज्योति जला। दूसरे की ज्योति में थोड़ी—बहुत देर कोई रोशनी में चल ले, यह सदा के लिए नहीं हो सकता, यह सनातन और शाश्वत यात्रा नहीं हो सकती। पराए प्रकाश में हम थोड़ी देर के लिए प्रकाशित हो लें, चाहिए तो होगा अपना ही प्रकाश।
इसलिए कहता हूं ज्ञान और ज्ञान में भेद है। एक ज्ञान, जो तुम्हें दूसरे से मिलता है। उसे तुम सम्हाल कर मत बैठ जाना। यह मत सोच लेना कि मिल गई नाव, भवसागर पार हो जाएगा। दूसरा एक ज्ञान, जो तुम्हारी अंतर्ज्योति के जलने से मिलता है, वही तुम्हें पार ले जाएगा।
No comments:
Post a Comment