हे परम ,
जब भी केंद्र ह्रदय होता है प्रेम सर्वस्व होता है , और जब भी मस्तिष्क केंद्र हो जाता है बहुत तर्क सर उठाते है , ऐसा विचार बनता है कि तर्क के वार से आगे आने वाले हर लौह तर्क शत्रु को खाक कर डालु। फिर हृदय में प्रेम उमड़ता है , शब्द कमजोर हो जाते है और तर्क अर्थहीन … ह्रदय सन्देश देता है कि प्रेम ही है अर्थ जगत का ……
आत्म-गुरु-ज्ञानी ने सदा समझाया , ' तर्क मार्ग से विचलित करेंगे , तर्क का मार्ग राजनीती और नीति का मार्ग है , यदि सांसारिक परंपरागत धार्मिक हो तो तर्क का मार्ग लेना , यदि नीति देनी हो व्यवस्था बनानी हो इस चलानी हो तो तर्क काम आएगा , बहस काम आएगी। परन्तु शिव का मार्ग ह्रदय से है यदि शिव के धाम में प्रवेश करना हो तो मात्र ह्रदय काम आएगा , मौन काम आएगा करुणा काम आएगी प्रेम काम आएगा और मौन कृतज्ञता काम आएगी।
कोई भी धर्म यदि खुद कि विस्थापना के लिए तर्कशास्त्र का रास्ता अपना ले तो संसारमुखी हो जाता है , खुद को स्थापित करने के लिए कोई धर्म गुरु तर्क का रास्ता अपनाए तो खुद को पदस्थापित करने के लिए सांसारिक गुरु बन सकता है , जयघोष भी सम्भव है। परन्तु परम की दृष्टि में वो सांसारिक ही है , जो उसके राज्य के लिए व्यर्थ है।
धर्म और धर्म गुरु इसी मायाजाल का शिकार होते देखे गए है और आध्यात्मिकता जो बहुत अलग है परपरागत धर्म से ; वो भी अध्यात्मिक गुरुओं द्वारा तार्किक होकर अपना मान खोती देखी गयी है.
कुछ मूल सिद्धांत है आध्यात्मिकता के - व्यापक अर्थ में प्रेम , करुणा , आभार, मौन और स्वतः फैलने वाली सुगंध। ।
अर्थात पृकृति से एकात्मकता का अनुभव के साथ ही ये सारे गुण भी स्वतः दिखने लगते है।
ॐ प्रणाम
जब भी केंद्र ह्रदय होता है प्रेम सर्वस्व होता है , और जब भी मस्तिष्क केंद्र हो जाता है बहुत तर्क सर उठाते है , ऐसा विचार बनता है कि तर्क के वार से आगे आने वाले हर लौह तर्क शत्रु को खाक कर डालु। फिर हृदय में प्रेम उमड़ता है , शब्द कमजोर हो जाते है और तर्क अर्थहीन … ह्रदय सन्देश देता है कि प्रेम ही है अर्थ जगत का ……
आत्म-गुरु-ज्ञानी ने सदा समझाया , ' तर्क मार्ग से विचलित करेंगे , तर्क का मार्ग राजनीती और नीति का मार्ग है , यदि सांसारिक परंपरागत धार्मिक हो तो तर्क का मार्ग लेना , यदि नीति देनी हो व्यवस्था बनानी हो इस चलानी हो तो तर्क काम आएगा , बहस काम आएगी। परन्तु शिव का मार्ग ह्रदय से है यदि शिव के धाम में प्रवेश करना हो तो मात्र ह्रदय काम आएगा , मौन काम आएगा करुणा काम आएगी प्रेम काम आएगा और मौन कृतज्ञता काम आएगी।
कोई भी धर्म यदि खुद कि विस्थापना के लिए तर्कशास्त्र का रास्ता अपना ले तो संसारमुखी हो जाता है , खुद को स्थापित करने के लिए कोई धर्म गुरु तर्क का रास्ता अपनाए तो खुद को पदस्थापित करने के लिए सांसारिक गुरु बन सकता है , जयघोष भी सम्भव है। परन्तु परम की दृष्टि में वो सांसारिक ही है , जो उसके राज्य के लिए व्यर्थ है।
धर्म और धर्म गुरु इसी मायाजाल का शिकार होते देखे गए है और आध्यात्मिकता जो बहुत अलग है परपरागत धर्म से ; वो भी अध्यात्मिक गुरुओं द्वारा तार्किक होकर अपना मान खोती देखी गयी है.
कुछ मूल सिद्धांत है आध्यात्मिकता के - व्यापक अर्थ में प्रेम , करुणा , आभार, मौन और स्वतः फैलने वाली सुगंध। ।
अर्थात पृकृति से एकात्मकता का अनुभव के साथ ही ये सारे गुण भी स्वतः दिखने लगते है।
ॐ प्रणाम
No comments:
Post a Comment