साक्षी तत्व एक ऐसा जादुई शब्द है जिसके चारो तरफ
धर्म और अध्यात्म परिक्रमा करते से दिखते है , कोई
धार्मिक ऐसा नहीं जिसने इसे न छुआ हो और कोई
अध्यात्मिक सद गुरु नहीं जिसने स्वयं अनुभव करके
अपने शिष्यो को इस अद्भुत विलक्षण अतत्व के
अनुभव और सार्थकता समझने की प्रेरणा न दी हो।
सभी ने अपने अपने तरीके से समझने एक
यही कोशिश की है , की संसार भर के प्रचलित
परंपरागत धर्म या फिर अध्यात्म की साक्षी एकमात्र
वैज्ञानिक बुनियाद या नीव है , समस्त धर्म की खोज
और यात्रा की और इस साक्षी पर ही सारे उपनिषद
घूमते हैं, इर्द-गिर्द , सारे अध्यात्मिक और धार्मिक
सिद्धांत और उनके सारे इशारे इस साक्षी को दिखाने
के लिए हैं।
एक बार यदि साक्षी पकड़ में आ जाये तो बस वही से
आत्मन को अनंत कि यात्रा का टिकिट मिल जाता है।
और जब सवार हो गए इस वायुयान / रॉकेट पे तो
उसको छू भी लेंगे , और अगर छू लिया तो आत्मसात
भी हो ही गए।
यहाँ पे मनोरंजक बात ये की घूम के गोल घेरा फिर से
ध्यान पे आ गया , यानि कि ध्यान ही वो अद्भुत और
विलक्षण क्रिया - अक्रिया है जो पहले साक्षी से भेंट
करवाएगी , फिर आपको नहीं , क्यूंकि आप तो
पंचतत्व जन्य शरीर है . आपके अंदर जो साक्षी है
उसको अनंत यात्रा पे ले जायेगी। और परम से
आत्मसात भी साक्षी का ही होगा। पंचतत्व यही रह
जायेंगे।
तो ध्यान इसी लिए अध्यात्मिक यात्रा के लिए प्रथम
सीढ़ी कि तरह से देखा जाना और अनुभव किया गया
है।
के साथ।
जय हो !
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