सिर्फ एक दृष्टि से धारणा बदलती है ऐसा कैसे ? वो ही कहा गया कई बार , कई कई बार सुना गया , पर किस एक उचित समय और परिस्थिति में ह्रदय पे आघात कर जाता है और ह्रदय पे आघात के साथ दृष्टि बदलती है , संसार बदल जाता है । " यथा दृष्टितथा सृष्टि " तो सुना होगा आपने कई कई बार। एक वाक्य और एक शब्द अलग अलग प्रभाव डालता है, हर बार, कैसे ! आपकी अपनी दृष्टि और मनःस्थति के अनुसार ही शब्द और भाषा कार्य करते है।
मनःस्थति क्या है , ये अंतर_तरंग है , और दृष्टि क्या है , ये सिर्फ जरिया है या साधन है तरंगो को आंदोलित करने का।, जैसे अन्य चार (या फिर सात) इन्द्रियाँ साधन है आपकी अंतर संतुष्टि का , वैसे ही दृष्टि है।
महत्वपूर्ण इसलिए कि दृष्टि जिस तरंग को आंदोलित करती है वो सीधा मस्तिष्क तक जाती है , और मस्तिष्क तो आपके शरीर का प्रधान है वही से सारे कार्य कि प्रेरणा मिलती है। मस्तिष्क का ही छद्म एक नाम मन है , जो प्रेरित करता है , या कह ले ढकेलता है शरीर को , वांछित को पाने के लिए। और ह्रदय महत्वपूर्ण इसलिए क्यूंकि यहाँ से सारे शरीर में खून दौड़ता है। और ये अति महत्त्व पूर्ण इसलिए क्यूंकि आपके मस्तिष्क द्वारा पैदा कि गयी तरंगो का खामियाजा (नुक्सान ) और पुरस्कार ( फ़ायदा ) सबसे ज्यादा इसी को होता है। और भाव सीधा तरंगो से जुड़ता है।
ऊर्जा दो भागो में विभाजित है अपने अति किनारो के कारन वर्ना मध्य में ये सिर्फ ऊर्जा है नकारात्मक ऊर्जा और सकारात्मक ऊर्जा , पहली आपके ह्रदय को नुक्सान पहुंचती है जिसके कारन शरीर अस्वस्थ होने लगता है , और सकारात्मक ऊर्जा कि तरफ जब आपके प्रयास होने लगते है तो बेहतर परिणाम शरीर और मन (चंचल मस्तिष्क ) पर देखे गए है।
मनःस्थति क्या है , ये अंतर_तरंग है , और दृष्टि क्या है , ये सिर्फ जरिया है या साधन है तरंगो को आंदोलित करने का।, जैसे अन्य चार (या फिर सात) इन्द्रियाँ साधन है आपकी अंतर संतुष्टि का , वैसे ही दृष्टि है।
महत्वपूर्ण इसलिए कि दृष्टि जिस तरंग को आंदोलित करती है वो सीधा मस्तिष्क तक जाती है , और मस्तिष्क तो आपके शरीर का प्रधान है वही से सारे कार्य कि प्रेरणा मिलती है। मस्तिष्क का ही छद्म एक नाम मन है , जो प्रेरित करता है , या कह ले ढकेलता है शरीर को , वांछित को पाने के लिए। और ह्रदय महत्वपूर्ण इसलिए क्यूंकि यहाँ से सारे शरीर में खून दौड़ता है। और ये अति महत्त्व पूर्ण इसलिए क्यूंकि आपके मस्तिष्क द्वारा पैदा कि गयी तरंगो का खामियाजा (नुक्सान ) और पुरस्कार ( फ़ायदा ) सबसे ज्यादा इसी को होता है। और भाव सीधा तरंगो से जुड़ता है।
ऊर्जा दो भागो में विभाजित है अपने अति किनारो के कारन वर्ना मध्य में ये सिर्फ ऊर्जा है नकारात्मक ऊर्जा और सकारात्मक ऊर्जा , पहली आपके ह्रदय को नुक्सान पहुंचती है जिसके कारन शरीर अस्वस्थ होने लगता है , और सकारात्मक ऊर्जा कि तरफ जब आपके प्रयास होने लगते है तो बेहतर परिणाम शरीर और मन (चंचल मस्तिष्क ) पर देखे गए है।
अध्यात्म का पूरा प्रयास है कि आपका ह्रदय सकारात्मक ऊर्जा से भर जाये , धर्म का भी यही प्रयास है कुछ अलग तरीके से , कुछ को समझ आता है कुछ को नहीं ,
जिस को जो रास्ता या के धारा समझ आता है, उसको अपनाये , पर निष्कर्ष यही है कि वस्तुतः संतुलन हर परिस्थिति में करना ही चाहिए , मध्य बिंदु सर्वोत्तम है। ह्रदय और भाव को स्थिरता यही से मिलती है।
जिस को जो रास्ता या के धारा समझ आता है, उसको अपनाये , पर निष्कर्ष यही है कि वस्तुतः संतुलन हर परिस्थिति में करना ही चाहिए , मध्य बिंदु सर्वोत्तम है। ह्रदय और भाव को स्थिरता यही से मिलती है।
अध्यात्मिक यात्रा में अंतर तरंग का स्थिर होना और ऊपर को आंदोलित होना आवश्यक है। , ऊर्जा चक्र भी यही भाव तरंग को स्थिर करके उभयमान बनाने का कार्य करते है। सब तरफ से आपके लिए उभयमान परिस्थतियां ही कार्य करती दिखायी दे रही है।
संतुलन , मध्य में स्थिरता , सस्त्रधार का खिलाना और निर्वाण। और वास्तव में कुछ बचता ही नहीं। जो बोझ हो , जो संताप दे सके। जो ह्रदय पे आघात कर सके , और जो मस्तिष्क को आंदोलित कर सके। दृष्टि सम हो जाती है , तो मन कि चंचलता भी थम जाती है।
मित्रो बहुत सारी शुभकामनाओ के साथ।
ॐ प्रणाम
प्रभु प्रणाम ।। ॐ सह नाववतु ।। ॐ ~ ॐ ~ ॐ ~ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।। ~♥श्री♥~ ।।
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