Thursday 25 May 2017

मैं समय हूँ

मैं विज्ञान शिक्षित नहीं , कला की विद्यार्थी रही हूँ , पर विषय के ऊपर बढ़ते ही सभी विषय एक हो गए , कोई अंतर ही नहीं बचा , मैं लेखिका भी नहीं न ही सगीतकार और न ही साहित्यकार और कवियत्री हूँ , जो भी है सब उसी का है , मैं तो सच में महामूर्ख हूँ , जिसको थोड़ा थोड़ा सब पता था , पर पूरा कुछ भी नहीं , उसी से जन्मे कुछ अनुभव कहना अच्छा लगता है , यूँ कहें ! उस विस्तृत से भरने के लिए थोड़ी जगह बन जाती है ।
... वो ही ध्यान में उभरे कुछ ख्याल आपसे बांटती हूँ
घडी समय पल जेहन में चल रहे है , इनके रूप , इनके मिलान , विस्तृत से और न्यूनतम से , तो ख्याल आया की एक प्राकृतिक घडी हमारे अपने अंदर भी है जो हमको हमारे अच्छे बुरे वख्त की सुचना देती है और तो और हमारी देह को भी अपने समय से संचालित करती है , जिसमे हम सब सुख अनुभव करते है , हम सबको अच्छा लगता है , भूख लगे तो खाना खा लें , प्यास लगे तो ठंडा पानी मिल जाये , नींद आये तो बिस्तर , और शौच जाना हो तो साफ़ शोचालय हो और सबसे महत्वपूर्ण है सुबह सुबह का उठना अपनी प्राकतिक घडी के अनुसार यदि उठ सके तो दिन सेहतमंद और उत्साह से भर जाता है। नकली घडी भारीपन देती है। ये हमारी देह को सुख देता है और देह की घडी इसके लिए नियम बद्ध भी है और फिर हम अपने संवेदनाओ के प्रति भी सावधान रहते है , वे सूचनाएं जो हमारा संवेदनशील सूचनातंत्र हमें देता है हम भरोसा करते है , कभी कभार हिचक होती है पर फिर भी यदि हम अपने पे भरोसा करते है , मतलब अपनी सूचनातंत्र पे भी भरोसा करते है , जिनको आप-हम नियाहत अंदरूनी अनुभव का नाम देते है। बिलकुल उसी की तर्ज पे हमने समय का मापक तैयार किया , माने मौसम के मापक , घड़ी पल के मापक , गति के माप के लिए सूर्य और चंद्र को आधार बनाया , और बना ली कृतिम घडी , इस घडी को मुख्य अनुशासन दंड की तरह उपयोग में लाया जाता है पूरे संसार में सूर्य और चंद्र की गति में भेद के कारन इसकी गति भी प्रभावित होती है जिसको उस देश की भौगोलिक स्थिति के अनुसार मिलाया जाता है , और वो देश अपनी उसी समय की घड़ी से संचालित होता है।
ये व्यवस्था इतनी ज्यादा टेक्निकल है की जितनी देह कम से कम उतनी घडिया तो है ही , या उससे भी ज्यादा , फिर वो मान और प्रतिष्ठा के अनुसार संकलित भी है , पर काम सब का एक ही है समय से अवगत करना। हमारी देह अब तक अपनी घडी को भूल चुकी है , हमारे सोना जागना उठना व्यायाम भोजन आदि सब नकली घडियो पे टिक गए। नकली घडियो ने हमें एक चीज़ में और मदद की वो है ज़बरदस्ती देह को ठेलना अलार्म के नाम पे , क्यूंकि अब काम ही नहीं चलता , अलार्म से जागना समय पे निकलना , फिर छुटी का अलार्म बोले तो माने छुट्टी मिले तो साधन भी नकली घडी से चलते है उनको पकड़ना और घर वापिस आना फिर घड़ी के बनाये समय पे सो जाना। ऐसा ही कुछ हम सबके साथ दुर्घटना घट रही है। एक घडी जो हमारी है , खास हम साथ लेके आये है और साथ लेके जायेंगे , उसको हमने अपने हठयोग की बलि चढ़ा दिया।
अब ये घड़ी भी बिगड़ती है तो हम मुश्किल में पड़ जाते है , हमारा स्वस्थ जवाब देने लगता है , तब हमें कुछ जानकार इस घडी की याद दिलाते है , और कहते है , भोरकाल में टहलना अच्छा है , फिर हल्का भोजन नाश्ते के रूप में करना ही चाहिए , दिन में गरिष्ट भोजन देह पचा नहीं पाती , दिन १२ बजे के बाद देह को अगले भोजन की आवश्यकता है तब सेहत वाला भोजन लेना अच्छा है , संध्याकाळ में सुपाच्य हल्का भोजन करना अच्छा है ,और सूर्यास्त के बाद तरल लेना ठीक है , बाकि न ही लें तो अच्छा क्यूंकि आपका पाचन तंत्र प्राकृतिक है और सूर्यास्त के साथ ही उसे विश्राम चाहिए। पर ये सब नकली घड़ी से करेंगे तो असर ज़रा ज़ोर आज़माइश वाला ही होगा। अपनी घड़ी से करेंगे तो देह सुख पायेगी। आप अपनी घड़ी पे भरोसा कर सकते है।
हमारे पुराने धुरंधर ज्ञानी ऐसे भी थे जो देह की घड़ी से गणना शुरू करके मौसम कृषि धरती की उथल पुथल और अंतरिक्ष तक की गणना कर लेते थे।
चलिए उतना न सही , पर इतना तो सोचिये की आपकी भी निहायत अपनी एक बहुमूल्य घड़ी आप में ही रखी है , जिसको आज भी योग आदि में मुख्य आधार बनाया गया है। श्वसन से बेहतरीन समय की सूक्ष्तम गणना संभव है। पलक झपकना , ह्रदय की गति , नाड़ी का फड़कना , तपकता हुआ नाभि प्रदेश
अब ..... आपकी घडी अगर उचित काम नहीं रही , या आपको संकेत दे रही है अपनी खराबी का , तो कैसे सही करेंगे ! कभी ये दृश्य संकेत देती है तो कभी अदृश्य संकेत भी देती है , दृश्य में साफ़ दिखता है , समय का ये पल....इस कारन से ..... ठीक काम नहीं कर रहा और देह पे इसका सही असर नहीं , पर.... अदृश्य कारन के लिए जब ये घडी संकेत करती है तो आपकी संवेदनशील तंरगे ही उसे पकड़ती है। वो समझती है की आपके द्वारा किस पल में , आपके द्वारा क्या काम सही नहीं हुआ , और वो नन्हा पल जो आपकी ख़राब सोच या ख़राब कर्म का साक्षी हुआ अब वो बँध गया है आपके किये उस पल की सोच में , अपनी ही घडी में घूमता सबसे छोटा चक्र अब मुश्किल में है उसके असमंजस और दुविधा के कारण ,अन्य घूमते चक्र भी प्रभावित है और अब आप सोच भी नहीं सकते ये छोटे चक्र का नन्हा पल किस कदर आपकी घडी के बड़े समय को अपनी गिरफ्त में ले सकता है।
अब देखिये ! समस्या कही और दिखाई पड़ रही है - घडी का मध्य चक्र ठीक से नहीं चल रहा अटक अटक के चल रहा है , आपकी पूरी की पूरी घड़ी की व्यवस्था उलझन में, आपकी बुद्धि के समझ के बाहर हो गया , क्यूंकि उस समयचक्र पे आपको कोई गलती नजर नहीं आ रही। कभी कभी ये ही ऐसे पल हमारे जन्मो के चक्र पे भी हावी हो जाता है , और हमारी धूमिल हुई, बिलकुल ही ख़राब हुई या के मंद हुई यादास्त की समझ के बाहर हो जाता है के गलती आखिर हुई कहाँ ! .... जन्मो की बात है ...... अब बताने वाला भी कोई नहीं , माता पिता भाई बहन सब बदल चुके। आप यकीं कर सकते है के आपकी अपनी देह की घडी के पास पूरी सूचना है , जब आप अपनी देह घड़ी को समझेंगे तो वो आपको बताएगी उसका कौन सा पुर्जा कैसे ख़राब हुआ।
जैसे घड़ी में छोटे बड़े चक्के एक दूसरे में फँस के घूमते है , वैसे ही हमारे समय के चक्के भी छोटे बड़े एक दूसरे में फंस के आगे बढ़ते है , पल घडी माह सप्ताह साल और साल साल करते युग समय के चाकऔर पे चढ़ा युग भी अंत में चार बड़े चक्र बनके घूम रहा है। सबसे बड़ा समय का पहिया इसका अपना ही चक्र है। ।
कोई बिरला पहले गति का ज्ञान ले , फिर संज्ञान में ले और फिर पुरुषार्थ से उन चक्को की गति को नियंत्रित करे , उल्टा घूमना असंभव तो नहीं पर सहज संभव भी नहीं। अथक प्रयास से गति कम ही हो जाये वो ही काफी है। इससे कर्मो को तेज गति से आगे बढ़ने में रूकावट आएगी , कम से कम बिना सोचे समझे नए कर्मो का आरम्भ तो नहीं ही होगा।
और इस तरह पिछले कर्म खपेंगे तो और नए इतनी जल्दी बनेंगे नहीं। तो कर्म को काटने की योजना आसान होगी। वोई सिद्धांत जब चढ़ी चर्बी देह से हटाने की जरुरत हो तो क्या करते है ? नयी लेना कम करदेते है या आवश्यकता पड़े तो बिलकुल बंद भी करना पड़ता है। फिर संजोयी चर्बी खपना शुरू होती है। वोई नियम तो एक ही है।
अनजान व्यक्ति जो घड़ी की बनावट से परिचित नहीं उसके लिए निदान बहुत दूर की बात है समझ ही नहीं पायेगा चक्र कैसे कैसे आपस में ही जुड़े गुथंगुथा हो के घूम रहे है , किस चक्र को छेड़ें बिना जाने और अधिक सत्यानास हो जाये। एक कुशल जानकर / एक कुशल घड़ीसाज की तरह ज़ूम लेंस के जरिये घडी के महीन से महीन चक्र में जाके मर्ज का पता लगा लेते है। और निदान भी संभव है। पर ये काम स्वयं का है उधारी का नहीं। क्युकी ये आत्मा और परमात्मा का दरबार है आपका मनुष्यनिर्मित नहीं , वहां दूसरे का किया खुद को नहीं लगता , घूस नहीं चलती , अपना कर्म अपना फल , अपना समय अपनी घड़ी और इस घड़ी में घूमते हुए जन्मो के चक्र , इस जन्म के चक्र , साल - माह - दिन - घंटा - घड़ी - पल के चक्र , खुद को समझने है , खुद को ही दुरुस्त करने है , जो दृष्टिगत है वो भी , और जो दृष्टिगत नहीं अदृश्य , है वो भी।
वो कुशलता , वो कारीगरी , सब परमात्मा ने पहले से दी हुई है।
कुछ कही से सीखने लेने की जरुरत ही नहीं।
आपकी यात्रा के सहायक, सभी उपाय , सभी यंत्र , आपके अंदर ही है , और तो और , थोड़ी गड़बड़ भी हो तो आपके ही पास निदान भी मौजूद है। पर हाँ , उसके लिए समझना तो जरुरी है की कम क्या करना है , क्या आवश्यकता से अधिक त्रास दे रहा है। फिर वोई ; इसके लिए खुद से तो मिलना ही पड़ेगा। और खुद से मिलने के लिए ...... अपना गुरु तत्व जागृत तो करना पड़ेगा, वो ही गहराई से समझायेगा ।
आपो गुरु आपो भवः
LATA TEWARI·THURSDAY, 25 MAY 2017

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