गुरजिएफ एक कहानी कहा करता था:-
एक जंगल में एक सम्राट का आना हुआ। फिर
दस्तरखान बिछा -भोजन का वक्त हुआ।
बडे बडे बहुमूल्य पकवान बनाकर लाये गये थे।
बडे बडे बहुमूल्य पकवान बनाकर लाये गये थे।
थालियॉं सजी। बडा आयोजन हुआ।
कुछ चींटियों को बास लगी- चींटिया गयी।
कुछ चींटियों को बास लगी- चींटिया गयी।
जो सदेंशवाहक चींटिया थीं खबर लेने जाती थी।
ऐसा भोजन तो उन्होंने कभी देखा ही नहीं था।
ऐसा रंग बिरंगा भोजन,ऐसा सुवास...।
जैसे स्वर्ग उतर आया पृथ्वी पर ।
नाचती हुई लौटी, मगन हुई लौटी।
जैसे स्वर्ग उतर आया पृथ्वी पर ।
नाचती हुई लौटी, मगन हुई लौटी।
खबर दी ओर चींटिया को ।चींटियों में तो एकदम तूफान आ गया।
चींटिया विक्षिप्त होने लगी- बाते सुन सुनकर मूर्क्षित होने लगी।
ऐसा भोजन,इतनी इतनी थालियॉं, ऐसी गंध....बास
ही ऐसी कि जाने कि तो किसको सुध रही।
एक दूसरे को बताने में ऐसी उत्तेजना फैली कि चींटियों का जो राजा था
बहुत परेशान हुआ। उसने कहा ये तो पगला जायेंगीं।
उसने कहा तुम रूको पहले मैं
अपने वजीरों को लेकर जाता हूँ
पक्का पता लगाकर आता हूँ |
वजीरों को लेकर गया। देखा कि हालत तो ठीक
ही थी, जो खबर दी गई है। मगर जब बात सुनकर
चींटियों की यह हालत हुई जा रही है लडखडा कर
गिर रहीं हैं। बेहोश हो रही हैं जो इस भोजन के
पास आकर उनकी क्या गति होगी? अपने
वजीरों से कहा’- हम क्या करें?
तो बूढे बडे वजीर ने कहा- जो आदमी करते हैं
वही हम भी करें।मजबूरी में हमें आदमी की नकल
करनी पडेगी क्योंकि चींटियों के इतिहास में इस
प्रकार की घटना पहले कभी घटी नहीं, आदमियों के
इतिहास में घटती रही है।
सम्राट ने कहाः मैं समझा नहीं। चींटियों के सम्राट ने कहा मैं कुछ समझा नहीं।
उन्होंने कहाकि हम एक नक्शा बनायें।, नक्शें में
थालियॉं बनायें, थालियों में रंगबिरंगें भोजन भरें।
और नक्शें को ले चलें और बिछा दें और चींटियों से
कहे देखो-ऐसे ऐसे भोजन, ऐसी ऐसी थालियॉं.... वे
नक्शें में मस्त हो जायेंगी, न यहॉं तक आएंगी न झंझट होगी।
और यही हुआ।
नक्शा बनाया गया,
नक्शा लाया गया और
चींटियों का जो कहना क्या-
बैंड बाजे, नाच कृद हुआ, स्वागत समारोह हुआ।
रात भर चींटियां सोयी नहीं
- नक्शे पर घूम रही हैं,
इधर से उधर आ जा रही हैं।
यह रंग वह रंग।
होशियार वजीरों ने थोडी सुगंध भी छिडक दी नक्शों पर।
नासापुट चींटियों के भर गये।
चींटियां भूल ही गई भोजन की बात।
गुरजिएफ कहता था कि चींटियां अभी भी नक्शे से
उलझी हैं, नक्शे से चिपकी पड़ी हैं नक्शे
का मजा ले रहीं हैं।
और चींटियों के वजीर ने ठीक कहा कि हमें आदमियों की नकल करनी पडेगी।
ऐसे ही वेद हैं, एक नक्शा,
ऐसे ही कुरान है,एक नक्शा,
ऐसे ही बाईबिल है तीसरा नक्शा ।
और
लोग चींटियों की तरह नक्शे से उलझे हैं।
कोई वेद से चिपका है कोई कुरान से, कोई बाईबिल से।
ऑंखें फूटी जा रही हैं उनकी वेद पढ पढकर, मस्तिष्क भरमा जा रहा है।
लोग गीता ही पढ पढकर डोल रहे हैं।
वही चींटियों की हालत है।
ओशो-‘‘
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