सीमाएँ न फैलाओ
☞ फैलते जाओ ☜
अध्याय 8
सात साथी मीरदाद से मिलने नीड़ में जाते हैं
जहाँ वह उन्हें अँधेरे में काम करने से
सावधान करता है
*************************************
नरौन्दा :- उस दिन मैं और मिकेयन
प्रभात की प्रार्थना में गए ही नहीं ।
शमदाम को हमारी अनुपस्थिति आखिर
और यह पता लग जाने पर
कि हम रात को मुर्शिद से मिलने गए थे ।
वह बहुत अप्रसन्न हुआ ।
फिर भी उसने अपनी अप्रसन्नता प्रकट नहीं की;
उचित समय की प्रतीक्षा करता रहा ।
बांकी साथी हमारे व्यवहार से बहुत
उत्तेजित हो गये थे और उसका
कारण जानना चाहते थे ।
कुछ ने सोचा कि हमें हमें
प्रार्थना में शामिल न होने
की सलाह मुर्शिद ने दी थी ।
अन्य कुछ साथियों ने
उसकी पहचान के सम्बन्ध में
कौतूहलपूर्ण अटकलें लगाते हुए कहा
कि अपने आपको केवल हम पर
प्रकट करने के लिए मुर्शिद ने हमें रात को अपने पास बुलाया था ।
कोई भी यह मानने को तैयार नहीं था
कि मीरदाद ही गुप्त रूप से नूह की
नौका में सवार होने वाला व्यक्ति था ।
कि मीरदाद ही गुप्त रूप से नूह की
नौका में सवार होने वाला व्यक्ति था ।
किन्तु सभी उससे मिलने
और अनेक बिषयों पर
उससे प्रश्न पूछने के इच्छुक थे ।
मुर्शिद की आदत थी कि जब वे
नौका में अपने कार्यों से मुक्त होते
तो अपना समय काले खड्ड के
कगार पर टिकी गुफा में बिताते ।
इस गुफा को हम आपस में नीड
कहकर पुकारते थे ।
और अनेक बिषयों पर
उससे प्रश्न पूछने के इच्छुक थे ।
मुर्शिद की आदत थी कि जब वे
नौका में अपने कार्यों से मुक्त होते
तो अपना समय काले खड्ड के
कगार पर टिकी गुफा में बिताते ।
इस गुफा को हम आपस में नीड
कहकर पुकारते थे ।
उसी दिन दोपहर,
शमदाम के अतिरिक्त हम सबने उन्हें वहां ढूंढ़ा
और ध्यान में डूबे हुए पाया ।
शमदाम के अतिरिक्त हम सबने उन्हें वहां ढूंढ़ा
और ध्यान में डूबे हुए पाया ।
उनका चेहरा चमक रहा था;
वह और भी चमक उठा
जब उनहोंने आँखें ऊपर उठाई
और हमारी ओर देखा ।
वह और भी चमक उठा
जब उनहोंने आँखें ऊपर उठाई
और हमारी ओर देखा ।
मीरदाद:- कितनी जल्दी तुमने
अपना नीड़ ढूंढ़ लिया है ।
मीरदाद तुम्हारी खातिर इस बात पर खुश है ।
अपना नीड़ ढूंढ़ लिया है ।
मीरदाद तुम्हारी खातिर इस बात पर खुश है ।
अबिमार:- हमारा नीड़ तो नौका है ।
तुम कैसे कहते हो कि यह गुफा हमारा नीड़ है ?
तुम कैसे कहते हो कि यह गुफा हमारा नीड़ है ?
मीरदाद:- नौका कभी नीड़ थी |
अबिमार:- और आज ।
अबिमार:- और आज ।
मीरदाद:- अफ़सोस !
केवल एक छुछुंदर का बिल ।
केवल एक छुछुंदर का बिल ।
अबिमार:- हाँ, आठ प्रसन्न छछूंदर और नौवां मीरदाद ।
मीरदाद:- कितना आसान है मजाक उड़ाना;
समझना कितना कठिन ।
पर मजाक ने सदा मजाक उड़ाने
वाले का मजाक उड़ाया है ।
अपनी जिव्हा को व्यर्थ कष्ट क्यों देते हो ।
समझना कितना कठिन ।
पर मजाक ने सदा मजाक उड़ाने
वाले का मजाक उड़ाया है ।
अपनी जिव्हा को व्यर्थ कष्ट क्यों देते हो ।
अबिमार:- मजाक तो तुम हमारा उड़ाते हो जब हमें छछूंदर कहते हो ।
हमने ऐसा क्या किया है
कि हमें यह नाम दिया जाये ?
क्या हमने हजरत नूह की
ज्योति को जलाये नहीं रखा ?
क्या हमने इस नौका को,
जो कभी मुट्ठी भर
भिखारियों के लिये एक कुटिया-मात्र थी,
सबसे अधिक समृद्ध महल से भी
ज्यादा समृद्ध नहीं बना दिया ?
क्या हमने इसकी सीमाओं का
दूर तक विस्तार नहीं किया
जब तक कि यह एक
शक्तिशाली साम्राज्य नहीं बन गई ?
यदि हम छछूंदर हैं
तो निःसंदेह शिरोमणि हैं
हम बिल खोदने वालों में ?
हमने ऐसा क्या किया है
कि हमें यह नाम दिया जाये ?
क्या हमने हजरत नूह की
ज्योति को जलाये नहीं रखा ?
क्या हमने इस नौका को,
जो कभी मुट्ठी भर
भिखारियों के लिये एक कुटिया-मात्र थी,
सबसे अधिक समृद्ध महल से भी
ज्यादा समृद्ध नहीं बना दिया ?
क्या हमने इसकी सीमाओं का
दूर तक विस्तार नहीं किया
जब तक कि यह एक
शक्तिशाली साम्राज्य नहीं बन गई ?
यदि हम छछूंदर हैं
तो निःसंदेह शिरोमणि हैं
हम बिल खोदने वालों में ?
मीरदाद:- हजरत नूह की ज्योति जल तो रही है,
किन्तु केवल वेदी पर ।
यह ज्योति तुम्हारे किस काम की
यदि तुम स्वयं वेदी न बने,
और नहीं बने तुम्हारे ह्रदय ईंधन और तेल ?
नौका इस समय सोने चांदी
से बहुत अधिक लदी हुई है;
इसलिए इसके जोड़ चर्रा रहे हैं,
यह जोर से डगमगा रही है
और डूबने को तैयार है ।
किन्तु केवल वेदी पर ।
यह ज्योति तुम्हारे किस काम की
यदि तुम स्वयं वेदी न बने,
और नहीं बने तुम्हारे ह्रदय ईंधन और तेल ?
नौका इस समय सोने चांदी
से बहुत अधिक लदी हुई है;
इसलिए इसके जोड़ चर्रा रहे हैं,
यह जोर से डगमगा रही है
और डूबने को तैयार है ।
जबकि माँ-नौका जीवन से भरपूर थी
और उसमे कोई जड़ बोझ नहीं था;
इसलिये सागर उसके विरुद्ध शक्तिहीन था ।
जड़ बोझ से सावधान,
और उसमे कोई जड़ बोझ नहीं था;
इसलिये सागर उसके विरुद्ध शक्तिहीन था ।
जड़ बोझ से सावधान,
मेरे साथियों ।
जिस मनुष्य को अपने
ईश्वरत्व में दृढ़ विश्वास है
उसके लिये सबकुछ जड़ बोझ है ।
वह संसार को अपने अंदर धारण करता है,
किन्तु संसार का बोझ नहीं उठाता |
जिस मनुष्य को अपने
ईश्वरत्व में दृढ़ विश्वास है
उसके लिये सबकुछ जड़ बोझ है ।
वह संसार को अपने अंदर धारण करता है,
किन्तु संसार का बोझ नहीं उठाता |
मैं तुमसे कहता हूँ…..
यदि तुम अपने सोने और चांदी को समुद्र में फेंककर नाव को हल्का नहीं कर लोगे,
तो वे तुम्हे अपने साथ समुद्र की
तह तक खींच ले जायेंगे ।
यदि तुम अपने सोने और चांदी को समुद्र में फेंककर नाव को हल्का नहीं कर लोगे,
तो वे तुम्हे अपने साथ समुद्र की
तह तक खींच ले जायेंगे ।
क्योंकि मनुष्य जिस वास्तु
को कसकर पकड़ता है,
वही उसको जकड लेती है
को कसकर पकड़ता है,
वही उसको जकड लेती है
वस्तुओं को अपनी पकड़
से मुक्त कर दो
से मुक्त कर दो
यदि तुम अपनी जकड से बचना चाहते हो ।
किसी भी वस्तु का मोल न लगाओ,
क्योंकि साधारण से साधारण
वस्तु भी अनमोल होती है ।
क्योंकि साधारण से साधारण
वस्तु भी अनमोल होती है ।
तुम रोटी का मोल लगाते हो ।
सूर्य,
धरती,
वायु,
धरती,
सागर तथा मनुष्य के पसीने
और चतुरता का मोल क्यों नहीं लगाते
जिनके बिना रोटी हो ही नहीं सकती थी ?
सूर्य,
धरती,
वायु,
धरती,
सागर तथा मनुष्य के पसीने
और चतुरता का मोल क्यों नहीं लगाते
जिनके बिना रोटी हो ही नहीं सकती थी ?
किसी भी वस्तु का मोल न लगाओ,
कहीं ऐसा न हो तुम
अपने प्राणों का मोल लगा बैठो
मनुष्य के प्राण उस वस्तु से
अधिक मूल्यवान नहीं होते
जिस वस्तु को वह मूल्यवान मानता है ।
कहीं ऐसा न हो तुम
अपने प्राणों का मोल लगा बैठो
मनुष्य के प्राण उस वस्तु से
अधिक मूल्यवान नहीं होते
जिस वस्तु को वह मूल्यवान मानता है ।
ध्यान रखो…..
तुम अपने अनमोल प्राणों को कहीं
सोने जितना सस्ता न मान लो
नौका की सीमाएँ तुमने
मीलों दूर तक फैला दी हैं ।
तुम अपने अनमोल प्राणों को कहीं
सोने जितना सस्ता न मान लो
नौका की सीमाएँ तुमने
मीलों दूर तक फैला दी हैं ।
यदि तुम उन्हें धरती की
सीमाओं तक भी फैला दो,
फिर भी तुम सीमा के अंदर रहोगे
और उनमे कैद रहोगे ।
सीमाओं तक भी फैला दो,
फिर भी तुम सीमा के अंदर रहोगे
और उनमे कैद रहोगे ।
मीरदाद चाहता है
कि तुम अनंतता के के चरों
ओर सीमा रेखा खींच दो,
उससे आगे निकल जाओ ।
कि तुम अनंतता के के चरों
ओर सीमा रेखा खींच दो,
उससे आगे निकल जाओ ।
समुद्र धरती पर टिकी एक बूंद-मात्र है,
फिर भी यह उसकी सीमा बना हुआ है,
उसे अपने घेरे में लिये हुए है ।
फिर भी यह उसकी सीमा बना हुआ है,
उसे अपने घेरे में लिये हुए है ।
और मनुष्य तो उससे और भी कहीं
अधिक असीम सागर है ।
अधिक असीम सागर है ।
ऐसे नादान न बनो
कि मनुष्य को एडी से छोटी तक
नाप कर यह समझ बैठो कि
तुमने उसकी सीमाएँ पा ली हैं ।
तुम बिल खोदनेवालों में
शिरोमणि हो सकते हो,
कि मनुष्य को एडी से छोटी तक
नाप कर यह समझ बैठो कि
तुमने उसकी सीमाएँ पा ली हैं ।
तुम बिल खोदनेवालों में
शिरोमणि हो सकते हो,
जैसा की अबिमार ने कहा है;
परन्तु केवल उस छछूंदर की
तरह जो अँधेरे में काम करता है ।
परन्तु केवल उस छछूंदर की
तरह जो अँधेरे में काम करता है ।
जितनी अधिक जटिल उसकी
भूलभुलैयाँ हों उतना ही दूर होता है
सूर्य से उसका मुख ।
मैं तुम्हारी भूलभुलैयाँ
को जानता हूँ, अबिमार ।
भूलभुलैयाँ हों उतना ही दूर होता है
सूर्य से उसका मुख ।
मैं तुम्हारी भूलभुलैयाँ
को जानता हूँ, अबिमार ।
तुम मुटठी भर प्राणी हो,
जैसा तुम कहते हो,
और कहने को संसार के सब
प्रलोभनों से मुक्त और
परमात्मा को समर्पित हो ।
जैसा तुम कहते हो,
और कहने को संसार के सब
प्रलोभनों से मुक्त और
परमात्मा को समर्पित हो ।
परन्तु कुटिल और अंधकारपूर्ण है
वे रास्ते जो तुम्हे संसार के साथ जोड़ते हैं ।
क्या मुझे तुम्हारे मनोवेग मचलते,
फुंकारते सुनाई नहीं देते ?
वे रास्ते जो तुम्हे संसार के साथ जोड़ते हैं ।
क्या मुझे तुम्हारे मनोवेग मचलते,
फुंकारते सुनाई नहीं देते ?
क्या मुझे तुम्हारी ईर्ष्याएँ
तुम्हारे परमात्मा की वेदी पर रेंगती
और तडपती दिखाई नहीं देतीं ?
तुम्हारे परमात्मा की वेदी पर रेंगती
और तडपती दिखाई नहीं देतीं ?
भले ही तुम मुट्ठी भर हो परन्तु,
ओह,
कितना विशाल जनसमूह है
उस मुट्ठी भर में !
यदि तुम वास्तव में ही
बिल खोदनेवालों में शिरोमणि होते,
जो तुम कहते हो तुम हो,
तो तुम खोदते-खोदते
बहुत पहले धरती में से ही नहीं,
सूर्य में से भी तथा
गगन-मण्डल में चक्कर काटते
हर ग्रह- उपग्रह में से भी
अपनी राह बना ली होती
ओह,
कितना विशाल जनसमूह है
उस मुट्ठी भर में !
यदि तुम वास्तव में ही
बिल खोदनेवालों में शिरोमणि होते,
जो तुम कहते हो तुम हो,
तो तुम खोदते-खोदते
बहुत पहले धरती में से ही नहीं,
सूर्य में से भी तथा
गगन-मण्डल में चक्कर काटते
हर ग्रह- उपग्रह में से भी
अपनी राह बना ली होती
छछुन्दरों को थूथनो
और पंजों से अपनी अँधेरी
राहें बनाने दो तुम्हे अपना
राजपथ ढूंढने के लिये
पलक तक हिलाने की आवश्यकता नहीं ।
और पंजों से अपनी अँधेरी
राहें बनाने दो तुम्हे अपना
राजपथ ढूंढने के लिये
पलक तक हिलाने की आवश्यकता नहीं ।
इस नीड़ में बैठे रहो
और अपनी दिव्य कल्पना को उड़ान भरने दो ।
उस पथ-रहित अस्तित्व के,
जो तुम्हारा साम्राज्य है,
अद्भुत खजानों तक पहुँचने के लिये
यही तुम्हारा दिव्य पथ-प्रदर्शक है ।
और अपनी दिव्य कल्पना को उड़ान भरने दो ।
उस पथ-रहित अस्तित्व के,
जो तुम्हारा साम्राज्य है,
अद्भुत खजानों तक पहुँचने के लिये
यही तुम्हारा दिव्य पथ-प्रदर्शक है ।
सशक्त और निर्भय मन से
अपने पथ-प्रदर्शक के पीछे-पीछे चलो ।
उसके पद-चिन्ह चाहे वे दूरतम नक्षत्र पर हों,
तुम्हारे लिये इस बात का सूचक
और जमानत होंगे
कि तुम्हारी जड़ वहां
पहले ही रोपी जा चुकी है ।
अपने पथ-प्रदर्शक के पीछे-पीछे चलो ।
उसके पद-चिन्ह चाहे वे दूरतम नक्षत्र पर हों,
तुम्हारे लिये इस बात का सूचक
और जमानत होंगे
कि तुम्हारी जड़ वहां
पहले ही रोपी जा चुकी है ।
क्योंकि तुम ऐसी किसी
भी वस्तु की कल्पना नहीं कर सकते
जो पहले से तुम्हारे भीतर न हों,
या तुम्हारा अंग न हों ।
वृक्ष अपनी जड़ों से आगे नहीं फ़ैल सकता,
जबकि मनुष्य असीम तक फ़ैल सकता है,
क्योंकि उसकी जड़ें अनंत में हैं ।
अपने लिए सीमाएँ निर्धारित मत करो ।
फैलते जाओ
भी वस्तु की कल्पना नहीं कर सकते
जो पहले से तुम्हारे भीतर न हों,
या तुम्हारा अंग न हों ।
वृक्ष अपनी जड़ों से आगे नहीं फ़ैल सकता,
जबकि मनुष्य असीम तक फ़ैल सकता है,
क्योंकि उसकी जड़ें अनंत में हैं ।
अपने लिए सीमाएँ निर्धारित मत करो ।
फैलते जाओ
जब तक कि ऐसा कोई लोक न रहे
जिसमे तुम न होओ ।
जिसमे तुम न होओ ।
फैलते जाओ जब तक
कि सारा संसार वहाँ न हो
जहाँ संयोगवश तुम होओ ।
फैलते जाओ ताकि जहाँ कहीं भी
तुम अपने आपसे मिलो,
तुम प्रभु से मिलो ।
फैलते जाओ । फैलते जाओ !
कि सारा संसार वहाँ न हो
जहाँ संयोगवश तुम होओ ।
फैलते जाओ ताकि जहाँ कहीं भी
तुम अपने आपसे मिलो,
तुम प्रभु से मिलो ।
फैलते जाओ । फैलते जाओ !
अँधेरे में इस भरोसे कोई कार्य न करो
कि अन्धकार एक ऐसा आवरण है
जिसे कोई दृष्टि बेध नहीं सकती ।
कि अन्धकार एक ऐसा आवरण है
जिसे कोई दृष्टि बेध नहीं सकती ।
यदि तुम्हे अन्धकार से अंधे हुए
लोगों से शर्म नहीं आती तो कम
से कम जुगनुओं और
चमगादड़ों से तो शर्म करो ।
लोगों से शर्म नहीं आती तो कम
से कम जुगनुओं और
चमगादड़ों से तो शर्म करो ।
अन्धकार का कोई अस्तित्व नहीं है,
मेरे साथियो ।
प्रकाश की मात्रा संसार के हर
जीव की आवश्यकता की पूर्ति
के लिये कम या अधिक होती है ।
मेरे साथियो ।
प्रकाश की मात्रा संसार के हर
जीव की आवश्यकता की पूर्ति
के लिये कम या अधिक होती है ।
तुम्हारे दिन का खुला प्रकाश
अमर पक्षी* के लिये सांझ का झुटपुटा है ।
तुम्हारी घनी अँधेरी रात
मेंढक के लिये जगमगाता दिन है ।
अमर पक्षी* के लिये सांझ का झुटपुटा है ।
तुम्हारी घनी अँधेरी रात
मेंढक के लिये जगमगाता दिन है ।
यदि स्वयं अन्धकार पर से ही
आवरण हटा दिये जायें
तो वह किसी वस्तु के लिये
आवरण कैसे हो सकता है ?
आवरण हटा दिये जायें
तो वह किसी वस्तु के लिये
आवरण कैसे हो सकता है ?
किसी भी वस्तु को ढकने का यत्न न करो ।
यदि यदि और कुछ तुम्हारे
रहस्यों को प्रकट नहीं करेगा तो
उनका आवरण ही उन्हें प्रकट कर देगा ।
यदि यदि और कुछ तुम्हारे
रहस्यों को प्रकट नहीं करेगा तो
उनका आवरण ही उन्हें प्रकट कर देगा ।
क्या ढक्कन नहीं जानता
की बर्तन के अंदर क्या है ?
की बर्तन के अंदर क्या है ?
कितनी दुर्दशा होती है साँपों
और कीड़ों से भरे बर्तनों की
जब उन पर से ढक्कन उठा दिये जाते हैं ।
और कीड़ों से भरे बर्तनों की
जब उन पर से ढक्कन उठा दिये जाते हैं ।
मैं तुमसे कहता हूँ, तुम्हारे अंदर
से एक भी ऐसा स्वास नहीं निकलता
जो तुम्हारे ह्रदय के गहरे से गहरे
रहस्यों को वापु में बिखेर नहीं देता ।
से एक भी ऐसा स्वास नहीं निकलता
जो तुम्हारे ह्रदय के गहरे से गहरे
रहस्यों को वापु में बिखेर नहीं देता ।
किसी आँख से एक भी
ऐसी क्षणिक दृष्टी नहीं निकलती
जो उसकी सभी लालसाओं
तथा भयों को,
ऐसी क्षणिक दृष्टी नहीं निकलती
जो उसकी सभी लालसाओं
तथा भयों को,
उसकी मुस्कानों तथा
अश्रुओं को साथ न लिये हो ।
किसी द्वार में एक भी ऐसा
सपना प्रविष्ट नहीं हुआ है
जिसने अन्य सब द्वारों पर
दस्तक न दी हो ।
अश्रुओं को साथ न लिये हो ।
किसी द्वार में एक भी ऐसा
सपना प्रविष्ट नहीं हुआ है
जिसने अन्य सब द्वारों पर
दस्तक न दी हो ।
तो ध्यान रखो तुम कैसे देखते हो ।
ध्यान रखो किन सपनों को
तुम द्वार के अंदर आने देते हो
और किन्हें तुम पास से निकल जाने देते हो ।
ध्यान रखो किन सपनों को
तुम द्वार के अंदर आने देते हो
और किन्हें तुम पास से निकल जाने देते हो ।
यदि तुम चिंता और पीड़ा से मुक्त होना चाहते हो,
तो मीरदाद तुम्हे ख़ुशी से रास्ता दिखायेगा ।
तो मीरदाद तुम्हे ख़ुशी से रास्ता दिखायेगा ।
☞ आप का हर करम ☜
आकाश में अंकित होता है
अध्याय 9
पीड़ा-मुक्त जीवन का मार्ग
मिकास्तर:- हमें मार्ग दिखाओ ।
मिकास्तर:- हमें मार्ग दिखाओ ।
मीरदाद; यह है चिंता और पीड़ा
से मुक्ति का मार्ग……
से मुक्ति का मार्ग……
इस तरह सोचो मानो
तुम्हारे हर विचार को
आकाश में अंकित होना है
ताकि उसे हर प्राणी,
हर पदार्थ देख सके ।
और वास्तव में वह अंकित होता भी है ।”
तुम्हारे हर विचार को
आकाश में अंकित होना है
ताकि उसे हर प्राणी,
हर पदार्थ देख सके ।
और वास्तव में वह अंकित होता भी है ।”
इस तरह बोलो मानो
सारा संसार केवल
एक ही कान है
जो तुम्हारी बात सुनने
के लिये उत्सुक है ।
और वास्तव में वह उत्सुक है भी । ”
सारा संसार केवल
एक ही कान है
जो तुम्हारी बात सुनने
के लिये उत्सुक है ।
और वास्तव में वह उत्सुक है भी । ”
इस तरह कर्म करो मानो
तुम्हारे हर कर्म को
पलटकर तुम्हारे
सिर पर आना है ।
और वास्तव में वह आता भी है । ”
तुम्हारे हर कर्म को
पलटकर तुम्हारे
सिर पर आना है ।
और वास्तव में वह आता भी है । ”
इस तरह इच्छा करो मानो
तुम स्वयं इच्छा हो ।
और वास्तव में तुम हो भी । ”
तुम स्वयं इच्छा हो ।
और वास्तव में तुम हो भी । ”
इस तरह जियो मानो
स्वयं तुम्हारे प्रभु को
अपना जीवन जीने के
लिये तुम्हारी आवश्यकता है ।
और वास्तव में उसे आवश्यता है भी ।”
स्वयं तुम्हारे प्रभु को
अपना जीवन जीने के
लिये तुम्हारी आवश्यकता है ।
और वास्तव में उसे आवश्यता है भी ।”
हिम्बल: और कब तक तुम
हमें उलझन में रखोगे, मीरदाद ?
तुम हमसे ऐसे बात करते हो
जैसे कभी किसी व्यक्ति ने नहीं की,
न हमने किसी किताब में पढ़ी ।
हमें उलझन में रखोगे, मीरदाद ?
तुम हमसे ऐसे बात करते हो
जैसे कभी किसी व्यक्ति ने नहीं की,
न हमने किसी किताब में पढ़ी ।
बैनून:- बताओ तुम कौन हो
ताकि हम जान सकें
कि तुम्हारी बात हम
किस कान से सुनें ।
यदि तुम ही नूह की नौका में
गुप्त रूप से चढ़ने वाले व्यक्ति हो
तो हमें इसका कोई प्रमाण दो ।
ताकि हम जान सकें
कि तुम्हारी बात हम
किस कान से सुनें ।
यदि तुम ही नूह की नौका में
गुप्त रूप से चढ़ने वाले व्यक्ति हो
तो हमें इसका कोई प्रमाण दो ।
मीरदाद: ठीक कहा तुमने, बैनून ।
तुम्हारे बहुत- से कान हैं,
इसलिये तुम सुन नहीं सकते।
यदि तुम्हारा केवल एक ही
कान होता
जो सुनता और समझता,
तो तुम्हे किसी प्रमाण की
आवश्यकता न होती ।
तुम्हारे बहुत- से कान हैं,
इसलिये तुम सुन नहीं सकते।
यदि तुम्हारा केवल एक ही
कान होता
जो सुनता और समझता,
तो तुम्हे किसी प्रमाण की
आवश्यकता न होती ।
बैनून:- नूह की नौका में गुप्त रूप से
चढ़नेवाले व्यक्ति को संसार के
बारे में निर्णय करने के लिये
आना चाहिये
और हम नौका के निवासियों को
भी निर्णय करने में
उसके साथ बैठना चाहिये ।
क्या हम
निर्णय-दिवस की तैयारी करें ?
previous link :-
चढ़नेवाले व्यक्ति को संसार के
बारे में निर्णय करने के लिये
आना चाहिये
और हम नौका के निवासियों को
भी निर्णय करने में
उसके साथ बैठना चाहिये ।
क्या हम
निर्णय-दिवस की तैयारी करें ?
previous link :-
आभार, मे कई दिनो से इससे तलाश रहा था . बहुत सुना था इस पुस्तक के बारे मे. 😃
ReplyDeletethanks for reading brother ,i also got from very noble soul by chance , if you have account on fb you may collect its pdf also . the link is https://www.facebook.com/groups/Call4BookReaders12.06.2013/?ref=bookmarks or you may find in parts here itself .
Deleteregards
Thanks latadi.ur doing gud job
DeleteBest spiritual book in entire world
ReplyDeletetruly ...bottom of heart feeling gratitude towards Meerdad , and for apriciation many thanks to you .
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