एक बार एक नव युवक गौतम बुद्ध के पास पहुंचा और बोला “महात्मा जी, मैं
अपनी ज़िन्दगी से बहुत परेशान हूँ , कृपया इस परेशानी से निकलने का उपाय
बताएं।
बुद्ध बोले: “पानी के ग्लास में एक मुट्ठी नमक डालो और उसे पियो..।”
युवक ने ऐसा ही किया.।
“इसका स्वाद कैसा लगा.?” बुद्ध ने पुछा।
“बहुत ही खराब, एकदम खारा” – युवक थूकते हुए बोला।
बुद्ध मुस्कुराते हुए बोले: “एक बार फिर अपने हाथ में एक मुट्ठी नमक लेलो और मेरे पीछे-पीछे आओ।
दोनों धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे और थोड़ी दूर जाकर स्वच्छ पानी से बनी एक झील के सामने रुक गए।
“चलो, अब इस नमक को पानी में दाल दो बुद्ध ने निर्देश दिया।" युवक ने ऐसा ही किया.। “अब इस झील का पानी पियो”, बुद्ध बोले। युवक पानी पीने लगा, एक बार फिर बुद्ध ने पूछा: “बताओ इसका स्वाद कैसा है, क्या अभी भी तुम्हे ये खारा लग
रहा है. ?” “नहीं, ये तो मीठा है , बहुत अच्छा है ”, युवक बोला।
बुद्ध युवक के बगल में बैठ गए और उसका हाथ थामते हुए बोले: “जीवन के दुःख बिलकुल नमक की तरह हैं, न इससे कम ना ज्यादा। जीवन में दुःख की मात्रा वही रहती है, बिलकुल वही। लेकिन हम कितने दुःख का स्वाद लेते हैं, ये इस पर निर्भर करता है कि हम उसे किस पात्र में डाल रहे हैं।
इसलिए जब तुम दुखी हो तो सिर्फ इतना कर सकते हो कि खुद को बड़ा कर लो, ग़्लास मत बने रहो झील बन जाओ।
Osho
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