Wednesday, 11 February 2015

दिमाग और दिल की यात्रा

कहीं पढ़ा था जो दिमाग से दिल तक गया जो है भी " दिमाग और दिल की यात्रा " :-

In the journey among mind to heart ..
Doubts to realisation ..
Need to calm down from all questions and answers .. 
And find yourself just in middle .. 
Without effort sit in most darkest light of inner called peace ; 
All is cooling Oxygen for soul .



" शुरुआत संदेह से ही करो , फिर विश्वास करो , फिर विश्वास पे संदेह करो फिर संदेह पे विश्वास अपने आप आएगा " संदेह और विश्वास की इस यात्रा में अंत में ह्रदय विश्वास पे रुक जायेगा ; स्वतः। बस सम्पूर्ण यात्रा में जो आवश्यक है वो है अपनी और केंद्र की धुरी को साधते हुए अपनी संदेह और विश्वास की यात्रा जारी रखना। फिर विश्वास नामका स्टेशन आता भी है और यात्री को उसका पड़ाव मिलता भी है ....

यहाँ कृष्ण ने भी इसी आध्यात्मिक यात्रा को प्रोत्साहन दिया , क्यूंकि यही सच है , किसी को नकारा नहीं जा सकता , दोनों दिमाग और दिल जब तक एक सीधी लाइन में नहीं आते आध्यात्मिक यात्रा संभव नहीं। ऐसा ही भाव दत्तात्रेय ने जिया , जीसस ने ऐसा ही कहा , बुध ने कहा , दोबारा कहा और फिर उस बिंदु को चुने वाले व्यक्तियों ने बार बार यही कहा अनुभव के आधार पे। इससे अलग इस यात्रा के लिए कुछ नया कोई कह ही नहीं सकता , क्यूंकि है ही नहीं। 

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