ब्रह्मचर्य की नहीं। सेक्स की पूरी शिक्षा।
सारे दुनिया के चिकित्सक कहते हैं कि सेक्स मैच्योरिटी के बाद। चौदह और पंद्रह साल के बाद--बच्चे की, लड़के की उत्सुकता लड़की में और लड़की की उत्सुकता लड़के में होनी स्वाभाविक है।
वीर्य का कोई संचित कोश नहीं है। वीर्य जितना खर्च होता है उतना पैदा होता है।
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सेक्स असल में उत्तेजित शरीर की चेष्टा है। शरीर उत्तेजित है, उत्तप्त है, तो शरीर कुछ अपनी ऊर्जा को बाहर फेंक देता है ताकि वह शांत हो जाए, शिथिल हो जाए।
जितना शरीर स्वस्थ है, विश्राम में है, आनंद में है, शांत है, उतना ही सेक्स की जरूरत कम पड़ती है। गरीब कौम कभी भी सेक्स से मुक्त नहीं हो सकती। लेकिन साधु-संन्यासी समझाते हैं कि ब्रह्मचर्य की कमी हो गई। इसलिए यह सब गड़बड़ हो रही है। ब्रह्मचर्य की कमी नहीं हो गई है।
और दूसरी बात भी ध्यान रखना, ब्रह्मचर्य की शिक्षा अगर दमन बन जाए तो फायदा कम पहुंचाती है, नुकसान ज्यादा पहुंचाती है। सप्रेशन अगर बन जाए। और हिंदुस्तान में ब्रह्मचर्य की शिक्षा का क्या मतलब?
हिंदुस्तान में ब्रह्मचर्य की शिक्षा का मतलब स्त्री-पुरुष को दूर-दूर रखो। और स्त्री-पुरुष जितने-जितने दूर-दूर होंगे, स्त्री-पुरुष उतने ही एक दूसरे के बाबत ज्यादा चिंतन करते हैं। जितने निकट हों, उतना कम चिंतन होता है।
और जितना ज्यादा चिंतन हो, उतनी कामुकता बढ़ती है और जितनी कामुकता हो उतना ब्रह्मचर्य असंभव हो जाता है।
मेरे एक मित्र दिल्ली के डाक्टर है। इंगलैंड गए हुए थे, एक मेडिकल कांफ्रेंस में भाग लेने। पांच सौ डाक्टर सारी दुनिया से इकट्ठे थे। और थाइस पार्क में उनकी बैठक चल रही थी, कुछ खाना, पीना, भोजन कुछ मिलना-जुलना।
मेरे मित्र सरदार हैं पंजाब के, वे भी वहां है। ठीक जहां ये पांच सौ डाक्टर खाना-पीना गपशप कर रहे हैं, एक दूसरे से मिल रहे हैं, वहीं पास की एक बेंच पर एक युवक और युवती, एक-दूसरे से गले लगे किसी दूसरे लोग में खो गए।
डाक्टर तो बेचैन हैं दूसरों से बातें करते हैं, लेकिन इनकी नजर वहीं लगी हुई है, और दिल यह हो रहा है कि कोई पुलिस वाला आकर इनको पकड़ कर क्यों नहीं ले जाता। यह क्या अशिष्टता हो रही है।
हमारे देश में ऐसा कभी नहीं हो सकता। यह क्या हो रहा है? यह कैसी संस्कृति है, कैसी असभ्यता है?
बार-बार देख रहे हैं वहीं। दिल अब और कहीं नहीं लगता है उनका। अब दिल पूरा वहीं लगा हुआ है। पड़ोस का एक आस्ट्रेलियन डाक्टर है, उसने कंधे पर हाथ रखा है और उन्होंने कहा, महानुभाव बार-बार वहां मत देखिए नहीं पुलिस वाला आकर आपको ले जाएगा।
उन्होंने कहा, क्या कहते हैं? तो उस आदमी ने कहा, वह उन दोनों की बात है उसमें तीसरे का कोई संबंध नहीं। आप बार-बार देखते हैं, यह आपके भीतर के रुग्ण चित्त का सबूत है। आप बार-बार वहां क्यों देखते हैं।
ये मेरे मित्र डाक्टर कहने लगे, लेकिन यह अशिष्टता है, जहां पांच सौ लोग मौजूद है, वहां दो लोग गले मिले बैठे हुए हैं। यह अशिष्टता है।
लेकिन उसने कहा, पांच सौ में से किसने देखा है सिवाय आपको छोड़ कर। कौन फिक्र करता है। और वे बहुत जानते हैं कि यहां पांच सौ शिक्षित डाक्टर इकट्ठे होने वाले हैं, उनसे अभद्रता कि उन्हें कोई आशा नहीं है इसलिए वे शांति से बैठे हुए हैं। यहां अकेले बैठे हों या पांच से मौजूद हो, कोई फर्क नहीं पड़ रहा।
लेकिन आप क्यों परेशान?
वे डाक्टर मित्र मेरे बोले कि लौट कर कि मैं बहुत घबड़ा गया। और जब मैंने भीतर खोज की तो पाया, मेरे ही भीतर का कोई रोग मुझे दिखाई पड़ रहा था। अन्यथा मुझे क्या प्रयोजन था।
जिस मुल्क में स्त्रियों को, पुरुषों को दूर-दूर रखा जाएगा, वहां यह उपद्रव होगा। वहां लोग गीता की किताब पढ़ेंगे और अंदर कोक-शास्त्र रख कर पढ़ेंगे। अंदर गंदी किताब रखेंगे और ऊपर गीता होगी, कवर गीता का होगा।
जहां स्त्री-पुरुष बहुत दूर रखा जाएगा, दमन सिखाया जाएगा। वहां इस तरह के उपद्रव होने शुरू होंगे।
अभी मैंने परसों अखबार में पढ़ा कि सिडनी शहर में जहां की आबादी बीस लाख होगी। एक युरोपियन अभिनेत्री को बुलाया नग्न प्रदर्शन के लिए। इस आशा से कि नग्न प्रदर्शन देखने बहुत लोग इकट्ठे होंगे। लेकिन बीस लाख की आबादी में थियेटर में केवल दो आदमी देखने आए।
दो आदमी! नंगी औरत को। और उस नंगी औरत को ठंड लग गई। नंगे होने की वजह से सर्दी ज्यादा थी। और वह बहुत नाराज हुई कि यह कैसी बस्ती है?
हिंदुस्तान में अगर एक नंगी औरत को हम खड़ा कर दें उदयपुर में। तो कितने लोग देखने आएंगे? दो आदमी?
सब देखने आ जाएंगे। हां, फर्क होगा। जो जरा हिम्मतवर है सामने के दरवाजे से आएंगे। साधु-संन्यासी, महंत इत्यादि नेता-गण पीछे के दरवाजे से आएंगे। लेकिन आएंगे सब। कोई चूक नहीं।
यह भी हो सकता है कि कोई यह कहता हुआ आए कि मैं अध्ययन करने जा रहा हूं कि कौन-कौन वहां जा रहा है। यह भी हो सकता है। मैं तो सिर्फ आब्जर्वेशन करने जा रहा हूं कि कौन-कौन वहां जाता है। यह भी हो सकता है।
इस देश में यह दुर्भाग्य कैसे फलित हो गया है। यह, इस देश में दुर्भाग्य इसलिए फलित हो गया है कि हमने ब्रह्मचर्य को जबरदस्ती थोपने की कोशिश की। सहज विकास नहीं।
ब्रह्मचर्य का सहज विकास और बात है। और अगर ब्रह्मचर्य का अगर सहज विकास करना हो तो सेक्स की पूरी शिक्षा दी जानी जरूरी है। ब्रह्मचर्य की नहीं। सेक्स की पूरी शिक्षा। एक-एक बच्चे को, एक-एक बच्ची को दी जानी जरूरी है कि प्रत्येक बच्चा जान सके कि सेक्स क्या है?
और लड़के और लड़कियों को इतने पास रखने की जरूरत है कि लड़के और लड़कियों में ऐसा भाव न पैदा हो जाए कि ये दो जाति के, अलग-अलग तरह के जानवर हैं। ये एक ही जानवर नहीं है, ये एक ही जाती के नहीं है।
यहां हजार आदमी बैठे हैं और एक स्त्री आ जाए तो हजार आदमी फौरन कांशस हो जाते हैं, चेतन हो जाते हैं कि स्त्री आ रही है। यह नहीं होना चाहिए। स्त्रियां अलग बैठती हैं, पुरुष अलग बैठते हैं, बीच में फासला छोड़ते हैं, यह क्या पागलपन है?
यह स्त्री-पुरुष का बोध क्यों है? ये इतने दीवाल क्यों है? हमें निकट होना चाहिए। हमें पास होना चाहिए। बच्चे साथ खेलें, साथ बड़े हों, एक-दूसरे को जाने-पहचाने तो इतना पागलपन नहीं होगा।
आज क्या हालत है? एक लड़की का आज बाजार से निकलना मुश्किल है। एक लड़की का कालेज जाना मुश्किल है। असंभव है कि वह निकले और दो-चार गालियां उसे रास्ते में देने वाले न मिल जाएं। दो-चार धक्के देने वाले न मिले, कोई कंकर न मारे, कोई फिल्मी गाने न फेंके। कुछ न कुछ होगा रास्ते में। क्यों? यह ऋषि-मुनियों की संतान अदभुत व्यवहार कर रही है।
लेकिन कारण है और कारण ऋषि-मुनियों की शिक्षा ही है। वह जो निरंतर स्त्री-पुरुष को दुश्मन बना रहे हैं, उससे यह नुकसान पैदा हो रहा है। जिस चीज का जितना निषेध किया जाएगा, वह उतनी आकर्षण बन जाती है।
जिस चीज का जितना अहंकार किया जाएगा, वह उतना भुलावा बन जाती है। जिस चीज को आप कहेंगे कि इसकी बात नहीं होनी चाहिए। उसकी उतनी ही बात होगी छुप छुपकर होगी। जिस बात को आप रोकना चाहेंगे, लोगों के मन में आकर्षण, जिज्ञासा पैदा होगी क्या बात है?
स्वस्थ नहीं रह जाता चित्त फिर, अस्वस्थ हो जाता है। आप देखें--एक स्त्री अगर सड़क से निकलती हो घूंघट डाल कर तो जितने लोग उसमें आकर्षित होंगे, उतने बिना घूंघट वाली स्त्री में आकर्षित नहीं होंगे।
अगर एक घूंघट वाली स्त्री जा रही है, तो हर आदमी यह चाहेगा कि देख लें घूंघट के भीतर क्या है? बिना घूंघट की स्त्री को देखने का क्या है? दिख जाती है, बात समाप्त हो जाती है। हम जितना छिपाते हैं, उतनी ही कठिनाई शुरू होती है। जितनी कठिनाई शुरू होती है, उतने गलत रास्ते शुरू होते हैं। और सारी चीजें विकृत हो जाती है।
ब्रह्मचर्य अदभुत है। ब्रह्मचर्य की शक्ति की कोई सीमा नहीं है। ब्रह्मचर्य का आनंद अदभुत है लेकिन ब्रह्मचर्य उन्हें उपलब्ध होता है, जो चित्त की सारी स्थितियों को समझते हैं। जानते हैं, पहचानते हैं। और पहचानने के कारण उनसे मुक्त होते हैं। ब्रह्मचर्य उनको उपलब्ध नहीं होता जो कुछ भी नहीं समझते हैं और चित्त को दबाते हैं, और दबाने के कारण भीतर बहुत भाप इकट्ठी हो जाती है।
फिर वह भाप उलटे रास्ते से निकलनी शुरू होती है। वह निकलती है, वह रुक नहीं सकती। ब्रह्मचर्य तो अदभुत है। लेकिन जो प्रयोग इस देश में किया गया है, उसने इस देश को ब्रह्मचारी नहीं बनाया, अति कामुक बनाया है।
इस समय पृथ्वी पर हम से ज्यादा कामुक कौम खोजना मुश्किल है। एकदम असंभव है। लेकिन हम ब्रह्मचर्य की बातें दोहराए चले जाएंगे। और सारा चित्त रोगग्रस्त होता चला जा रहा है।
मैं एक कालेज में कुछ दिन तक था। एक दिन निकल रहा था और कालेज के प्रिंसिपल किसी लड़के को जोर से डांट रहे थे। मैं भीतर गया, मैंने पूछा क्या बात है?
तो प्रिंसिपल खुश हुए, उन्होंने कहा, आप बैठिए। इसे थोड़ा समझाएं। इसने एक लड़की को प्रेम पत्र लिखा है। उस लड़के ने कहा, मैंने कभी लिखा ही नहीं। किसी और ने मेरे नाम से लिख दिया होगा।
प्रिंसिपल ने कहा, झूठ बोल रहे हो तुम। यह पत्र तुमने लिखा है, पहले और भी रिपोर्ट आ चुकी हैं। तुमने पत्थर भी तीन लड़कियों को मारा है। वह यह सब पता है। हर लड़की को अपनी मां-बहन समझना चाहिए।
वह लड़का बोला मैं तो समझता ही हूं, आप कैसी बातें कर रहे हैं। मैंने कभी इससे अन्यथा कुछ समझा ही नहीं। हर लड़की को मां-बहन समझता ही हूं। जितना वह इनकार करने लगा, उतना प्रिंसिपल उस पर चिल्लाने लगे।
मैंने उनसे कहा, एक मिनट रुक जाइए। मैं कुछ सवाल पूछूं।
प्रिंसिपल ने कहा, खुशी से।
वे समझे कि मैं लड़के से पूछूंगा।
मैंने कहा, लड़के से नहीं कुछ आपसे मुझे पूछना है।
आपकी उम्र कितनी है? उनकी उम्र बावन वर्ष। मैंने पूछा, आप छाती पर हाथ रख कर यह बात कह सकते हैं कि हर लड़की को मां-बहन समझने की हालत में आप हैं? अगर आ गए हों, तो इस लड़के से कुछ कहने का हक है। अगर न आ गए हों, तो बात भी करने के हकदार आप नहीं हैं।
उन्होंने उस लड़के से कहा, तुम बाहर जाओ।
मैंने कहा, वह बाहर नहीं जाएगा। उसके सामने ही यह बात होगी।
और मैंने उस लड़के से कहा, पागल है तू। अगर तू ठीक कह रहा है, कि तू सब लड़कियों को मां-बहन समझता है, तो चिंता की बात है। तू रुग्ण है, बीमार है, कुछ गड़बड़ है।
और अगर तुमने प्रेम पत्र लिखा है तो कुछ बूरा नहीं किया है। अगर बीस और चौबीस वर्ष के लड़के और लड़कियां प्रेम करना बंद कर देंगे। उस दिन यह दुनिया नर्क हो जाएगी। प्रेम करना चाहिए। लेकिन प्रेम पत्र में तुमने गाली लिखी है, यह बेवकूफी की बात है।
प्रेम पत्र में कहीं गालियां लिखनी पड़ती है। अगर मेरा बस चले तो मैं तुझे सिखाऊंगा कि कैसे प्रेम पत्र लिख। यह प्रेम पत्र गलत है। प्रेम पत्र लिखना गलत नहीं है। एकदम स्वाभाविक है। लेकिन जब स्वाभाविक बात को, अस्वाभाविक थोपा जाएगा और कहा जाएगा कि लड़कियों को मां-बहन समझो। तो इसका परिणाम उलटा होगा।
लड़का ऊपर से कहेगा, हम मां-बहन समझते हैं। और उसकी पूरी प्रकृति किसी लड़की को प्रेम करना चाहेगी। फिर वह एसिड फेंकेगा, पत्थर मारेगा, गालियां लिखेगा। बाथरूम में श्लोक लिखेगा। फिर यह सब होगा। और समाज गंदा होगा, श्रेष्ठ नहीं होगा।
प्रेम की अपनी पवित्रता है। प्रेम से ज्यादा पवित्र और क्या है? लेकिन हमने स्त्री-पुरुष को दूर करके प्रेम की पवित्रता भी नष्ट कर दी। उसको भी गंदगी बना दिया है।
और धीरे-धीरे हर स्वाभाविक चीज पर बाधा डाल कर, हर चीज को अस्वाभाविक, अननेचरल बना दिया है। और तब जो परिणाम होने चाहिए, वे हो रहे हैं।
हिंदुस्तान तब तक ब्रह्मचर्य की दिशा में अग्रसर नहीं हो सकता। जब तक काम और सेक्स को समझने की स्वस्थ और वैज्ञानिक दृष्टि पैदा नहीं होती।
यह पागलपन बंद होना चाहिए, जो हो रहा है। इस पर रुकावट लगनी चाहिए। और गलत बातें सिखानी बंद करनी चाहिए, उनसे जो नुकसान हो रहा है, उसका हिसाब लगाना मुश्किल है। आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि हम कितना नुकसान हम अपने बच्चों को पहुंचा रहे हैं।
सारे दुनिया के चिकित्सक कहते हैं कि सेक्स मैच्योरिटी के बाद। चौदह और पंद्रह साल के बाद--बच्चे की, लड़के की उत्सुकता लड़की में और लड़की की उत्सुकता लड़के में होनी स्वाभाविक है।
अगर न हो, तो खतरा है। बिलकुल स्वाभाविक है। अब इस उत्सुकता को हम कितने अच्छे, सुसंस्कृत मार्ग पर ले जाएं, यह हमारे हाथ में है। और जितने सुसंस्कृत मार्ग पर हम ले जाएंगे, उतना ही इस बच्चे को जीवन में वीर्य की ऊर्जा को संभालने में, शक्ति को संचित करने में, ब्रह्मचर्य की दिशा में बढ़ने का सहारा मिलेगा।
लेकिन हम क्या कर रहे हैं? हम बीच में एकदम पत्थर की दीवाल खड़ी कर देते हैं और चोरी के सब रास्ते खोल देते हैं। और बड़े मजे की बात है, एक तरफ ब्रह्मचर्य की शिक्षा दिए चले जाते हैं। और दूसरी तरफ पूरा कामुकता का प्रचार करता चला जाता है। बच्चे चौबीस घंटे कामुकता के प्रचार से पीड़ित हैं। और इधर ब्रह्मचर्य की शिक्षा से भी पीड़ित हैं।
दोनों विरोधी शिक्षाएं मिल कर उनके जीवन को बहुत संघातक स्थिति में डाल देती है। हिंदुस्तान के बच्चों में उतना ही ओज है, जितना दुनिया के किसी कौम के बच्चों में।
लेकिन उस ओज के कम होने में बड़ा कारण तो गरीबी, भोजन की कमी। और उससे भी बड़ा कारण, हमारी अवैज्ञानिक दृष्टि है सेक्स के संबंध में। यह दृष्टि अगर वैज्ञानिक हो, तो हमारे बच्चे किसी भी कौम के बच्चों से ज्यादा ओजस्वी और तेजस्वी हो सकते हैं।
लेकिन अत्यंत मंद बुद्धि साधु जो कुछ भी कहे चले जा रहे हैं, न जिन्हें बायलॉजी का कुछ पता है। न फिजियालॉजी का कुछ पता है, न जिन्हें शरीर का कुछ पता है, न जिन्हें वीर्य के निर्माण का कोई पता है। न जिन्हें कुछ संबंध है।
वे न जाने क्या-क्या फिजूल बातें समझाए चले जा रहे हैं। हिंदुस्तान के समझाने वाले समझाते हैं कि जैसे वीर्य का संचित कोश शरीर में रखा हुआ है कि अगर वह खर्च हो गया तो तुम मर जाओगे।
वीर्य का कोई संचित कोश नहीं है। वीर्य जितना खर्च होता है उतना पैदा होता है। इसलिए वीर्य के खर्च से कभी भी घबड़ाने की कोई जरूरत नहीं है। कोई जरूरत ही नहीं है, विज्ञान तो यह कहता है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि कोई वीर्य को ऐसे ही खर्च करता रहे।
वीर्य तो रोज निर्मित होता है, और जो कहा जाता है कि अगर एक बूंद वीर्य की खो गई तो सारा जीवन नष्ट हो गया है। ऐसी बातें कहने वालों पर जुर्म लगने चाहिए और मुकदमे चलने चाहिए। क्योंकि ऐसी बात जो बच्चा पढ़ेगा, वह उसका अगर एक बूंद वीर्य खो गया तो वह सदा के लिए घबड़ा गया कि मैं मर गया।
कोई नहीं मरता और न जीवन नष्ट होता है। और बड़े मजे की बात है, वीर्य तो शरीर का हिस्सा है। और आत्मवादी जब शरीर के हिस्सों को जब इतना महत्व देते हों तो समझ में आता है, वे कितने शरीरवादी होंगे। इतना मूल्य नहीं है तुच्छ। और ध्यान रहे वीर्य के खर्च से नुकसान नहीं होता। नुकसान इस बात से होता है कि वीर्य खर्च हो गया तो नुकसान हो जाएगा। यह मानसिक भाव विकृत करता है और नुकसान पहुंचाता है। इसका यह मतलब नहीं है कि मैं कहता हूं कि कोई पागलों की तरह वीर्य के खर्च करने में लग जाए।
जो बहुत गहरे जानने वाले है वे तो यह कहते हैं कि प्रकृति ने ऐसी व्यवस्था की है कि आप ज्यादा वीर्य खर्च कर ही नहीं सकते। प्रकृति की पूरी की पूरी ऑटोमेटिक व्यवस्था है शरीर पर। आप ज्यादा खर्च कर ही नहीं सकते।
लेकिन आप चाहें तो बिलकुल खर्च न करें, यह हो सकता है। इन दोनों बातों को समझ लें आप, आप ज्यादा खर्च नहीं कर सकते। आपके खर्च करने पर सीमा है। उस सीमा से ज्यादा कोई खर्च कर नहीं सकता। क्योंकि शरीर इनकार कर देता है। ऑटोमेटिक है, शरीर फौरन इनकार कर देता है। जितना शरीर खर्च कर सकता है उससे ज्यादा खर्च करने से फौरन इनकार कर देता है।
लेकिन आप चाहें तो बिलकुल खर्च न करें यह हो सकता है। बिलकुल खर्च न करें, यह दो तरह से हो सकता है। या तो जबरदस्ती; जबरदस्ती वाला आदमी पागल हो जाएगा। जैसे केतली के भीतर भाप बंद कर दो। दरवाजे सब बंद कर दो केतली के। केतली फूट जाए, यह होगा।
जबरदस्ती जो रोकेगा, वह विक्षिप्त हो जाएगा, दुनिया में सौ पागलों में से अस्सी पागल सेक्स के कारण होते हैं। एक दूसरा रास्ता भी है। सारा ध्यान मनुष्य का नीचे न जाकर ऊपर की तरफ चला जाए, ध्यान।
ध्यान ऊपर की तरफ चला जाए। ध्यान परमात्मा की खोज में, सत्य की खोज में संलग्न हो जाए। ध्यान वहां चला जाए, जहां सेक्स से मिलने वाले सुख से करोड़-करोड़ गुना आनंद मिलना शुरू हो जाता है। अगर ध्यान वहां चला जाए, तो सेक्स की सारी शक्ति का ऊर्ध्वगमन शुरू हो जाता है।
उस आदमी को पता ही नहीं चलता कि सेक्स जैसी कोई चीज भी खींचती है। पता ही नहीं चलता। सेक्स उसके रास्ते में खड़ा ही नहीं होता।
आपका ध्यान जैसे एक बच्चा कंकड़-पत्थर बीन रहा है, खेल रहा है, और कोई उस बच्चे को खबर दे दे कि साथ में हीरे-जवाहरातों की खदान है, और वह बच्चा भाग कर वहां जाए, और हीरे-जवाहरात मिल जाएं, क्या उस बच्चे का ध्यान अब कंकड़-पत्थरों की तरफ जाएगा।
गई वह बात। अब उसकी सारी शक्ति अब हीरे-जवाहरात बीनेगी। आदमी जब तक परमात्मा की दिशा में गतिमान न हो जाए, तब तक अनिवार्यरूपेण उसका सेक्स की दिशा में आकर्षण होता है।
वह जैसे ही परमात्मा की तरफ गतिमान हो जाए, वैसे ही सारी शक्तियां एक नई यात्रा पर निकल जाती है।
ब्रह्मचर्य का मतलब आप समझते हैं, क्या होता है? ब्रह्मचर्य का अर्थ है ईश्वर जैसा जीवन। ब्रह्मचर्य का मतलब सेक्स से तो कुछ जुड़ा ही हुआ नहीं है। उसका अर्थ है ईश्वर जैसा जीवन, ब्रह्म जैसी चर्या। उससे कोई संबंध ही नहीं है वीर्य वगैरह से। ईश्वर जैसी चर्या कैसे होगी? जब ईश्वर की तरफ बहती हुई चेतना होगी, तब चर्या धीरे-धीरे ईश्वर जैसी होती चली जाएगी।
और जब चित्त ऊपर जाता है तो नीचे की तरफ नहीं जाता है। फिर नीचे की तरफ जाना बंद हो जाता है।
अगर मैं यहां बोल रहा हूं और पास में ही कोई वीणा बजाने लगे, तो आपके सारे चित्त अचानक वीणा की तरफ चले जाएंगे। आपको ले जाना नहीं पड़ेगा, वे चले जाएंगे। आप एक क्षण में पाएंगे कि मुझे भूल गए हैं, वीणा सुन रहे हैं।
जब भीतर आत्मा की वीणा बजने लगती है, तो ध्यान शरीर से हट कर आत्मा की तरफ चला जाता है। और तब जो फलित होता है, वह ब्रह्मचर्य है। उस ब्रह्मचर्य का अदभुत आनंद है। उस ब्रह्मचर्य की अदभुत शांति है। और उस ब्रह्मचर्य का रहस्य बहुत अदभुत है।
लेकिन वे सप्रेस करने वाले और दमन करने वाले लोगों को उपलब्ध नहीं होता। इसलिए आप कहते हैं, हम सारे लोग कि हमारे युवकों के चेहरे कमजोर है, आंखों में ज्योति नहीं। तो हमारे साधुओं की कतार खड़ी करके देख लो, तो उन पर तो ज्योति होनी चाहिए।
वे हम से ज्यादा बीमार और रोग ग्रस्त मालूम होते हैं। उनकी हालत हमसे बुरी है। लेकिन हम कहेंगे, वे त्याग, तपश्चर्या कर रहे हैं, इसलिए यह हालत है।
यह जो हालत है, बेरोनकी की, इसके पीछे दरिद्रता, दीनता, भुखमरी कारण है। और यह जो अश्लीलता और कामुकता की जो स्थिति है, उसके पीछे ब्रह्मचर्य की गलत दिशा और शिक्षा है। दमन की शिक्षा है।
कुछ और प्रश्न रह गए। वे संध्या की चर्चा में मैं आपसे बात करूंगा।
मेरी बातों को इतनी शांति और प्रेम से सुना, उससे बहुत अनुगृहीत हूं। और अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं, मेरे प्रणाम स्वीकार करें। - "ओशो "....
Jeevan Sangeet - 07
सारे दुनिया के चिकित्सक कहते हैं कि सेक्स मैच्योरिटी के बाद। चौदह और पंद्रह साल के बाद--बच्चे की, लड़के की उत्सुकता लड़की में और लड़की की उत्सुकता लड़के में होनी स्वाभाविक है।
वीर्य का कोई संचित कोश नहीं है। वीर्य जितना खर्च होता है उतना पैदा होता है।
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सेक्स असल में उत्तेजित शरीर की चेष्टा है। शरीर उत्तेजित है, उत्तप्त है, तो शरीर कुछ अपनी ऊर्जा को बाहर फेंक देता है ताकि वह शांत हो जाए, शिथिल हो जाए।
जितना शरीर स्वस्थ है, विश्राम में है, आनंद में है, शांत है, उतना ही सेक्स की जरूरत कम पड़ती है। गरीब कौम कभी भी सेक्स से मुक्त नहीं हो सकती। लेकिन साधु-संन्यासी समझाते हैं कि ब्रह्मचर्य की कमी हो गई। इसलिए यह सब गड़बड़ हो रही है। ब्रह्मचर्य की कमी नहीं हो गई है।
और दूसरी बात भी ध्यान रखना, ब्रह्मचर्य की शिक्षा अगर दमन बन जाए तो फायदा कम पहुंचाती है, नुकसान ज्यादा पहुंचाती है। सप्रेशन अगर बन जाए। और हिंदुस्तान में ब्रह्मचर्य की शिक्षा का क्या मतलब?
हिंदुस्तान में ब्रह्मचर्य की शिक्षा का मतलब स्त्री-पुरुष को दूर-दूर रखो। और स्त्री-पुरुष जितने-जितने दूर-दूर होंगे, स्त्री-पुरुष उतने ही एक दूसरे के बाबत ज्यादा चिंतन करते हैं। जितने निकट हों, उतना कम चिंतन होता है।
और जितना ज्यादा चिंतन हो, उतनी कामुकता बढ़ती है और जितनी कामुकता हो उतना ब्रह्मचर्य असंभव हो जाता है।
मेरे एक मित्र दिल्ली के डाक्टर है। इंगलैंड गए हुए थे, एक मेडिकल कांफ्रेंस में भाग लेने। पांच सौ डाक्टर सारी दुनिया से इकट्ठे थे। और थाइस पार्क में उनकी बैठक चल रही थी, कुछ खाना, पीना, भोजन कुछ मिलना-जुलना।
मेरे मित्र सरदार हैं पंजाब के, वे भी वहां है। ठीक जहां ये पांच सौ डाक्टर खाना-पीना गपशप कर रहे हैं, एक दूसरे से मिल रहे हैं, वहीं पास की एक बेंच पर एक युवक और युवती, एक-दूसरे से गले लगे किसी दूसरे लोग में खो गए।
डाक्टर तो बेचैन हैं दूसरों से बातें करते हैं, लेकिन इनकी नजर वहीं लगी हुई है, और दिल यह हो रहा है कि कोई पुलिस वाला आकर इनको पकड़ कर क्यों नहीं ले जाता। यह क्या अशिष्टता हो रही है।
हमारे देश में ऐसा कभी नहीं हो सकता। यह क्या हो रहा है? यह कैसी संस्कृति है, कैसी असभ्यता है?
बार-बार देख रहे हैं वहीं। दिल अब और कहीं नहीं लगता है उनका। अब दिल पूरा वहीं लगा हुआ है। पड़ोस का एक आस्ट्रेलियन डाक्टर है, उसने कंधे पर हाथ रखा है और उन्होंने कहा, महानुभाव बार-बार वहां मत देखिए नहीं पुलिस वाला आकर आपको ले जाएगा।
उन्होंने कहा, क्या कहते हैं? तो उस आदमी ने कहा, वह उन दोनों की बात है उसमें तीसरे का कोई संबंध नहीं। आप बार-बार देखते हैं, यह आपके भीतर के रुग्ण चित्त का सबूत है। आप बार-बार वहां क्यों देखते हैं।
ये मेरे मित्र डाक्टर कहने लगे, लेकिन यह अशिष्टता है, जहां पांच सौ लोग मौजूद है, वहां दो लोग गले मिले बैठे हुए हैं। यह अशिष्टता है।
लेकिन उसने कहा, पांच सौ में से किसने देखा है सिवाय आपको छोड़ कर। कौन फिक्र करता है। और वे बहुत जानते हैं कि यहां पांच सौ शिक्षित डाक्टर इकट्ठे होने वाले हैं, उनसे अभद्रता कि उन्हें कोई आशा नहीं है इसलिए वे शांति से बैठे हुए हैं। यहां अकेले बैठे हों या पांच से मौजूद हो, कोई फर्क नहीं पड़ रहा।
लेकिन आप क्यों परेशान?
वे डाक्टर मित्र मेरे बोले कि लौट कर कि मैं बहुत घबड़ा गया। और जब मैंने भीतर खोज की तो पाया, मेरे ही भीतर का कोई रोग मुझे दिखाई पड़ रहा था। अन्यथा मुझे क्या प्रयोजन था।
जिस मुल्क में स्त्रियों को, पुरुषों को दूर-दूर रखा जाएगा, वहां यह उपद्रव होगा। वहां लोग गीता की किताब पढ़ेंगे और अंदर कोक-शास्त्र रख कर पढ़ेंगे। अंदर गंदी किताब रखेंगे और ऊपर गीता होगी, कवर गीता का होगा।
जहां स्त्री-पुरुष बहुत दूर रखा जाएगा, दमन सिखाया जाएगा। वहां इस तरह के उपद्रव होने शुरू होंगे।
अभी मैंने परसों अखबार में पढ़ा कि सिडनी शहर में जहां की आबादी बीस लाख होगी। एक युरोपियन अभिनेत्री को बुलाया नग्न प्रदर्शन के लिए। इस आशा से कि नग्न प्रदर्शन देखने बहुत लोग इकट्ठे होंगे। लेकिन बीस लाख की आबादी में थियेटर में केवल दो आदमी देखने आए।
दो आदमी! नंगी औरत को। और उस नंगी औरत को ठंड लग गई। नंगे होने की वजह से सर्दी ज्यादा थी। और वह बहुत नाराज हुई कि यह कैसी बस्ती है?
हिंदुस्तान में अगर एक नंगी औरत को हम खड़ा कर दें उदयपुर में। तो कितने लोग देखने आएंगे? दो आदमी?
सब देखने आ जाएंगे। हां, फर्क होगा। जो जरा हिम्मतवर है सामने के दरवाजे से आएंगे। साधु-संन्यासी, महंत इत्यादि नेता-गण पीछे के दरवाजे से आएंगे। लेकिन आएंगे सब। कोई चूक नहीं।
यह भी हो सकता है कि कोई यह कहता हुआ आए कि मैं अध्ययन करने जा रहा हूं कि कौन-कौन वहां जा रहा है। यह भी हो सकता है। मैं तो सिर्फ आब्जर्वेशन करने जा रहा हूं कि कौन-कौन वहां जाता है। यह भी हो सकता है।
इस देश में यह दुर्भाग्य कैसे फलित हो गया है। यह, इस देश में दुर्भाग्य इसलिए फलित हो गया है कि हमने ब्रह्मचर्य को जबरदस्ती थोपने की कोशिश की। सहज विकास नहीं।
ब्रह्मचर्य का सहज विकास और बात है। और अगर ब्रह्मचर्य का अगर सहज विकास करना हो तो सेक्स की पूरी शिक्षा दी जानी जरूरी है। ब्रह्मचर्य की नहीं। सेक्स की पूरी शिक्षा। एक-एक बच्चे को, एक-एक बच्ची को दी जानी जरूरी है कि प्रत्येक बच्चा जान सके कि सेक्स क्या है?
और लड़के और लड़कियों को इतने पास रखने की जरूरत है कि लड़के और लड़कियों में ऐसा भाव न पैदा हो जाए कि ये दो जाति के, अलग-अलग तरह के जानवर हैं। ये एक ही जानवर नहीं है, ये एक ही जाती के नहीं है।
यहां हजार आदमी बैठे हैं और एक स्त्री आ जाए तो हजार आदमी फौरन कांशस हो जाते हैं, चेतन हो जाते हैं कि स्त्री आ रही है। यह नहीं होना चाहिए। स्त्रियां अलग बैठती हैं, पुरुष अलग बैठते हैं, बीच में फासला छोड़ते हैं, यह क्या पागलपन है?
यह स्त्री-पुरुष का बोध क्यों है? ये इतने दीवाल क्यों है? हमें निकट होना चाहिए। हमें पास होना चाहिए। बच्चे साथ खेलें, साथ बड़े हों, एक-दूसरे को जाने-पहचाने तो इतना पागलपन नहीं होगा।
आज क्या हालत है? एक लड़की का आज बाजार से निकलना मुश्किल है। एक लड़की का कालेज जाना मुश्किल है। असंभव है कि वह निकले और दो-चार गालियां उसे रास्ते में देने वाले न मिल जाएं। दो-चार धक्के देने वाले न मिले, कोई कंकर न मारे, कोई फिल्मी गाने न फेंके। कुछ न कुछ होगा रास्ते में। क्यों? यह ऋषि-मुनियों की संतान अदभुत व्यवहार कर रही है।
लेकिन कारण है और कारण ऋषि-मुनियों की शिक्षा ही है। वह जो निरंतर स्त्री-पुरुष को दुश्मन बना रहे हैं, उससे यह नुकसान पैदा हो रहा है। जिस चीज का जितना निषेध किया जाएगा, वह उतनी आकर्षण बन जाती है।
जिस चीज का जितना अहंकार किया जाएगा, वह उतना भुलावा बन जाती है। जिस चीज को आप कहेंगे कि इसकी बात नहीं होनी चाहिए। उसकी उतनी ही बात होगी छुप छुपकर होगी। जिस बात को आप रोकना चाहेंगे, लोगों के मन में आकर्षण, जिज्ञासा पैदा होगी क्या बात है?
स्वस्थ नहीं रह जाता चित्त फिर, अस्वस्थ हो जाता है। आप देखें--एक स्त्री अगर सड़क से निकलती हो घूंघट डाल कर तो जितने लोग उसमें आकर्षित होंगे, उतने बिना घूंघट वाली स्त्री में आकर्षित नहीं होंगे।
अगर एक घूंघट वाली स्त्री जा रही है, तो हर आदमी यह चाहेगा कि देख लें घूंघट के भीतर क्या है? बिना घूंघट की स्त्री को देखने का क्या है? दिख जाती है, बात समाप्त हो जाती है। हम जितना छिपाते हैं, उतनी ही कठिनाई शुरू होती है। जितनी कठिनाई शुरू होती है, उतने गलत रास्ते शुरू होते हैं। और सारी चीजें विकृत हो जाती है।
ब्रह्मचर्य अदभुत है। ब्रह्मचर्य की शक्ति की कोई सीमा नहीं है। ब्रह्मचर्य का आनंद अदभुत है लेकिन ब्रह्मचर्य उन्हें उपलब्ध होता है, जो चित्त की सारी स्थितियों को समझते हैं। जानते हैं, पहचानते हैं। और पहचानने के कारण उनसे मुक्त होते हैं। ब्रह्मचर्य उनको उपलब्ध नहीं होता जो कुछ भी नहीं समझते हैं और चित्त को दबाते हैं, और दबाने के कारण भीतर बहुत भाप इकट्ठी हो जाती है।
फिर वह भाप उलटे रास्ते से निकलनी शुरू होती है। वह निकलती है, वह रुक नहीं सकती। ब्रह्मचर्य तो अदभुत है। लेकिन जो प्रयोग इस देश में किया गया है, उसने इस देश को ब्रह्मचारी नहीं बनाया, अति कामुक बनाया है।
इस समय पृथ्वी पर हम से ज्यादा कामुक कौम खोजना मुश्किल है। एकदम असंभव है। लेकिन हम ब्रह्मचर्य की बातें दोहराए चले जाएंगे। और सारा चित्त रोगग्रस्त होता चला जा रहा है।
मैं एक कालेज में कुछ दिन तक था। एक दिन निकल रहा था और कालेज के प्रिंसिपल किसी लड़के को जोर से डांट रहे थे। मैं भीतर गया, मैंने पूछा क्या बात है?
तो प्रिंसिपल खुश हुए, उन्होंने कहा, आप बैठिए। इसे थोड़ा समझाएं। इसने एक लड़की को प्रेम पत्र लिखा है। उस लड़के ने कहा, मैंने कभी लिखा ही नहीं। किसी और ने मेरे नाम से लिख दिया होगा।
प्रिंसिपल ने कहा, झूठ बोल रहे हो तुम। यह पत्र तुमने लिखा है, पहले और भी रिपोर्ट आ चुकी हैं। तुमने पत्थर भी तीन लड़कियों को मारा है। वह यह सब पता है। हर लड़की को अपनी मां-बहन समझना चाहिए।
वह लड़का बोला मैं तो समझता ही हूं, आप कैसी बातें कर रहे हैं। मैंने कभी इससे अन्यथा कुछ समझा ही नहीं। हर लड़की को मां-बहन समझता ही हूं। जितना वह इनकार करने लगा, उतना प्रिंसिपल उस पर चिल्लाने लगे।
मैंने उनसे कहा, एक मिनट रुक जाइए। मैं कुछ सवाल पूछूं।
प्रिंसिपल ने कहा, खुशी से।
वे समझे कि मैं लड़के से पूछूंगा।
मैंने कहा, लड़के से नहीं कुछ आपसे मुझे पूछना है।
आपकी उम्र कितनी है? उनकी उम्र बावन वर्ष। मैंने पूछा, आप छाती पर हाथ रख कर यह बात कह सकते हैं कि हर लड़की को मां-बहन समझने की हालत में आप हैं? अगर आ गए हों, तो इस लड़के से कुछ कहने का हक है। अगर न आ गए हों, तो बात भी करने के हकदार आप नहीं हैं।
उन्होंने उस लड़के से कहा, तुम बाहर जाओ।
मैंने कहा, वह बाहर नहीं जाएगा। उसके सामने ही यह बात होगी।
और मैंने उस लड़के से कहा, पागल है तू। अगर तू ठीक कह रहा है, कि तू सब लड़कियों को मां-बहन समझता है, तो चिंता की बात है। तू रुग्ण है, बीमार है, कुछ गड़बड़ है।
और अगर तुमने प्रेम पत्र लिखा है तो कुछ बूरा नहीं किया है। अगर बीस और चौबीस वर्ष के लड़के और लड़कियां प्रेम करना बंद कर देंगे। उस दिन यह दुनिया नर्क हो जाएगी। प्रेम करना चाहिए। लेकिन प्रेम पत्र में तुमने गाली लिखी है, यह बेवकूफी की बात है।
प्रेम पत्र में कहीं गालियां लिखनी पड़ती है। अगर मेरा बस चले तो मैं तुझे सिखाऊंगा कि कैसे प्रेम पत्र लिख। यह प्रेम पत्र गलत है। प्रेम पत्र लिखना गलत नहीं है। एकदम स्वाभाविक है। लेकिन जब स्वाभाविक बात को, अस्वाभाविक थोपा जाएगा और कहा जाएगा कि लड़कियों को मां-बहन समझो। तो इसका परिणाम उलटा होगा।
लड़का ऊपर से कहेगा, हम मां-बहन समझते हैं। और उसकी पूरी प्रकृति किसी लड़की को प्रेम करना चाहेगी। फिर वह एसिड फेंकेगा, पत्थर मारेगा, गालियां लिखेगा। बाथरूम में श्लोक लिखेगा। फिर यह सब होगा। और समाज गंदा होगा, श्रेष्ठ नहीं होगा।
प्रेम की अपनी पवित्रता है। प्रेम से ज्यादा पवित्र और क्या है? लेकिन हमने स्त्री-पुरुष को दूर करके प्रेम की पवित्रता भी नष्ट कर दी। उसको भी गंदगी बना दिया है।
और धीरे-धीरे हर स्वाभाविक चीज पर बाधा डाल कर, हर चीज को अस्वाभाविक, अननेचरल बना दिया है। और तब जो परिणाम होने चाहिए, वे हो रहे हैं।
हिंदुस्तान तब तक ब्रह्मचर्य की दिशा में अग्रसर नहीं हो सकता। जब तक काम और सेक्स को समझने की स्वस्थ और वैज्ञानिक दृष्टि पैदा नहीं होती।
यह पागलपन बंद होना चाहिए, जो हो रहा है। इस पर रुकावट लगनी चाहिए। और गलत बातें सिखानी बंद करनी चाहिए, उनसे जो नुकसान हो रहा है, उसका हिसाब लगाना मुश्किल है। आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि हम कितना नुकसान हम अपने बच्चों को पहुंचा रहे हैं।
सारे दुनिया के चिकित्सक कहते हैं कि सेक्स मैच्योरिटी के बाद। चौदह और पंद्रह साल के बाद--बच्चे की, लड़के की उत्सुकता लड़की में और लड़की की उत्सुकता लड़के में होनी स्वाभाविक है।
अगर न हो, तो खतरा है। बिलकुल स्वाभाविक है। अब इस उत्सुकता को हम कितने अच्छे, सुसंस्कृत मार्ग पर ले जाएं, यह हमारे हाथ में है। और जितने सुसंस्कृत मार्ग पर हम ले जाएंगे, उतना ही इस बच्चे को जीवन में वीर्य की ऊर्जा को संभालने में, शक्ति को संचित करने में, ब्रह्मचर्य की दिशा में बढ़ने का सहारा मिलेगा।
लेकिन हम क्या कर रहे हैं? हम बीच में एकदम पत्थर की दीवाल खड़ी कर देते हैं और चोरी के सब रास्ते खोल देते हैं। और बड़े मजे की बात है, एक तरफ ब्रह्मचर्य की शिक्षा दिए चले जाते हैं। और दूसरी तरफ पूरा कामुकता का प्रचार करता चला जाता है। बच्चे चौबीस घंटे कामुकता के प्रचार से पीड़ित हैं। और इधर ब्रह्मचर्य की शिक्षा से भी पीड़ित हैं।
दोनों विरोधी शिक्षाएं मिल कर उनके जीवन को बहुत संघातक स्थिति में डाल देती है। हिंदुस्तान के बच्चों में उतना ही ओज है, जितना दुनिया के किसी कौम के बच्चों में।
लेकिन उस ओज के कम होने में बड़ा कारण तो गरीबी, भोजन की कमी। और उससे भी बड़ा कारण, हमारी अवैज्ञानिक दृष्टि है सेक्स के संबंध में। यह दृष्टि अगर वैज्ञानिक हो, तो हमारे बच्चे किसी भी कौम के बच्चों से ज्यादा ओजस्वी और तेजस्वी हो सकते हैं।
लेकिन अत्यंत मंद बुद्धि साधु जो कुछ भी कहे चले जा रहे हैं, न जिन्हें बायलॉजी का कुछ पता है। न फिजियालॉजी का कुछ पता है, न जिन्हें शरीर का कुछ पता है, न जिन्हें वीर्य के निर्माण का कोई पता है। न जिन्हें कुछ संबंध है।
वे न जाने क्या-क्या फिजूल बातें समझाए चले जा रहे हैं। हिंदुस्तान के समझाने वाले समझाते हैं कि जैसे वीर्य का संचित कोश शरीर में रखा हुआ है कि अगर वह खर्च हो गया तो तुम मर जाओगे।
वीर्य का कोई संचित कोश नहीं है। वीर्य जितना खर्च होता है उतना पैदा होता है। इसलिए वीर्य के खर्च से कभी भी घबड़ाने की कोई जरूरत नहीं है। कोई जरूरत ही नहीं है, विज्ञान तो यह कहता है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि कोई वीर्य को ऐसे ही खर्च करता रहे।
वीर्य तो रोज निर्मित होता है, और जो कहा जाता है कि अगर एक बूंद वीर्य की खो गई तो सारा जीवन नष्ट हो गया है। ऐसी बातें कहने वालों पर जुर्म लगने चाहिए और मुकदमे चलने चाहिए। क्योंकि ऐसी बात जो बच्चा पढ़ेगा, वह उसका अगर एक बूंद वीर्य खो गया तो वह सदा के लिए घबड़ा गया कि मैं मर गया।
कोई नहीं मरता और न जीवन नष्ट होता है। और बड़े मजे की बात है, वीर्य तो शरीर का हिस्सा है। और आत्मवादी जब शरीर के हिस्सों को जब इतना महत्व देते हों तो समझ में आता है, वे कितने शरीरवादी होंगे। इतना मूल्य नहीं है तुच्छ। और ध्यान रहे वीर्य के खर्च से नुकसान नहीं होता। नुकसान इस बात से होता है कि वीर्य खर्च हो गया तो नुकसान हो जाएगा। यह मानसिक भाव विकृत करता है और नुकसान पहुंचाता है। इसका यह मतलब नहीं है कि मैं कहता हूं कि कोई पागलों की तरह वीर्य के खर्च करने में लग जाए।
जो बहुत गहरे जानने वाले है वे तो यह कहते हैं कि प्रकृति ने ऐसी व्यवस्था की है कि आप ज्यादा वीर्य खर्च कर ही नहीं सकते। प्रकृति की पूरी की पूरी ऑटोमेटिक व्यवस्था है शरीर पर। आप ज्यादा खर्च कर ही नहीं सकते।
लेकिन आप चाहें तो बिलकुल खर्च न करें, यह हो सकता है। इन दोनों बातों को समझ लें आप, आप ज्यादा खर्च नहीं कर सकते। आपके खर्च करने पर सीमा है। उस सीमा से ज्यादा कोई खर्च कर नहीं सकता। क्योंकि शरीर इनकार कर देता है। ऑटोमेटिक है, शरीर फौरन इनकार कर देता है। जितना शरीर खर्च कर सकता है उससे ज्यादा खर्च करने से फौरन इनकार कर देता है।
लेकिन आप चाहें तो बिलकुल खर्च न करें यह हो सकता है। बिलकुल खर्च न करें, यह दो तरह से हो सकता है। या तो जबरदस्ती; जबरदस्ती वाला आदमी पागल हो जाएगा। जैसे केतली के भीतर भाप बंद कर दो। दरवाजे सब बंद कर दो केतली के। केतली फूट जाए, यह होगा।
जबरदस्ती जो रोकेगा, वह विक्षिप्त हो जाएगा, दुनिया में सौ पागलों में से अस्सी पागल सेक्स के कारण होते हैं। एक दूसरा रास्ता भी है। सारा ध्यान मनुष्य का नीचे न जाकर ऊपर की तरफ चला जाए, ध्यान।
ध्यान ऊपर की तरफ चला जाए। ध्यान परमात्मा की खोज में, सत्य की खोज में संलग्न हो जाए। ध्यान वहां चला जाए, जहां सेक्स से मिलने वाले सुख से करोड़-करोड़ गुना आनंद मिलना शुरू हो जाता है। अगर ध्यान वहां चला जाए, तो सेक्स की सारी शक्ति का ऊर्ध्वगमन शुरू हो जाता है।
उस आदमी को पता ही नहीं चलता कि सेक्स जैसी कोई चीज भी खींचती है। पता ही नहीं चलता। सेक्स उसके रास्ते में खड़ा ही नहीं होता।
आपका ध्यान जैसे एक बच्चा कंकड़-पत्थर बीन रहा है, खेल रहा है, और कोई उस बच्चे को खबर दे दे कि साथ में हीरे-जवाहरातों की खदान है, और वह बच्चा भाग कर वहां जाए, और हीरे-जवाहरात मिल जाएं, क्या उस बच्चे का ध्यान अब कंकड़-पत्थरों की तरफ जाएगा।
गई वह बात। अब उसकी सारी शक्ति अब हीरे-जवाहरात बीनेगी। आदमी जब तक परमात्मा की दिशा में गतिमान न हो जाए, तब तक अनिवार्यरूपेण उसका सेक्स की दिशा में आकर्षण होता है।
वह जैसे ही परमात्मा की तरफ गतिमान हो जाए, वैसे ही सारी शक्तियां एक नई यात्रा पर निकल जाती है।
ब्रह्मचर्य का मतलब आप समझते हैं, क्या होता है? ब्रह्मचर्य का अर्थ है ईश्वर जैसा जीवन। ब्रह्मचर्य का मतलब सेक्स से तो कुछ जुड़ा ही हुआ नहीं है। उसका अर्थ है ईश्वर जैसा जीवन, ब्रह्म जैसी चर्या। उससे कोई संबंध ही नहीं है वीर्य वगैरह से। ईश्वर जैसी चर्या कैसे होगी? जब ईश्वर की तरफ बहती हुई चेतना होगी, तब चर्या धीरे-धीरे ईश्वर जैसी होती चली जाएगी।
और जब चित्त ऊपर जाता है तो नीचे की तरफ नहीं जाता है। फिर नीचे की तरफ जाना बंद हो जाता है।
अगर मैं यहां बोल रहा हूं और पास में ही कोई वीणा बजाने लगे, तो आपके सारे चित्त अचानक वीणा की तरफ चले जाएंगे। आपको ले जाना नहीं पड़ेगा, वे चले जाएंगे। आप एक क्षण में पाएंगे कि मुझे भूल गए हैं, वीणा सुन रहे हैं।
जब भीतर आत्मा की वीणा बजने लगती है, तो ध्यान शरीर से हट कर आत्मा की तरफ चला जाता है। और तब जो फलित होता है, वह ब्रह्मचर्य है। उस ब्रह्मचर्य का अदभुत आनंद है। उस ब्रह्मचर्य की अदभुत शांति है। और उस ब्रह्मचर्य का रहस्य बहुत अदभुत है।
लेकिन वे सप्रेस करने वाले और दमन करने वाले लोगों को उपलब्ध नहीं होता। इसलिए आप कहते हैं, हम सारे लोग कि हमारे युवकों के चेहरे कमजोर है, आंखों में ज्योति नहीं। तो हमारे साधुओं की कतार खड़ी करके देख लो, तो उन पर तो ज्योति होनी चाहिए।
वे हम से ज्यादा बीमार और रोग ग्रस्त मालूम होते हैं। उनकी हालत हमसे बुरी है। लेकिन हम कहेंगे, वे त्याग, तपश्चर्या कर रहे हैं, इसलिए यह हालत है।
यह जो हालत है, बेरोनकी की, इसके पीछे दरिद्रता, दीनता, भुखमरी कारण है। और यह जो अश्लीलता और कामुकता की जो स्थिति है, उसके पीछे ब्रह्मचर्य की गलत दिशा और शिक्षा है। दमन की शिक्षा है।
कुछ और प्रश्न रह गए। वे संध्या की चर्चा में मैं आपसे बात करूंगा।
मेरी बातों को इतनी शांति और प्रेम से सुना, उससे बहुत अनुगृहीत हूं। और अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं, मेरे प्रणाम स्वीकार करें। - "ओशो "....
Jeevan Sangeet - 07
my humble pranam to readers ,
ReplyDeletekindly read what is not written here do not interpret from mind and limited ... in another word , kindly try to take that frequency which take you towards divinity . and one lord light can serve above of earth-gravity, much bigger . do not think in narrow and squeezed manner . try to read inside the ink . do not find trap with anyone personality , because personalities again earthy property .
do not forget to take essence for your divine journey
respects to all readers
Bohut hi achha lekh jarur ye logo ki jindagi badhane me upyogi hoga jo agar sahaj bhav se sidh ho jaye to phir or bat hi kya. Really good thanx gurudev osho..
ReplyDeleteThank you so much ❤️
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