Saturday, 19 July 2014

ध्यान के चयन में सुझाव

लोग मुझसे पूछते हैं कि तीसरी आंख कैसे खुले? मैं उनसे कहता हूं, पहले दो आंखें थोड़ी बंद करो। तीसरी आंख को खोलने की और क्या जल्दी है? कुछ और उपद्रव देखना है? दो से तृप्ति नहीं हो रही? तुम दो को थोड़ा कम करो, तीसरी अपने आप खुलती है। क्योंकि जब तुम्हारे भीतर देखने की क्षमता प्रगाढ़ हो जाती है, उस प्रगाढ़ता की चोट से ही तीसरी आंख खुलती है। और कोई उपाय नहीं है। इन दो को तुम व्यय कर दो; तीसरी कभी न खुलेगी। जीवन में एक व्यवस्था है; भीतर एक बड़ी सूक्ष्म यंत्र की व्यवस्था है। जो व्यक्ति ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हो जाए उसकी ऊर्जा ऊपर की तरफ अपने आप बहनी शुरू हो जाती है। क्योंकि इकट्ठी होती है ऊर्जा, कहां जाएगी? नीचे जाना बंद हो गया। अपने आप ऊर्जा ऊपर चढ़ने लगती है। अपने आप उसके भीतर के नए चक्र खुलने शुरू हो जाते हैं और नए अनुभव के द्वार। तुम चक्रों को खोलना चाहते हो, वह ऊर्जा पास नहीं है। तुम बटन दबाते हो, बिजली नहीं जलती। बिजली चाहिए भी तो, बहनी भी तो चाहिए, होनी भी तो चाहिए भीतर जुड़े तारों में। वह प्रवाह वहां न हो तो क्या होगा? जब दो आंख धीरे-धीरे, धीरे-धीरे शांत होने लगती हैं...। अभी तुम्हारी देखने की क्षमता सुई की तरह है; अगर तुम इकट्ठा करो तो तलवार की तरह हो जाती है। तब बड़े गहरे तक उसकी चोट होती है। तब तुम देख कर कुछ चीजें देख लोगे जो तुम पहले हजार बार उपाय करते सोच कर तो भी नहीं सोच पाते थे। सोचने का सवाल नहीं है, देखने का सवाल है; दृष्टि पैनी चाहिए। वह पैनी होती है, उसमें निखार आता है, जितना तुम संजोओगे, जितना इकट्ठा करोगे। जब तुम व्यर्थ हो, कुछ नहीं कर रहे हो, आंख की कोई जरूरत नहीं है, मत खोलो। तुम आंख बंद कर लो। तुम मत देखो। तुम सिर्फ शांत रहो। तुम हमेशा पाओगे, जब भी कोई व्यक्ति शांत होगा तो उसकी आंख की पलकें, तुम पाओगे, बड़ी आहिस्ता से गिरती हैं, आहिस्ता से उठती हैं। अशांत व्यक्ति की आंखें बड़ी तेजी से। बहुत बेचैन आदमी की आंखें अगर तुम नींद में भी देखोगे तो पाओगे कि हिल रही हैं पलकें, तनाव अभी भी बाकी है, कंपन जारी है।इंद्रियां हैं छिद्र, उन्हें भर दो। उन्हें भरने का एक ही उपाय है कि उनकी ऊर्जा को व्यर्थ मत बहाओ; वही ऊर्जा उन्हें भर देगी। "इसके द्वारों को बंद कर दो।'- ओशो

                 ध्यान  में उतरने का सीधा रास्ता  श्वांस से हो के  जाता है ,  कई ध्यान की  पद्धतियाँ  है , श्वांस  पे अलग अलग  गतियों से  ध्यान को केंद्रित  करने का रास्ता सुझाती है। (अधिक जानकारी के लिए  विज्ञानं भैरव पुस्तक पढ़े या पतंजलि अष्टांग योग )

                      मुझे  स्वेक्छा  से  धीमी  और गहरी श्वांस  ले के ध्यान करना पसंद है , वहीं  कुछ  मार्ग  में  इनको आक्रामक रूप  दिया गया है।  जैसे  झटके से  सांस  अंदर बाहर करना  या फिर  शुन्य को स्पष्ट देखने  के लिए , श्वांस आने और जाने के बीच मध्यकाल में रुक जाना , आदि  आदि , सब हठयोग के प्रयोग है।

                     यदि  किसी की सलाह के अधीन कर रहे है , तो करने वाले की नैतिक जिम्मेदारी है  की शारीरिक और मानसिक स्वस्थ्य के अनुसार ही ध्यान प्रयोग में उतारे अन्यथा  विपरीत परिणाम होते है।वैसे तो जितने गुरु  उतनी विधि , पर मूलतः  सभी  ध्यानी  शिवयोग  को मूल बना  उसके माध्यम से ही ध्यान में उतारते है। जो विधियां  उसमे वर्णित है  उनसे अलग कुछ संभव ही  नहीं।  बाकी  सब गुरुजन  वो विधि समझाते है  जिनसे आपको समझ  आजाये , क्यूंकि  महत्वपूर्ण ये नहीं की  कहाँ से लिया  क्यों लिया ,अधिक महत्वपूर्ण आपकी श्रद्धा है और  योग है जो आपके नाम और मस्तिष्क पे सकारात्मक प्रभाव डालता है।

                     इसमे , ध्यान में उत्तर रहे  व्यक्ति का स्वयं के प्रति भी जागरूक होना   आवश्यक है , पहली सुचना स्वयं को मिलती है।  तो ध्यान से ध्यान में उतरें ! मकसद  स्वयं को  बीमार बनाना नहीं वरन द्वैत  से अद्वैत  में उतरना है।  जो विधि  आपको  रुचिकर हो हितकर हो उसी को व्यव्हार में लाये , सिर्फ आँखे बंद कर किसी भी धारा को मानना  सही नहीं। यहाँ  ध्यान सिर्फ आलोचना का विषय नहीं , वरन उसका चयन  और विधि का किया जाना  सीधा मानसिक और शारीरिक  स्वस्थ्य से  सम्बंधित है।

बहुत ही संक्षेप  में  संकेत रूप में  सुझाव   दे रही हु :-

                      ध्यान करते समय  रखने  वाली सावधानी  सिर्फ इतनी है  जो भी  हठयोग से सम्बंधित ध्यान मुद्राएं है , उनको समझना है  अपने स्वस्थ्य के अनुसार , की हमारा मन और शरीर  कितना  सह पायेगा , जो भी उच्च रक्तचाप  से पीड़ित हो , या  उच्च कोलेस्ट्राल  से सम्बंधित दवाये ले रहे हो , या श्वांस सम्बंधित रोग से पीड़ित है  अथवा  मस्तिष्क  के  दाब से  पीड़ा होती हो। ऐसे में  श्वांस की गति मायने रखती है ,  इनको करने से पहले  अपने गाइड को बता दें  इसके बाद भी  अपने शरीर के प्रति सचेत रहे।  यदि असुविधा लगे , बेचैनी लगे  तो न करे  ऐसा ध्यान।  

                      ध्यान का प्रमुख  उद्देश्य  आपको पीड़ा पहुँचाना नहीं  वरन आपको ऐसी अवस्था तक ले जाना है  जहाँ आप स्वयं से  साक्षात्कार कर सके।  ठीक उसी प्रकार जैसे  किसी घडी का  कितनी भी कीमती हो  पर मुख्य उद्देश्य  समय बताना है , यदि समय कोई घडी नहीं दिखा प् रही  फिर वो व्यर्थ है।  

                       विपस्यना-ध्यान , सहजध्यान  जैसा ही है , रुचिकर है , अंतरभ्रमण  को महत्त्व देता है , धीमी किन्तु गहरी श्वांस  पे आधारित है।   इसी प्रकार  ओशो का ही प्रचलित  नादब्रह्म ध्यान  भी  सांस की धीमी और गहरी चाल के साथ होता है , परन्तु कई ध्यान है जिनमे सांस को  झटके के साथ निकला जाता है , इनमे से ही एक है - बहुचर्चित  आर्ट ऑफ़ लिविंग का " सुदर्शन क्रिया "  जिसने बहुतो को  लाभ दिया है।पर बहुतो को लाभ नहीं भी मिला।  कारन ! हर व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक अवस्था अलग अलग होती है, हर  शरीर अलग तरंगो से  घिरा है अलग तरीके  से भाव काबू में आते है । " सोऽहं " का प्रयोग में  सो  के साथ स्वांस  अंदर धीरे धीरे और गहरी   कुछ गिनती के साथ  फिर  हं के उच्चारण केसाथ झटके  से श्वांस बहार फेंकना होता है ,  वो  श्वांस  लेने और छोड़ने की प्रक्रिया  झटके से होती है जो अंदर तक नसों को  झनझना देता है , फिर विश्राम  भी कराया जाता है , थोड़ा मनोरंजन थोड़ा व्यायाम भी। सब सही है।  पर अपनी आवश्यकता और शरीर आपको ही देखना है।  इसी प्रकार  डायनामिक योग है ओशो मार्ग में , वो भी ऐसा ही है  " हु " का उच्चारण  झटके के साथ  जिस तरह कराया जाता है , बहुतो को अच्छा लग सकता है बहुतो को नहीं। क्यूकी  इनका भी वो ही " हु " का झटके वाला तरीका है। हाथ किनारे से उठा के  स्वांस गहरी अंदर लेनी है  और हु के साथ  हाथ नीचे और स्वांस बाहर। इस तरीके के ध्यान की पद्धति बनाने वाले  कहते है की इस तरीके से  वो ऑक्सीज़न  अधिक मात्र में शरीर में भेजते है , जिससे सकारात्मक ऊर्जा  कार्य कर पाती है।   संभवतः  सही भी हो सकता है।  पर इससे भी सही है  की आपके शरीर  को  निजी रूप से  क्या विधि रुचिकर है ये तो आपका शरीर ही बता सकता है।  

                       अन्य भी   कई प्रकार के ध्यान है , जो अन्य मार्गी गुरुओं द्वारा बताये जाते है , चूँकि   सुदर्शन क्रिया  और डायनामिक अत्यधिक प्रचलन में है इसीकारण इनका नाम लिया है। कहने का अर्थ सिर्फ इतना है की  यदि आप प्रयोग चाहते है  तो यहाँ प्रयोग  करके देखिये , क्यूंकि शायद आपको भी नहीं पता की क्या आपके शरीर को अच्छा लगेगा और क्या नहीं। सुझाव  है की , कुछ भी  नयी प्रक्रिया करते समय  अपनी  शारीरिक संवेदनशीलता के प्रति सतर्क रहे।  ठीक  उसी प्रकार जैसे  शरीर के व्यायाम  के लिए  आप रहते है।  वो ही आसन करते है  जिनको आसानी से  आपका शरीर कर पाते है। महत्वपूर्ण ये है की आप कितना सजगता पूर्वक  अध्यात्म में उतरते है , एक एक सधा हुआ कदम ही आपको  आपकी मंजिल तक  पहुंचता  है।  लड़खड़ाते हुए  या दौड़ के  आप  अध्यात्म की मंजिल तक नहीं जा सकते।  अब आप जानना चाहंगी की अध्यात्म  की मंजिल आखिर है क्या ? इसका  उत्तर  सिर्फ एक है "नो माइंड " को पा लेना।  क्यूंकि अंत में कुछ नहीं बचता , इस रस्ते में सिर्फ खोना ही है , और खोते जाना है , पाते जाना है।  जहाँ खोना रुक जायेगा  वहीँ पाना भी रुक जायेगा ।  

                      सामान्यतः सहज ध्यान  सुविधाजनक  है  सभी उम्र के लोगो के लिए , स्वस्थ से लेकर माध्यम स्वस्थ्य के लिए , यहाँ तक की अस्वस्थ  भी सहज कर सकता है , क्यूंकि  इस ध्यान की प्रक्रिया  
हाथ से नहीं गुजारती , और अंतर्निरीक्षण पे  सुविधा से प्रवेश किया जा सकता है।  वस्तुतः  सहज ध्यान ही ध्यानी प्रथम सीढ़ी है अंतिम भी।

                      डायनैमिक-ध्यान और  सुदर्शन-क्रिया  दोनों ही शारीरक ऊर्जा को  उत्पन्न या खर्च करती है ,तत्पश्चात विश्राम को स्थान देती है।  तत्पश्चात  रुचिकर  संगीत पे नृत्य।  प्रयोजन सिर्फ ये की अधिकतर जीवो के लिए मन और बुद्धि पे  काबू हठयोग से  पाया जा सकता है , जिसमे ये विधियां  प्रभावकारी है , या फिर अति अवसाद की स्थति से मन घिरा  हो  वहां भी  नकारात्मक ऊर्जा  का घेरा सघन होता है  , जहाँ  स्वतः काबू पाना  कठिन हो , वह भी इस ध्यान विधि का चमत्कार होता है। इसीलिए कहती हूँ ,  विभिन्न प्रकार के ध्यान में  उतरने से पूर्व अपने मन की  और अपने शरीर की अवस्था  का अंदाजा लगा लेना  उचित है। यदि आपके कोई  गुरु  हों जो  आपको व्यक्तिगत सुझाव दे सकें ,ध्यान दीजियेगा ! झुण्ड में  या भीड़ में व्यक्तिगत सुझाव नहीं मिल सकते।  वैसे मेरा अपना  मनना  तो यही है की परम स्वयं ही  मार्गप्रशस्त करते है , स्वयं ही सुविधा  और सुझाव  देते है बस शांत होके उस  मौन की आवाज को सुनना है।  आपसे बढ़ के  आप का गुरु कोई नहीं होसकता।


ध्यान रखें !! दुनिया में आनंदित केवल वही हुए हैं जो अपने अंतर्ज्ञान के अनुसार जिए हैं और दूसरों द्वारा उनके विचारों को लागू करने के प्रयास के खिलाफ विद्रोह किया। उनके विचार हो सकता है मूल्यवान हों , लेकिन वे बेकार हैं क्योंकि वे आपके अपने नहीं हैं। महत्वपूर्ण विचार केवल वही है जो आप  में पैदा होता है , आप में ही बढ़ता है और आप  में ही फूल की तरह खिलता है। 
   
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