मैं एक गहरे अंधेरे में था, फिर मुझे सूर्य के दर्शन हुए और मैं आलोकित हुआ।
मैं एक दुख में था, फिर मुझे आनंद की सुगंध मिली और मैं उससे परिवर्तित हुआ।
मैं संताप से भरा था और आज मेरी श्वासों में आनंदके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है।
मैं एक मृत्यु में था—मैं मृत ही था और मुझे जीवन उपलब्ध हुआ
और अमृत ने मेरे प्राणों को एक नये संगीत से स्पंदित कर दिया।
आज मृत्यु मुझे कहीं भी दिखाई नहीं देती।
सब अमृत हो गया है और सब अनंत जीवन हो गया है।
अब एक ही स्वप्न देखता हूं कि वही आलोक, वही अमृत, वही आनंद -
आपके जीवन को भी आंदोलित और परिपूरित कर दे, जिसने मुझे परिवर्तित किया है।
वह आपको भी नया जन्म और जीवन दे, जिसने मुझे नया कर दिया है।
उस स्वप्न को पूरा करने के लिए ही बोल रहा हूं और आपको बुला रहा हूं।
यह बोलना कम, बुलाना ही ज्यादा है।
जो मिला है, वह आपको देना चाहता हूं।
सब बांट देना चाहता हूं।
पर बहुत कठिनाई है।
सत्य को दिया नहीं जा सकता, उसे तो स्वयं ही पाना होता है।
स्वयं ही सत्य होना होता है।
उसके अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं।
पर मैं अपनी प्यास तो दे सकता हूं, पर मैं पुकार दे सकता हूं।
और, वह मैं दूंगा और आशा करूंगा कि वह पुकार आपके भीतर—
आपके अंतस में प्यास की एक ज्वाला बन जाएगी
और आपको उन दिशाओं में अग्रसर करेगी, जहां आलोक है, जहां आनंद है, जहां अमृत है।
ओशो
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