उत्तरों में नहीं मिलेगा समाधान - समाधि में समाधान है :
यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर जानने की इच्छा सभी को होती है। सभी अपने-अपने तरीक़े से इसका उत्तर भी देते हैं। 'गरुड़ पुराण' भी इसी प्रश्न का उत्तर देता है। जहां धर्म शुद्ध और सत्य आचरण पर बल देता है, वहीं पाप-पुण्य, नैतिकता-अनैतिकता, कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य तथा इनके शुभ-अशुभ फलों पर भी विचार करता है। वह इसे तीन अवस्थाओं में विभक्त कर देता है। पहली अवस्था में समस्त अच्छे-बुरे कर्मों का फल इसी जीवन में प्राप्त होता है। दूसरी अवस्था में मृत्यु के उपरान्त मनुष्य विभिन्न चौरासी लाख योनियों में से किसी एक में अपने कर्मानुसार जन्म लेता है। तीसरी अवस्था में वह अपने कर्मों के अनुसार स्वर्ग या नरक में जाता है।
स्वर्ग-नरक :
हिन्दू धर्म शास्त्रों में इन तीन प्रकार की अवस्थाओं का खुलकर विवेचन हुआ है। जिस प्रकार चौरासी लाख योनियां हैं, उसी प्रकार चौरासी लाख नरक भी हैं जिन्हें मनुष्य अपने कर्मफल के रूप में भोगता है।
तुम पूछते हो—जीवन क्या है? तुम्हें जानना होगा। तुम्हें अपने भीतर चलना होगा। मैं कोई उत्तर दूं; वह मेरा उत्तर होगा। शांडिल्य कोई उत्तर दें, वह शांडिल्य का उत्तर होगा। उधारी से कहीं जीवन निकला है!
बजाय तुम बाहर उत्तर खोजो, तुम अपने को भीतर समेटो। शास्त्र कहते हैं, जैसे कछुवा अपने को समेट लेता है भीतर, ऐसे तुम अपने को भीतर समेटो। तुम्हारी आंख भीतर खुले, और तुम्हारे कान भीतर सुनें, और तुम्हारे नासापुट भीतर सूंघें, और तुम्हारी जीभ भीतर स्वाद ले, और तुम्हारे हाथ भीतर टटोलें, और तुम्हारी पांचों इंद्रियां अंतर्मुखी हो जाएं; जब तुम्हारी पाचों इंद्रियां भीतर की तरफ चलती हैं, केंद्र की तरफ चलती हैं, तो एक दिन वह अहोभाग्य का क्षण निश्चित आता है जब तुम रोशन हो जाते हो। जब तुम्हारे भीतर रोशनी ही रोशनी होती है वही जीवन का सार है।
उत्तरों में नहीं मिलेगा समाधान। समाधि में समाधान है ।
पूरब के किसी मनीषी के संबंध में कुछ भी पता नहीं। पश्चिम के लोग बहुत हैरान होते है। और उनका कहना ठीक ही है कि पूरब के लोगों को इतिहास लिखना नहीं आता। उनकी बात सच है। लेकिन पूरब की मनीषा को भी समझना चाहिए। पूरब के लोग इतना लिखने के आदी रहे है—सबसे पहले भाषाएं पूरब में जन्मी, ‘सबसे पहले किताबें पूरब में जन्मी, सबसे पहले पूरब में लिखावट पैदा हुई, सबसे पुरानी किताबें पूरब के पास है—तो जिन्होंने वेद लिखे, उपनिषद लिखे, गीता लिखी, वे चाहते तो इतिहास न लिख सकते थे! किन्तु जानबूझकर नहीं लिखा।
उनकी बात भी समझनी चाहिए। जानकर नहीं लिखा। जिन्होंने कहा संसार माया है, वे इतिहास लिखें तो कैसे लिखें! किस बात का इतिहास! बबूलों का इतिहास! इंद्रधनुषों का इतिहास! मृग—मरीचिकाओ का इतिहास! जो है ही नहीं, उसका इतिहास! पश्चिम ने इतिहास लिखा, क्योंकि पश्चिम ने बाहर के जगत को सत्य माना है। इतिहास लिखने के पीछे बाहर के जगत को सत्य मानने की दृष्टि है। सत्य है, तो महत्वपूर्ण है। तुम सुबह उठकर अपने सपने तो नहीं लिखते! मिनट—दो मिनट भी याद नहीं रखते। जाग गए, बात खतम हो गयी। सपना भी कोई लिखने की बात है! तुम डायरी में अपने सपने नहीं लिखते। हालांकि पश्चिम में लोग सपने भी डायरी में लिखते हैं। जब बड़े सपने को मान लिया, तो छोटे सपने को भी मानना पड़ता है। और जिन्होंने बड़ा सपना ही इनकार कर दिया, वे छोटे सपने की क्या फिकर करें? सपने के भीतर सपना है!
तुमने देखा जैन मंदिर में जाकर चौबीस तीर्थंकरों की प्रतिमाएं तुम भेद न कर सकोगे कौन किसकी है। सब एक जैसी हैं। लंबा कान इस बात का सूचक है कि यह लोग श्रवण में कुशल थे। वही सुनते थे, जो था जैसा था। इन्होंने ओंकार का नाद सुना था, इस बात की खबर देने के लिए लंबा कान बनाया। यह जो नाद से भरा हुआ जगत है, इनको सुनायी पड़ गया था। इनकी बड़ी—बड़ी आखें सिर्फ इस बात की खबर हैं कि इनकी दृष्टि बड़ी थी, गहरी थी, पारदर्शी थी। इनकी अडिग प्रतिमा, थिर—भाव, शून्य—भाव इस बात का प्रतीक है कि भीतर इनके सब डावाडोलपन विदा हो गया था। थिर हो गए थे; कोई कंपन नहीं उठता था, निष्कंप हो गए थे।
कवि हम उसे कहते हैं जिसने जिया नहीं और गाया, ऋषि हम उसको कहते हैं जिसने जिया और गाया; जो जिया, वही गाया; जैसा जिया, वैसा ही गाया; जाना तो कहा; उसको ऋषि कहते हैं। बिना जाने कहा, उसको कवि कहते है। इसलिए कवि की कविता पढ़ो तो बहुत सुंदर मालूम होगी। हम मूल तो प्रश्न पूछते नहीं, हम गौण प्रश्न पूछते है। और कभी—कभी गौण के विवाद मे उलझ जाते हैं। सारी दुनिया में तथाकथित धार्मिक लोग गौण के विवाद मे उलझ गए है। मुसलमान सोचता है कि काबा कि तरफ हाथ जोड़कर प्रार्थना करूं तो ही पहुंचेगी। कोई सोचता है, काशी में स्नान करूं तो ही पहुंचूंगा। गौण में उलझ गए हैं। प्रार्थना महत्वपूर्ण है, किस तरफ हाथ किए क्या फर्क पड़ता है? परमात्मा सब ओर है। काबा ही काबा है। सब पत्थर काबा के पत्थर है। और सब जल गंगा है। मन चंगा तो कठौती में गंगा। वह नल की टोंटी से जो आती है, वह भी गंगा है, मन चंगा हो। रोग से भरे हुए मन को लेकर चले जाओगे, गंगा में भी स्नान कर आओगे, तो क्या होगा?
बुद्धिमान ही श्रद्धालु हो सकता है। बुद्धिहीन श्रद्धालु नहीं होता, सिर्फ विश्वासी होता है। और विश्वास और श्रद्धा में बड़ा भेद है।
विश्वास तो इस बात का संकेत है केवल कि इस आदमी को सोच—विचार की क्षमता नहीं है। विश्वास तो अज्ञान का प्रतीक है। जो मिला, सो मान लिया। जिसने जो कह दिया, सो मान लिया। न मानने के लिए, प्रश्न उठाने के लिए तो थोड़ी बुद्धि चाहिए, प्रखर बुद्धि चाहिए।
बुद्धि सिर्फ तुमसे यह कह रही है—उठाओ प्रश्न, जिज्ञासाएं खड़ी, करो, सोचो। और जब सारे प्रश्नों के उत्तर आ जाएं, और सारी शंकाएं—कुशकाएं गिर जाएं, तब जो श्रद्धा का अविर्भाव होगा, वही सच है।
महाभारत में कृष्ण की सारी फौजें कौरवों के साथ थीं | केवल कृष्ण निहत्थे पांडवों के साथ थे | वह बात बस्तुतः सूचक है | संसार की सारी शक्तियां अँधेरे के पक्ष में हैं | संसार की शक्तियां यानी परमात्मा की फौजें | निहत्था परमात्मा भर तुम्हारे पक्ष में है | विश्वास नहीं होता कि निहत्थे परमात्मा के साथ विजय हो सकेगी | कृष्ण केवल अर्जुन के सारथी रहे हों ऐसा नहीं है | तुम्हारे रथ पर भी जो सारथी बनकर बैठे हैं, वे कृष्ण ही हैं |
जो भी तुम्हारे भीतर प्रेम का तत्व है, वही परमात्मा की पहली किरण है | तुम्हारे भीतर अन्धकार को अलग छांटना होगा, प्रकाश को अलग | वह जो परमात्मा से प्रार्थना की है – हे प्रभु मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चल “तमसो मा ज्योतिर्गमय”, उसी उपनिषद के ऋषि ने से शुरूआत होती है साधना की |
पद पर पहुंचकर लोग जितने छोटे सिद्ध होते हैं, उतने और किसी तरह से नहीं होते | इच्छाएं तो सदा से थीं, लेकिन पूरी करने की सुविधा नहीं थी | सुविधा नहीं थी तो दुनिया को यही दिखाते थे कि इच्छा ही नहीं है | क्योंकि सुविधा नहीं है, यह कहने पर तो पीड़ा होती | अतः जब सुविधा मिलती है, तब असलियत प्रगट होती है | सब दबी हुई इच्छाएं प्रगट होने लगती हैं | जैसे वर्षाकाल में जमीन में दबे सब बीज अंकुरित होने लगते हैं | और पद से हटने के बाद आदमी को पता चलता है कि जिन्दगी हाथ से निकल गई और जो कचरा कमाया उसका कोई मूल्य नहीं |
रसो वै सः | वह परमात्मा रसरूप है | रस का अर्थ होता है, जैसे वृक्ष में हरा जीवन रस बहता | वही तो खिलता फूल में | जैसे तुम्हारे भीतर श्वांस में प्राण बहता | वही तो जिलाता तुम्हें, जगाता तुम्हें | जो जीवन का पोषक है | परमात्मा इस जीवन का रस है | जो संसार से विरस हो गया, जरूरी नहीं कि वह परमात्मा के रस को पा ले | लेकिन जो परमात्मा के रस में डूब गया, संसार उसके लिए बचता ही नहीं | उसे यहाँ फिर संसार दिखाई ही नहीं पड़ता, परमात्मा ही दिखाई पड़ता है, उसके ही रस की विभिन्न भाव भंगिमाएं, उसके ही रस के अलग अलग रूप, उसके हूँ रस के अलग अलग रंग | वही स्त्री में, वही पुरुष में, वही वृक्ष में, वही पशु में, वही पक्षी में, वही चाँद तारों में |
पहला सूत्र :–
द्वेषप्रतिपक्षभावा: रस शब्दाचरागः |
द्वेष का प्रतिकूल और रस शब्द का प्रतिपादक होने के कारण ही भक्ति का नाम अनुराग है |
द्वेष का प्रतिकूल और रस शब्द का प्रतिपादक होने के कारण ही भक्ति का नाम अनुराग है |
शांडिल्य के सूत्र बड़े अद्भुत हैं | द्वेष का प्रतिकूल, हो गई परिभाषा भक्ति की | द्वेष के प्रतिकूल ओर रस के अनुकूल वही भक्ति | भक्ति परमात्मा का प्रसाद है, मनुष्य का प्रयास नहीं |
जब सूरज निकलेगा तो उसकी रोशनी तुम्हारे घर को भर देगी | तुम सूरज को गठरियों में बाँध कर घर के भीतर नहीं ला सकते | तुम सूरज को आज्ञा नहीं दे सकते कि मुझे अभी रोशनी की जरूरत है, निकलो, अब सुबह होना चाहिए | सूरज जब निकलेगा तब निकलेगा | हाँ तुम सूरज को द्वार बंद कर रोक जरूर सकते हो | इस फर्क को समझ लेना | भक्ति को कोई चाहे तो रोक सकता है, ला नहीं सकता | नकारात्मक द्रष्टि से तुम क्षमताशाली हो | सूरज निकला रहे, तुम आँख बंद करे रहो तो क्या करेगा सूरज ? तुम अँधेरे में रह जाओगे | भक्ति आती है, भक्ति भगवान से आती है | तुम सिर्फ पात्र बनो | तुम ग्राहक बनो |
सुकरात ने कहा है कि जब मैं जवान था, तो सोचता था, सब जानता हूँ | जब प्रौढ़ हुआ तब मुझे यह अकल आई कि मैं सब नहीं जानता, थोड़ा सा जानता हूँ, बहुत जानने को शेष है | और जब मैं बूढा हुआ, तो मुझे यह अकल आई कि जानता ही क्या हूँ ? महा अज्ञानी हूँ | मुझसे बड़ा अज्ञानी कौन ?
न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत निकाला कि जमीन खींचती है हर चीज को अपनी तरफ | यह अधूरा सिद्धांत है | अगर मेरा न्यूटन से मिलना हो तो उससे मैं कहूं कि हमने जमीन में बीज बोया लेकिन फल लगा आकाश में ? यह फल चढ़ा कैसे ? फक टूटकर गिरता है तो जमीन पर गिरता है, यह सच है | तो इससे एक सिद्धांत तय होता है कि जमीन खींचती है | मगर कोई ताकत होनी चाहिए जो ऊपर की तरफ भी खींचती है | नहीं तो वृक्ष उठेगा ही कैसे ? बीज अगर टूटे न तो नीचे की तरफ जाएगा, बीज अगर टूट जाए तो ऊपर की तरफ जाएगा | अहंकार अगर टूटे न तो नीचे की तरफ ले जाता है, नरक की यात्रा करवाएगा, अहंकार अगर टूटे तो सारा वर्ग तुम्हारा है, तुम्हारे लिए प्रतीक्षा कर रहा है |
किसी ने कहा “ईश्वर प्रकाश है” | यह आधी बात है | और किसी ने कहा कि ईश्वर अन्धकार है | यह भी आधी बात है | ईश्वर दोनों है, जिसने जाना, उसने ईश्वर के दोनों अंग जाने, दोनों पहलू जाने | लेकिन प्रकाश और अन्धकार दोनों कहना तर्कहीन है | कोई भी पूछेगा कि प्रकाश और अन्धकार दोनों कैसे हो सकता है | फिर तुम तर्क की झंझट में फंसोगे | कोई कहेगा – फिर आप ऐसा करो कि इस कमरे में प्रकाश और अन्धकार दोनों एक साथ करके दिखा दो | यह तो हो ही नहीं सकता | या तो प्रकाश होगा, या अन्धकार होगा | अब तुम कैसे सिद्ध करोगे कि प्रकाश और अन्धकार दोनों है |
अब चौथा रास्ता है कि तुम कहो कि न प्रकाश है और न अन्धकार | तो पूछने वाला पूछेगा – फिर क्या है ? क्योंकि दो में से एक होना ही चाहिए | अगर दोनों में से नहीं है तो फिर क्या कहने की कोशिश कर रहे हो ? न प्रेम न घृणा, न पदार्थ न चेतना, न प्रकाश न अन्धकार, न जीवन न मृत्यु है तो फिर है क्या ? क्या पहेलियाँ बुझा रहे हो ?
जो कुछ भी कहो ये चार उपाय ही हैं कहने के | पर जिस ढंग से भी कहो, वही ढंग गलत हो जाता है | न कहो चुप रह जाओ तो ??
इस सदी में जिस आदमी का सर्वाधिक प्रभाव पडा है दुनिया पर, वह है फ्रायड | क्योंकि उसने निम्नतम बातों को वरीयता दी, श्रेष्ठतम बातों को अस्वीकार कर दिया | उसने कह दिया, न कोई परमात्मा, न कोई आत्मा, न कोई समाधी, सब बकबास है | असली बात तो काम वासना है | सब लोगो ने राहत की सांस ली | हम जो कर रहे हैं, वही ठीक है | नाहक उलझाया हुआ था धार्मिकों ने, बुद्धों ने | चैन ही नहीं लेने देते थे | जीना दुश्वार कर दिया था | धन कमाओ तो बीच में खड़े हो जाते, स्त्री के पीछे दौड़ो तो बीच में | फ्रायड आया त्राता की तरह, तरण तारण | उसने एकदम मन हल्का कर दिया | भारी बोझ उतर गया | उसने कहा यही तो आदमी कर रहा है, सदा से कर रहा है | जो नहीं कर रहा है, वह या तो पागल है, या धोखेबाज है, या खुद धोखे में है | लेकिन उसका परिणाम क्या हुआ ?
आदमी उतना नीचा कभी नहीं गिरा जितना फ्रायड के बाद गिरा | जब ऊंचे उठने की बात ही झूठ मान ली गई तो कोई ऊंचे उठने का प्रयास ही क्यों करेगा ? जब एवरेस्ट है ही नहीं, तो कोई पहाड़ क्यों चढ़े ? जब हीरे की खदान होती ही नहीं तो कोई क्या खोदता फिरे ? तो अपना कूड़ा करकट जो भी है, वही संभालो | तो फ्रायड के बाद मनुष्य जाती की चेतना में अपूर्व पतन आया | दो आदमियों के ऊपर मनुष्य जाती के पतन का जिम्मा है | एक फ्रायड, दूसरा मार्क्स | एक ने कहा काम वासना सब कुछ है, तो दूसरे ने कहा अर्थ वासना सब कुछ है | दोनों ने तुम्हे मुक्त कर दिया | दोनों ने धर्म से मुक्त कर दिया | दोनों ने कहा, बस दो चीजें करने योग्य हैं, काम की तृप्ति करो और धन पाओ | बस ये दो चीजें मूल्यवान हैं | और आदमी पागल होकर दोनों के पीछे पड गया | बैसे ही आदमी डूबा था गर्त में, अब कोई उपाय ही नहीं रहा मुक्ति का |......
ओशो
No comments:
Post a Comment