Wednesday, 4 June 2014

और वो ऊर्जा-क्षेत्र जागृत हो गया !!



ये वाक्य स्वयं ही अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है , पर कई सवाल भी जिज्ञासु के मन में दे जाता है , ख़ास कर वो जो सम्पूर्ण जीवन और उसके अंदर के विभिन्न सुख दुःख के फेरे और अन्य कष्ट पीड़ाये रोग , अथवा कथित भाग्य द्वारा दिएगए अच्छे और बुरे फल को संभवतः एक दृष्टि से देखते है , वो भी एक वाक्य के साथ " आखिर मेरे साथ ही ऐसा क्यों "

ये प्रश्न अद्भुत है !! प्रथम दर्शन में जिसके ह्रदय में उठ रहा है उसके ह्रदय की चीत्कार सी लगती है जो शोक से डूबी , पर मस्तिष्क भी इसमें उतना ही सक्रिय है जो संभवतः ये मानने को तैयार नहीं की उसकी और उसकी शक्ति सिमित है , और उसकी सत्ता से भी ऊपर कोई सत्ता है। समस्या ये है की हम ऊपर की सत्ता को मानते भी है तो सिर्फ चमत्कार के लिए और सिर्फ अपने हित के लिए की गयी करूँ पुकार के लिए , यदि मनोवांछित हो गया तो आपके द्वारा प्रभु को प्रशंसा-प्रसाद मिल गया , और नहीं तो उनकी सत्ता पे प्रश्न लग गया।

पर ये क्रंदन भी व्यर्थ नहीं। उपहार है जो असीमित सम्भावनाओ और ज्ञान के द्वार खोलता है , अभी भी जो संतप्त के लिए रहस्य है , मन अनेक जादुई सम्भावनाओ से भरा है , और मस्तिष्क में भरा है , जन्म से इकठा अलग अलग धर्म सम्प्रदायों द्वारा डाला गया कथा-रूप / भावना-रूप में कचरा ( कचरा इसलिए नहीं की वो गलत है , कचरा इसलिए की हमारा दिमाग कबाड़ केंद्र हो चूका है और इस कबाड़ में तो कचरा ही संकलित हो सकता है ) और यही कचरा हमे स्वप्न देता है , स्वप्न में मरहम देता है और स्वप्न में ही स्वप्न की उम्मीद देता है।

संभवतः समाज को संचालित करने का इससे बेहतर कोई उपाय नहीं। वस्तुतः सब गलत नहीं , परन्तु जो ग्राह्यता है वो परिपक्व नहीं। और नतीजा ये की सारी इक्छायें उम्मीदें भविष्य के सपने आक्रोश उदासीनता .....विस्तृत को इशारा करती सांकेतिक सन्दर्ध के लिए निर्मित मूर्ति के ऊपर निकलता है , और तब भी यदि हृदय और मस्तिष्क हल्का न हुआ तो ही व्यक्ति अन्य सच्चाईयों की तरफ उन्मुख हो पता है। यदि संज्ञान थोड़ा भी बाकि है तो ही विचार आता है की संभवतः मुझे जो बताया गया है या मैंने जो समझा है , उसी में और सच्चाई में भेद है।

ये जो विचार है ये स्वयं में ऊर्जा का ही रूप है , मृत के शरीर में विचार नहीं बनते। एक एक विचार का अपना फेरा है , इसका अति साधारण अर्थ ये है की विचार का जन्म परिस्थतिजन्य है और समय के साथ परिवर्तन शील , यानी की एक विशिष्ट समय में एक विशिष्ट परिस्थति के घेरे में तत्संबंधित विशिष्ट विचार और प्रेरणाओं का जन्म होता है। ये जो परिस्थति , और प्रेरणाएँ है ये आपके मस्तिष्क और मन की तरंगो से टकराती है और इक्षाशक्ति का रूप लेती है , ध्यान दीजियेगा , सुन्दर शब्द है इक्षा शक्ति यानि की आपकी इक्षाएं भी ऊर्जा का रूप है , पर और भी ध्यान से समझने वाली बात है ऊर्जा क्षेत्र के सम्बन्ध में , इक्षाए जो जन्म ले रही है , किसी विशिष्ट परिस्थिति का परिणाम है जिन्होंने मस्तिष्क और मन के माध्यम से आपके शरीर को स्वयं के कार्य में ले लिए है , और आप उनको अपना समझ पूरी शक्ति से उनको फलित करने का प्रयास कर रहे है , यदि उचित फल मिला तो आप प्रसन्न यदि सफलता नहीं मिली तो आप हताश। बहुत महीन बुनावट है ये ऊर्जाओं के कार्यसम्पादन की। . प्रत्यक्ष रूप से आप सिर्फ ऊर्जाओं के माध्यम भर है , और जैसे ही कार्य सम्पादित हो जाता है , आपको बिना शांत हुए दिए बगैर अगली ऊर्जा का कार्य क्षेत्र शुरू हो जाता है , और आप अनवरत इनके फेरे में बँधे रहते अपना जीवन एक ऐसी प्यास के नाम कर देते है जो कभी पूरी हो ही नहीं सकती , क्यूंकि ये परिवर्तशील है। संभवतः ये आपका जीवन नहीं ! एक आत्मीय ऊर्जा जब जागृत होती है तो आपको आपके जन्म का उद्देश्य मिलता है , जो इनसे भिन्न नहीं अपितु जीवन संज्ञान बन जाता है। जो परिस्थति कष्टकारी और उदास करती थी अब आपको अट्टहास देती है।

परिस्थतियां बंधी है अपने अपने ऊर्जा क्षेत्र से , आश्चर्यजनक रूप से , जब तक आपको ये आभास नहीं होता , तब तक सत्य धूमिल सा रहता है , जो अपनी जगह खड़ा सिर्फ आपका इन्तजार करता रहता है। आओ , मुझे पहचानो !!

गोल गोल चक्कर में घूमती ये क्षेत्रीय ऊर्जाओं का फेरा भी अद्भुत है , बिलकुल वैसा ही जैसा गहरे पानी में भवर और आंधी में हवाएँ गोल गोल घूमती हुई रफ़्तार पकड़ती ही चली जाती है। और भी गहरा बवंडर जो अपनी ही एक जगह में गोल गोल रफ़्तार में घूमता हुआ आगे भी बढ़ता जाता है , परन्तु अपनी गिरफ्त में फंसे हुए को बाहर निकलने नहीं देता। , सकारात्मक नकारात्मक उर्जाये भी ऐसे ही चक्कर लगा रही है। नकारात्मक उर्जाये निम्न स्तर पे है इसलिए बलवान नजर आती है , क्यूंकि आपकी आत्मिक शक्ति उनको तोड़ने में असमर्थ पाती है स्वयं को। सकारात्मक ऊर्जाये तनिक ऊपर के घेरे में है , जैसे ही आप उनको स्पर्श करते है , तुरंत आपके आस पास का वातावरण सुवासित और शांत होने लगता है।

इसी प्रकार ज्ञान के भी ऊर्जावान स्तर है। वस्तुतः ज्ञान ज्ञान ही है , परन्तु आप अभी उर्ध्वगामी उर्जाओ की राह पे है , तो आपको नए नए अनुभव मिलने ही है। ये भिन्न भिन्न ज्ञान के स्तर पे ज्ञान की ऊर्जाएं सक्रिय है , जो आपको ज्ञान मार्ग में मिलती जाती है , और आपमें ज्ञान शांति , प्रसन्नता और उद्देश्य को स्पष्ट करती जाती है।

जब आप अपने वर्तमान क्षेत्र ऊर्जा से वापिस को देखते है तो आपको इन ऊर्जा क्षेत्रों का भान होता है जिनमे आप बुरी तरह लिप्त थे अथवा फंसे हुए थे। अब आप ज्ञान क्षेत्र की ऊर्जा में संचालित है , सकारात्मक उर्जाये आपका मार्ग प्रशस्त कर रही है , ये इनका क्षेत्र है , यहाँ नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं हो सकता। परन्तु आश्चर्य है की नकारात्मक ऊर्जा क्षेत्र में सकारात्म ऊर्जा अपनी सुवास भेज सकती है , जिसके परिणाम स्वरुप ज्ञान और जागरण की सम्भावना बनी रहती है।

चमत्कार है ये भी , की जिस ऊर्जा क्षेत्र में हमारी बुद्धि और मन फंसे होते है , चाहे वो कितने भी दुष्परिणाम वाले हो उन फेरो के लिए सद्भाव और शक्तिशाली तर्क हमारे दिमाग में उपजते ही रहते है। इसी कारन जो जिस घेरे में कैद है उसी घेरे के लिए प्रबल और अकाट्य पक्ष में तर्क उपस्थित रहते है , जो उस आत्मा की यात्रा के लिए बाधा ही है , परन्तु ये अहसास भी घेरा तोड़ के ही आता है। उसके पहले अद्भुत है की वो ही सम्पूर्ण और स्वयं का जीवन लगता है। और यही वजह है की कोई भी घेरा तोड़ने के लिए आत्मा की विशिष्ट प्रयास करने पड़ते है।

यहाँ पे एक महत्वपूर्ण बात और स्पष्ट करना चाहूंगी , ये जो प्रयास है , ये आपकी गति है आपके साधन है इनके सहयोग से ही आप घेरे तोड़ते है ,

नेति नेति का सिद्धांत कहता है की अंत में आपका कुछ नहीं , मात्र शुन्य बचता है। जो प्रयास रहित (
परन्तु कर्म रहित नहीं ) बहाव है यही आत्मा की गति है ... आपका प्रारब्ध है। जब आप इस स्थिति में ठहर जायेंगे , तब आपकी आध्यात्मिक यात्रा का प्रथम उन्नत कदम होगा। और तब आप स्वयं कह उठेंगे , " और वो ऊर्जा-क्षेत्र जागृत हो गया !! "

यही से जीव की सत्यम शिवम सुंदरम की अभूतपूर्व यात्रा का शुभारम्भ होता है। जहाँ शिवा और माँ शक्ति स्वयं संरक्षण देते है। और जीव प्रश्न रहित , उद्वेग रहित , समर्पित , आभार युक्त , करुणा से भरा हुआ एक ऐसे सरल और सहज पुष्प के सामान हो जाता है , जो बस शिवा के चरणो में समर्पित होने को तैयार हो चूका है यही से जीव का सद गति मार्ग स्वयं शिवा-शक्ति की छत्रछाया में प्रशस्त होता है। 


Photo: और वो ऊर्जा-क्षेत्र जागृत हो गया !!
---------------------------------------

 ये वाक्य स्वयं ही अपने आप में  बहुत कुछ कह जाता है ,  पर कई सवाल भी जिज्ञासु के मन में दे जाता है , ख़ास कर वो जो सम्पूर्ण जीवन  और उसके अंदर  के विभिन्न सुख दुःख  के फेरे  और  अन्य कष्ट पीड़ाये रोग , अथवा  कथित  भाग्य  द्वारा  दिएगए  अच्छे और बुरे फल  को संभवतः  एक दृष्टि से देखते है , वो भी एक वाक्य के साथ " आखिर मेरे साथ ही ऐसा क्यों " 

ये प्रश्न  अद्भुत है  !! प्रथम दर्शन में  जिसके  ह्रदय में  उठ रहा है उसके ह्रदय की चीत्कार  सी लगती है  जो शोक से डूबी  , पर मस्तिष्क भी इसमें उतना ही सक्रिय है  जो संभवतः ये मानने को तैयार नहीं की  उसकी  और  उसकी शक्ति  सिमित है , और उसकी सत्ता से भी ऊपर कोई सत्ता है।   समस्या ये है की हम  ऊपर की सत्ता को मानते भी है  तो सिर्फ चमत्कार  के लिए  और  सिर्फ  अपने  हित के  लिए की गयी  करूँ पुकार  के लिए , यदि मनोवांछित हो गया  तो  आपके द्वारा प्रभु को प्रशंसा-प्रसाद  मिल गया  , और नहीं  तो उनकी सत्ता पे प्रश्न लग गया।  

पर ये  क्रंदन भी व्यर्थ नहीं।  उपहार है  जो असीमित सम्भावनाओ और ज्ञान के द्वार खोलता है , अभी भी  जो संतप्त के लिए  रहस्य है , मन  अनेक  जादुई  सम्भावनाओ से भरा है , और मस्तिष्क में भरा है , जन्म से इकठा  अलग अलग धर्म सम्प्रदायों द्वारा डाला गया  कथा-रूप / भावना-रूप    में  कचरा ( कचरा इसलिए  नहीं की वो गलत है , कचरा इसलिए की हमारा दिमाग कबाड़ केंद्र  हो चूका है  और इस कबाड़ में  तो कचरा ही  संकलित हो सकता है ) और यही  कचरा  हमे  स्वप्न देता है ,  स्वप्न में मरहम देता है  और  स्वप्न में ही स्वप्न की उम्मीद देता है।  

संभवतः  समाज  को   संचालित  करने का  इससे  बेहतर कोई उपाय नहीं।  वस्तुतः  सब गलत नहीं , परन्तु  जो ग्राह्यता है  वो परिपक्व नहीं।  और नतीजा  ये की  सारी इक्छायें  उम्मीदें  भविष्य के  सपने   आक्रोश  उदासीनता  .....विस्तृत को इशारा करती सांकेतिक  सन्दर्ध के लिए निर्मित मूर्ति के ऊपर  निकलता है , और तब भी  यदि  हृदय  और मस्तिष्क हल्का न हुआ  तो ही  व्यक्ति  अन्य  सच्चाईयों की तरफ उन्मुख हो पता है।  यदि संज्ञान थोड़ा भी बाकि है तो ही   विचार आता है  की संभवतः मुझे  जो बताया गया  है या मैंने जो समझा है , उसी में   और सच्चाई में भेद है।  

ये जो विचार है  ये  स्वयं में ऊर्जा का ही रूप है ,  मृत  के शरीर में   विचार नहीं बनते।   एक एक विचार  का अपना  फेरा है , इसका अति साधारण अर्थ ये है  की  विचार का जन्म परिस्थतिजन्य है  और  समय के साथ परिवर्तन शील , यानी की एक विशिष्ट  समय में   एक विशिष्ट परिस्थति  के घेरे में  तत्संबंधित  विशिष्ट  विचार और प्रेरणाओं का जन्म होता है।   ये जो  परिस्थति , और प्रेरणाएँ है  ये आपके  मस्तिष्क  और मन  की तरंगो से टकराती है  और इक्षाशक्ति का रूप लेती है , ध्यान दीजियेगा ,  सुन्दर शब्द है इक्षा शक्ति  यानि की आपकी इक्षाएं भी ऊर्जा का रूप है , पर और भी ध्यान से  समझने वाली बात है ऊर्जा क्षेत्र के सम्बन्ध में , इक्षाए  जो जन्म ले रही है , किसी विशिष्ट परिस्थिति  का परिणाम है  जिन्होंने  मस्तिष्क  और मन के माध्यम से  आपके शरीर को  स्वयं के  कार्य  में ले लिए है , और आप उनको अपना समझ  पूरी शक्ति से  उनको फलित करने का प्रयास कर रहे है , यदि  उचित फल मिला  तो  आप प्रसन्न   यदि  सफलता नहीं मिली तो आप हताश।   बहुत महीन बुनावट  है  ये ऊर्जाओं के कार्यसम्पादन की। . प्रत्यक्ष रूप से  आप सिर्फ ऊर्जाओं के माध्यम भर है , और  जैसे ही कार्य सम्पादित हो जाता है , आपको बिना  शांत हुए दिए बगैर  अगली ऊर्जा का कार्य क्षेत्र   शुरू हो जाता है , और आप अनवरत  इनके फेरे में  बँधे  रहते  अपना जीवन  एक ऐसी प्यास के नाम कर देते है  जो कभी पूरी हो ही नहीं सकती , क्यूंकि ये परिवर्तशील है।  संभवतः ये आपका जीवन नहीं ! एक  आत्मीय ऊर्जा जब जागृत होती है  तो आपको आपके जन्म का उद्देश्य  मिलता है , जो इनसे भिन्न नहीं  अपितु  जीवन संज्ञान बन जाता है।   जो परिस्थति कष्टकारी  और उदास करती थी अब आपको अट्टहास देती है।  

परिस्थतियां  बंधी है  अपने अपने  ऊर्जा क्षेत्र से , आश्चर्यजनक रूप से , जब तक  आपको ये  आभास  नहीं होता , तब तक  सत्य धूमिल सा रहता है , जो अपनी जगह खड़ा सिर्फ आपका इन्तजार करता रहता है।  आओ , मुझे पहचानो !! 

गोल गोल चक्कर में घूमती ये  क्षेत्रीय ऊर्जाओं का फेरा भी  अद्भुत  है , बिलकुल  वैसा ही  जैसा गहरे पानी में  भवर  और  आंधी में  हवाएँ  गोल गोल घूमती हुई रफ़्तार पकड़ती ही चली जाती है।  और भी गहरा बवंडर  जो अपनी ही एक जगह में गोल गोल रफ़्तार  में घूमता हुआ आगे भी बढ़ता जाता है , परन्तु अपनी गिरफ्त  में फंसे हुए को बाहर  निकलने नहीं देता।  ,  सकारात्मक नकारात्मक  उर्जाये भी ऐसे ही  चक्कर लगा रही है।   नकारात्मक उर्जाये निम्न स्तर  पे है  इसलिए बलवान नजर  आती है , क्यूंकि आपकी आत्मिक शक्ति उनको तोड़ने  में  असमर्थ पाती है स्वयं को।   सकारात्मक ऊर्जाये   तनिक ऊपर के घेरे में है , जैसे ही आप उनको स्पर्श करते है , तुरंत आपके  आस पास का वातावरण सुवासित और शांत होने लगता है।  

इसी प्रकार  ज्ञान के भी ऊर्जावान   स्तर है।  वस्तुतः  ज्ञान ज्ञान ही है , परन्तु आप  अभी  उर्ध्वगामी  उर्जाओ की   राह पे है , तो आपको नए नए अनुभव मिलने ही है।  ये भिन्न भिन्न  ज्ञान के स्तर  पे  ज्ञान की ऊर्जाएं सक्रिय  है , जो आपको ज्ञान मार्ग में मिलती जाती है , और आपमें ज्ञान  शांति , प्रसन्नता  और उद्देश्य को स्पष्ट  करती जाती है।    

जब आप  अपने  वर्तमान  क्षेत्र ऊर्जा से  वापिस को  देखते है  तो आपको  इन  ऊर्जा क्षेत्रों का भान होता है जिनमे आप  बुरी तरह लिप्त थे  अथवा फंसे हुए थे।   अब आप ज्ञान क्षेत्र की ऊर्जा में संचालित है , सकारात्मक उर्जाये आपका मार्ग प्रशस्त कर रही है , ये इनका क्षेत्र  है , यहाँ नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं  हो सकता।   परन्तु आश्चर्य है की  नकारात्मक ऊर्जा क्षेत्र में  सकारात्म ऊर्जा अपनी सुवास भेज सकती है , जिसके परिणाम स्वरुप  ज्ञान और जागरण की सम्भावना बनी रहती है।  

चमत्कार है ये भी , की जिस ऊर्जा क्षेत्र में हमारी बुद्धि और मन फंसे होते है , चाहे वो कितने भी दुष्परिणाम वाले हो  उन फेरो के लिए सद्भाव  और शक्तिशाली  तर्क   हमारे दिमाग में उपजते ही रहते है।  इसी कारन जो जिस घेरे में कैद है  उसी घेरे के लिए  प्रबल और अकाट्य  पक्ष में  तर्क उपस्थित  रहते है , जो  उस आत्मा की यात्रा के लिए बाधा ही है , परन्तु ये अहसास भी घेरा तोड़ के ही आता है।  उसके पहले  अद्भुत है की वो ही सम्पूर्ण और स्वयं  का  जीवन लगता है।  और यही वजह है की  कोई भी घेरा  तोड़ने के लिए  आत्मा की विशिष्ट प्रयास करने पड़ते है।  

यहाँ पे  एक महत्वपूर्ण बात और स्पष्ट  करना चाहूंगी , ये जो प्रयास है ,  ये आपकी गति है आपके साधन है  इनके सहयोग से ही आप घेरे तोड़ते है ,

नेति नेति  का सिद्धांत  कहता है की  अंत में आपका कुछ नहीं , मात्र शुन्य बचता है।   जो प्रयास रहित  ( परन्तु कर्म रहित  नहीं )  बहाव  है  यही आत्मा की गति  है ... आपका प्रारब्ध है।  जब आप इस स्थिति में ठहर जायेंगे , तब आपकी आध्यात्मिक यात्रा  का प्रथम उन्नत  कदम होगा।   और तब  आप स्वयं कह उठेंगे , " और वो ऊर्जा-क्षेत्र  जागृत हो गया !! " 

यही से जीव की  सत्यम शिवम सुंदरम की अभूतपूर्व यात्रा का शुभारम्भ होता है।  जहाँ शिवा और माँ शक्ति  स्वयं संरक्षण देते है।   और  जीव  प्रश्न रहित , उद्वेग रहित , समर्पित ,  आभार युक्त , करुणा से भरा  हुआ  एक ऐसे सरल  और सहज  पुष्प के सामान हो जाता है , जो बस शिवा के चरणो में समर्पित  होने को  तैयार हो चूका है यही से जीव का सद गति  मार्ग स्वयं शिवा-शक्ति  की  छत्रछाया  में प्रशस्त  होता है।  

आप सभी को  जीवन यात्रा की   शुभकामनाये !!

No comments:

Post a Comment