Saturday, 10 January 2015

संत कथा / गृहस्थ कथा

संत  कथा  भी  गृहस्थ कथा  से  अलग  नहीं  बस  सिक्के  ने  करवट  बदली  है  ..

माया  के  संत  -: तर्क  वितर्क  में  उलझे  , मौन  में  उतरे  , ध्यान योग में उतरे लोगो  को  सत्य  की  राह दिखाते   रहे  और  एक  दिन  सत्य वहीं  खड़ा  रहा अडिग और अविचलित  और  ऊँगली  समेत  सत्यधारी प्रस्थान  कर  गए  ...

माया  के  गृहस्थ  :- तो स्वयं संज्ञानी   गृहस्थ  भी  जानते  है, बड़े  ही सयाने गृहस्थ है  की  सब  माया  ही माया है  .. पता  नहीं  कौन  धोखे  में  है  और  कौन  धोखे  से  बाहर  .. सबका  अपना  अपना  धोखा  ही  है  ..

और  माया  :- महा  ठगनि हम  जानी .


वो (आध्यात्मिक ) कहते रहे  वो  कहते  रहे  शिविर लगा-लगा के , समय न गवाओं ,सिर्फ  खेलो  मत  , बैठो अपने साथ  , ध्यान धरो  सुस्ताओ  , और  खुद  वो  फंस  गए   खेल खेल में  उसी  खेल  में  ..... कैसे  ! ऐसे

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1) purpose of life
2) death & beyond
3) understanding relationships
4) who is the creator?
5) being love
+
AUM-sound of silence (meditative healing music of AUM naad)
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1) why raw food?
2) 108 salad mantras
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जब  माया  का  खेल  सुना  एक आध्यात्मिक सन्यासी ने.. तो दिल से कह उठा,'   हे  भगवन  ! पाहिमम पाहिमम  …प्रभु  रक्षा  करो  …अगर  लोगों  को  पता  चल  गया  मुझे  तो  न  भोजन  का  न  शौंच  का न स्नान  का  कोई  मन्त्र  ही  नहीं  आता , लोगों  को  पता  चल  गया  तो  रोटी  रहने  की  छाया  भी  छीन जायेगी बाबा   लोगों  को  पता   चल  गया  तो  बाबागिरी  पे बैन  लग  जायेगा  ।ओशो  सन्यासी  तो  वैसे  ही  फ्री  रोटी नहीं  देते , आर्ट ऑफ़ लिविंग  भी  पैसे खाओ और सोहम मन्त्र दो का धंधा करती है  ।मन्त्रोन  के  चक्कर  में नंदू  तो  भूखा  ही  मर  जायेगा  ... प्रभु  तेरे  भरोसे  ही  नंदू  पलता  है  ।खैर  मौत  तो  आनी  ही  है  बीमारी   से मरे  या  भूखे ; मारना  तो  निशानी  है  । थोड़ी  सी  जिंदगानी  है  । तू  जैसा  जिए  जिलाये  तेरी  मेहरबानी  है


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