तुम कान्हा , तुम राधा
मीरा सूर कबीरा तुम्हीं
अल्लाह की अजान तुम
परमात्मा के पुत्र तुम्हीं
मंदिरों की पुकार तुम्हीं
बुद्ध नानक समेटे तुम
समाये तुममे सारे जादू ......
ये कान्हा का निर्णय था की उन्हें कारागृह में जन्म लेना है , कारागृह से कब मुक्त होना है ये भी उनका ही निर्णय था। बड़ा प्रतीक है , बड़ी गहराई है , कुछ ऐसा कहने की कोशिश है विद्वानो की जो हमसबको अज्ञानता के अन्धकार से मुक्त कर सके। हमारी दृष्टि और विचार साफ़ हो , ताकि हम परम आत्मा से सहज हो मिल सके।
आप किसी भी धर्म सम्प्रदाय से जुड़े हो या जन्मे हो फर्क नहीं पड़ता , सब उथले और हलके हो जायेंगे , बस एक बार अपने दिमाग को कारागृह से मुक्त करा ले । दिमाग के मुक्त होते ही सारी बेड़ियां अपने आप खुल जाएँगी , कारागृह के सभी द्वार स्वयं खुल जायेंगे , भीषण उफान से बहती नदी आपको स्वयं रास्ता दे देगी। और इस मुक्त ह्रदय और मस्तिष्क से आप जहाँ भी जायेंगे फिर कोई मंदिर मस्जिद चर्च का कारागृह आपको बंदी नहीं बना सकेगा। मानवीय कारागृह से आप स्वतंत्र है आप मुक्त है अभी और यहीं।
यदि समझ का सरोकार प्रेम से , सम्बन्धो से , रिश्तो नातों से अथवा सन्यास साध के सिर्फ घर से दूर जाने के लिए हो तो भ्रम है.....समझ का सम्बन्ध सामाजिक बगावत से नहीं... धार्मिक और राजनैतिक युद्ध से भी नहीं , दंगा फसाद तो बिलकुल नहीं ...... ज्ञान से है बुद्धि से है , इतना जान लेना की सामने खड्डा है काफी है की आप अब उसमे नहीं गिरेंगे। समझ का ये अर्थ नहीं की की आप चोर को पहचान के उसके पीछे हाथ धो के पड़ जाएँ। समझ का अर्थ ये भी है की अब ऊर्जा का समुचित सदुपोग ज्ञान की छाया में करेंगे अज्ञान के प्रकाश में नहीं। अब चोर और देव स्पष्ट हो गए है , अब आप छले नहीं जा सकेंगे। विद्वता का अर्थ ये भी है की अब आप अपने केंद्र से उस केंद्र से सीधा जुड़े है अब आपको मध्यस्थ की आवश्यकता नहीं। मंदिर के घंटे मस्जिद की अजान और चर्च की बेल ह्रदय में है वहीँ से आप अपनी समस्त आराधना को अंजाम दे देते है , अब आप मानवीय कारागृह से मुक्त है ।
ओम प्रणाम
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