जिस प्रकार किसी शारीरिक बीमारी को दुरुस्त करने के लिए , विभिन्न उपायों से बीमारी क्या है जाना जाता है , ठीक इसी प्रकार हमारा मस्तिष्क / मन हमारी आंतरिक यात्रा के लिए भी कार्य करता है। इस आंतरिक यात्रा के लिए स्वयं को जानना बहुत आवशयक है। जैसा सभी जानते है संसार में दो ही प्रमुख तत्व_भाव है स्त्री और पुरुष , भाव की विवेचना इसलिए क्यूंकि आंतरिक यात्रा ही भाव की है।
यक़ीनन अपनी मूल पृकृति से परिचित होकर ही आगे आंतरिक यात्रा के लिए बढ़ा जा सकता है। यदि आप में स्त्री भाव प्रधान है तो ह्रदय चक्र कार्य करेगा , यदि पुरुष तत्व प्रधान है तो आज्ञा चक्र भली भांति कार्य करेगा। औए यदि आपमें दोनो ही तत्व सामान रूप से है , तो आपको मस्तिष्क और ह्रदय के मध्य सामंजस्य बनाना ही होगा। परन्तु इसके लिए स्वयं को जानना ही होगा
मतलब तो वास्तविकता के ज्ञान से ही है , और सिर्फ ज्ञान से कम नहीं चलता , एक एक चुस्की_घूंट इस चाय को पीना भी पड़ता है स्वेक्छा से , प्रेम से , ज्ञान से और अनुभव से। एक भी प्याला ह्रदय में उतर गया तो पथ स्वयं सरल और दर्शनीय हो जाता है।
ध्यान देने वाली बात ये है ; ज्ञान से ज्यादा अनुभव का महत्त्व है। जानकारियों से ज्यादा जीना है सत्य को।
यहाँ ये मायने नहीं रखता दूसरे आपके लिए क्या समझ रहे है , ज्यादा महत्त्व इस बात का है कि आप स्वयं को कितना जान रहे है। आप स्वयं के कितना करीब है। वास्तविकता से परिचित व्यक्ति क्षणिक स्वार्थी हो ही नहीं सकता। उसका स्वार्थ भी परमात्मा से ही जुड़ जाता है। फिर उसके द्वारा किया और सोचा हर कार्य परमार्थ ही है , अन्य कुछ हो ही नहीं सकता
...................… और अति आवश्यक और सर्वाधिक प्रमुख , अक्सर यही लोग फिसल जाते है , आप जो भी कर रहे है अपने स्वयं के लिए आपको स्वयं ही उत्तरदायी होना है , किसी और की नाव पे पैर रख के आप समंदर पार नहीं कर सकते , अपने प्रति जिम्मेदार बनिए अपने स्वयं के प्रति उत्तरदायी बनिए , अपनी नाव के मल्लाह स्वयं बनिए । ये संसार का बीत रहा हर पल ईश्वर का दिया उपहार और आपके लिए आपातकाल ही है ...
पहले अपनी नाक पे ऑक्सीज़न लगाये फिर साथ वाले की सहायता करे " प्रेम और करुणा के साथ "
प्रणाम मित्रों
मतलब तो वास्तविकता के ज्ञान से ही है , और सिर्फ ज्ञान से कम नहीं चलता , एक एक चुस्की_घूंट इस चाय को पीना भी पड़ता है स्वेक्छा से , प्रेम से , ज्ञान से और अनुभव से। एक भी प्याला ह्रदय में उतर गया तो पथ स्वयं सरल और दर्शनीय हो जाता है।
ध्यान देने वाली बात ये है ; ज्ञान से ज्यादा अनुभव का महत्त्व है। जानकारियों से ज्यादा जीना है सत्य को।
यहाँ ये मायने नहीं रखता दूसरे आपके लिए क्या समझ रहे है , ज्यादा महत्त्व इस बात का है कि आप स्वयं को कितना जान रहे है। आप स्वयं के कितना करीब है। वास्तविकता से परिचित व्यक्ति क्षणिक स्वार्थी हो ही नहीं सकता। उसका स्वार्थ भी परमात्मा से ही जुड़ जाता है। फिर उसके द्वारा किया और सोचा हर कार्य परमार्थ ही है , अन्य कुछ हो ही नहीं सकता
...................… और अति आवश्यक और सर्वाधिक प्रमुख , अक्सर यही लोग फिसल जाते है , आप जो भी कर रहे है अपने स्वयं के लिए आपको स्वयं ही उत्तरदायी होना है , किसी और की नाव पे पैर रख के आप समंदर पार नहीं कर सकते , अपने प्रति जिम्मेदार बनिए अपने स्वयं के प्रति उत्तरदायी बनिए , अपनी नाव के मल्लाह स्वयं बनिए । ये संसार का बीत रहा हर पल ईश्वर का दिया उपहार और आपके लिए आपातकाल ही है ...
पहले अपनी नाक पे ऑक्सीज़न लगाये फिर साथ वाले की सहायता करे " प्रेम और करुणा के साथ "
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