श्री शङ्कराचार्य कृतं - शिव स्वर्णमाला स्तुति ||
Shiva Suvarnamala Stuti || Suvarnamalastuti
अथ कथमपि मद्रसनां त्वद्गुणलेशैर्विशोधयामि विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १ ॥
आखण्डलमदखण्डनपण्डित तण्डुप्रिय चण्डीश विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २ ॥
इभचर्माम्बर शम्बररिपुवपुरपहरणोज्ज्वलनयन विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ३ ॥
ईश गिरीश नरेश परेश महेश बिलेशयभूषण विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ४ ॥
उमया दिव्यसुमंगलविग्रहयालिंगितवामांग विभॊ ।
साम्ब सदाशिव शंभॊ शंकर शरणं मॆ तव चरणयुगम् ॥ ५ ॥
ऊरीकुरुमामज्ञमनाथं दूरीकुरु मे दुरितं भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ६ ॥
ऋषिवरमानसहंस चराचरजननस्थितिलयकारण ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ७ ॥
ॠक्षाधीशकिरीट महोक्षारूढ विधृतरुद्राक्ष विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ८ ॥
ऌवर्णद्वन्द्वमवृन्तसुकुसुममिवाङ्घ्रौ तवार्पयामि विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ९ ॥
एकं सदिति श्रुत्या त्वमेव सदासीत्युपास्महे मृड भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १० ॥
ऐक्यं स्वभक्तेभ्यो वितरसि विश्वंभरोऽत्र साक्षी भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ११ ॥
ओमिति तव निर्देष्ट्री मायास्माकं मृडोपकर्त्री भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १२ ॥
औदास्यं स्फुटयति विषयेषु दिगम्बरता च तवैव विभो
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १३ ॥
अंतः करणविशुद्धिं भक्तिं च त्वयि सतीं प्रदेहि विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम्!! १४ ॥
अस्तोपाधिसमस्तव्यस्तैर्रूपैर्जगन्मयोऽसि विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १५ ॥
करुणावरुणालय मयि दास उदासस्तवोचितॊ न हि भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १६ ॥
खलसहवासं विघटय घटय सतामेव संगमनिशम् ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १७ ॥
गरलं जगदुपकृतये गिलितं भवता समोऽस्ति कोऽत्र विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १८ ॥
घनसारगौरगात्र प्रचुरजटाजूटबद्धगंग विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १९ ॥
ज्ञप्तिः सर्वशरीरेष्वखण्डिता या विभाति सा त्वं भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २० ॥
चपलं मम हृदयकपिं विषयद्रुचरं दृढं बधान विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभॊ शंकर शरणं मॆ तव चरणयुगम् ॥ २१ ॥
छाया स्थाणोरपि तव तापं नमतां हरत्यहो शिव भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २२ ॥
जय कैलासनिवास प्रमथगणाधीश भूसुरार्चित भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २३ ॥
झणुतकझङ्किणुझणुतत्किटतकशब्दैर्नटसि महानट भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २४ ॥
ज्ञानं विक्षेपावृतिरहितं कुरु मे गुरुस्त्वमेव विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २५ ॥
टङ्कारस्तव धनुषो दलयति हृदयं द्विषामशनिरिव भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २६ ॥
ठाकृतिरिव तव माया बहिरन्तः शून्यरूपिणी खलु भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २७ ॥
डम्बरमंबुरुहामपि दलयत्यनघं त्वदङ्घ्रियुगलं भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २८ ॥
ढक्काक्षसूत्रशूलद्रुहिणकरोटीसमुल्लसत्कर भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २९ ॥
णाकारगर्भिणी चेच्छुभदा ते शरगतिर्नृणामिह भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ३० ॥
तव मन्वतिसंजपतः सद्यस्तरति नरो हि भवाब्धिं भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ३१ ॥
थूत्कारस्तस्य मुखे भूयात्ते नाम नास्ति यस्य विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ३२ ॥
दयनीयश्च दयालुः कोऽस्ति मदन्यस्त्वदन्य इह वद भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ३३ ॥
धर्मस्थापनदक्ष त्र्यक्ष गुरो दक्षयज्ञशिक्षक भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ३४ ॥
ननु ताडितोऽसि धनुषा लुब्धक धिया त्वं पुरा नरेण विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ३५ ॥
परिमातुं तव मूर्तिं नालमजस्तत्परात्परोऽसि विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ३६ ॥
फलमिह नृतया जनुषस्त्वत्पदसेवा सनातनेश विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ३७ ॥
बलमारोग्यं चायुस्त्वद्गुणरुचितां चिरं प्रदेहि विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ३८ ॥
भगवन् भर्ग भयापह भूतपते भूतिभूषिताङ्ग विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ३९ ॥
महिमा तव नहि माति श्रुतिषु हि महीधरात्मजाधव भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ४० ॥
यमनियमादिभिरङ्गैर्यमिनो यं हृदये भजन्ति स त्वं भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ४१ ॥
रज्जावहिरिव शुक्तौ रजतमिव त्वयि जगति भान्ति विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ४२ ॥
लब्ध्वा भवत्प्रसादाच्चक्रं विष्णुरवति लोकमखिलं भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ४३ ॥
वसुधातद्धरतच्छयरथमौर्वीशर पराकृतासुर भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ४४ ॥
शर्वदेव सर्वोत्तम सर्वद दुर्वृत्तगर्वहरण विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ४५ ॥
षड्रिपु षडूर्मि षड्विकारहर सन्मुख षण्मुखजनक विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ४६ ॥
सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्मेत्येतल्लक्षणलक्षित भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ४७ ॥
हाहाहूहूमुखसुरगायकगीतापदानपद्य विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ४८ ॥
ळादिर्न हि प्रयोगस्तदन्तमिह मंगलं सदास्तु विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ४९ ॥
क्षणमिव दिवसान्नेष्यति त्वत्पदसेवाक्षणोत्सुकः शिव भो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ ५० ॥
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