उनके ज्ञान में कमी नहीं होती , उनका अभ्यास भी ऐसा के सामान्य व्यक्ति अचंभित रह जाये की ऐसा अजूबा इंसान नहीं कर सकते। उनके सामाजिक सहयोग में भी कमी नहीं होती , उनके अनुगामी भी बहुत मिलेंगे।
पर फिर भी अचानक उनके द्वारा उनके लिए कुछ ऐसा घटता है जिसे देख सामान्य व्यक्ति उनके प्रति अपनी सभी धारणाये बदल लेता है।
इसमें सही या गलत कुछ नहीं , प्रकर्ति है , समय है, और शून्यता है। प्रकति आपकी शक्ति आपसे अधिक जानती है। वैसी ही परिस्थतियाँ जन्मती है और आप शिकार हो जाते है। बहुत महीन सूत्र है पकड़ का यहाँ पे।
प्रकर्ति के खेल अजूबे है , एक जो माहौल बन रहा था उनके साथ और उनके अनुगामियों की आस्था के साथ उसका अंत आगया। अब अचानक ऐसा कुछ होगा की सब तितरबितर हो जायेगा।
ये सब ... समय और शून्य के खेल हैं।
विशाल प्रकृति की अनेक विधा में ये पराज्ञान विधा बहुत बारीक है। संसार में जीने के लिए इसकी आवश्यकता ना के बराबर , आप इसकी सूक्ष्मता का अंदाजा लगा सकते है। पर इसकी उपस्थ्ति और इसकी आवश्यकता है क्यूंकि ये है ! क्यूंकि प्रकति चाहती है की 'ये' रहे। और जितना वो चाहेगी उतना ही वो रह पायेगी। उसके बाद पात्र तो जायेंगे ही, कथा भी उलट जाएगी। जो भी है जैसा भी है उसी की योजना में है। एक बात छोड़ के जिसमे चेतन पुरुष को कर्म की जो एक प्रतिशत अनुमति है उसी में वो कुछ ऐसा करता है जिससे प्रकति पुष्ट और घायल दोनों ही होती है।
इस प्रकति को ही सिर्फ वैष्णव या वैदिक जो अन्य देशों में भी है और हिन्दूधर्म में देवी-धर्म के अंतर्गत देवी-स्वभाव बताया गया।
सार दो गुणों के साथ -
#करुणा
और
#आभार
अब यहाँ से चेतन-मनुष्य का ह्रदयपाठ शुरू होता है देवीनमस्कार-सूत्र प्रार्थना के साथ
🙏
सुप्रभात
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