प्रिय राजा विक्रमदित्य तुल्य साधक ,
शुभाशीष , सुखी रहो , उन्नति करो।
अब तक हुए सभी इम्तहान में खरे उतरे आज शिक्षा समाप्ति का दिन पास आता लग रहा है। विश्वास है के तुम्हारा ये अभ्यास भी पूरा हुआ , क्यूंकि सांकेतिक रूप में तुम्हारे लिए छायासदृश मुझे दो दरवाजे भासित होना शुरू हो चुके हैं। चलो ! अब हमारे साथ के कुछ आखिरी पल या घंटे , तुम्हारे लिए अगले कार्यक्रम की बारी।
ठीक ; विजेता राजा विक्रमादित्य की तरह इस बार भी तुम ही निर्णय के द्वार पे हो और तुम ही निर्णय करोगे , चाबी हाथ में लिए सजी हुई कठपुतलियां दोनो दरवाजों पे खड़ी आकर्षित करेंगी , पुकारेंगी और आश्वस्थ करेंगी के तुम ही इन चाभियों के मालिक हो, असली हकदार हो।
स्पष्ट दिखता है ; तुम्हारे आगे दो दरवाजे है , किन्तु तुम्हे प्रवेश किस द्वार में करना है तुम्हारा निर्णय है , प्रथम द्वार में प्रवेश निर्णय लेते ही तुम्हारा हुलिया बदल जायेगा और प्रवेश पाते ही संभवतः तुम अनन्य संपत्ति के मालिक हो सकते हो राजसी सम्मान के पात्र भी या ये सब कुछ नहीं मात्र धोखा या छद्म भी हो सकता है , दूसरा द्वार प्रवेश तुमको और घिसेगा , हो सकता है कभी कभार भूखे रहना पड़े और कपडे भी जो हैं वो साथ दें लेकिन उन्नति तुम्हारी जरूर होगी यहाँ घिसाई है पर धोखा नहीं !!
हमेशा की तरह दो दरवाजे, सिर्फ तुम्हारे लिए , क्यूंकि पिछले भी तुमने ही पार किये , आगे भी तुम ही पात्र हो , एक को खोलना सरल चमकदार और अनेक प्रलोभन , दूसरा घिसा पुराना आगे अगले स्तर में प्रवेश। राजन ! निर्णय और जिम्मेवारी तुम्हारी ही।
जाओ .... आगे बढ़ो प्रियवर , चयनित द्वार में प्रवेश करो !!
शुभकामनायें।
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