Tuesday, 17 January 2017

सावधान राजन !

र पल क्षण सतर्क , द्वार पे ३२ कठपुतलियों का पहरा है , यानी ३२ मायावी संसार , इनसे भेंट कर लें !
ये सभी ह्रदय से मुस्करा के स्वागत करती हैं , मनमोहनी हैं , वाक्चातुर्य और नृत्य संगीत और चित्र कला की स्वामिनी हैं , विज्ञानादि विषयों में विद्वान है। फिर भी सावधान राजन ! ये वे मायावी कठपुतियां है जिनका उद्देश्य आपको सिंहासन तक न पहुँचने देने का है , क्योंकि ये नियुक्त है अपने कर्त्तव्य पे निष्ठ है जो माया देवी के आदेश से उसी को आगे जाने देंगी जो वीर है साहसी है और बुद्धिमान है।
अब मजा देखिये !
भी के लिए ऐसी ही सोती हुई सी जागृत व्यवस्था है , जिसमे सभी आत्मन राजन है , और सारा बाहरी संसार मायावी ......
सलिए एकमात्र आप ही राजन नहीं सभी राजा है और सभी सिंहासन की ओर बढ़ रहे है , उनके लिए आप उन ३२ में से एक कठपुतली और आपके लिए वे। ये भी माया ही है।
सागर में पानी ही पानी फिर भी गहरे सागर से एक विशाल लहर उठ के अलग हुई , लहर से बूँद छिटक अलग हुई ग्लानि हुई उसे जो अकारण ही अपने जन्मस्थल से दूर पड़ी जा के , बूँद ने अपने इस कृत्य के लिए तप किया, तो उत्पन्न अग्नि के ताप से भाप बन गयी , भाप बन आसमान को उठ चली , आसमान से ऊपर नहीं उठ पाई , वैसे उठती तो भी महाशून्य में नन्ही त्रिशंकु ही बनती , तो वो धरती-त्रिशंकु बन गयी , धरती पे ही थोड़ा ऊपर उठी और उठ के लटक गयी , धरती की मेहरबानी से वातावरण से अलग कैसे होती ! तो ग्रेविटी के अंदर होने के कारन वातावरण के परिवर्तन से प्रभावित हुई और जल बन बरस गयी , अब बताईये ! जो लहर सागर से उठी और वो बूँद जो छिटक के अलग हुई लहर से भाप बन बदल बन के फिर से बरस गयी , आपने पहचाना क्या ! आपने उस बूँद की कोई पहचान , कोई संकेत , कोई चिन्ह , नहीं बनाये , क्यों आश्चर्य है ! आपको पुरानी यादाश्त सँभालने की उसमे घूम घूम के जीने की सदियों पुरानी बीमारी है। और आपको अपनी इस गहरी बीमारी का आभास तक नहीं।
ब आप ही कहेंगे, पागल हो क्या ! जब पानी की ही पहचान नहीं , कल भाप , परसो बर्फ , और फिर पता नहीं कहाँ गिरा ! कहाँ बरसा ! फिर बूंद की पहचान अलग से कैसे हो ! मुझे पता है हम-आप तो जल को पहचानते है , उसके गुण को पहचानते है , उसकी उपयोगिता को भी जानते है और उसके परिवर्तनशील स्वभाव को भी जानते है। . पर वो....... उस नन्ही बूँद की....... पहचान है क्या ! नहीं न ! तो इन छोटी छोटी फुलझड़ी सी चेतनाओं को क्यों उनके गुणधर्म से अलग करना चाहते है ! कैसे कर पाएंगे महासूर्य से उसकी ऊर्जा को अलग !
प तो विद्युत् की उपयोगिता को पहचानते है , अग्नि की किसी एक लपट को उसके नाम से पहचानेंगे क्या ! और वायु ! आह ! कैसे पहचानेंगे! तो बेचारे धरती तत्व ने ऐसा क्या किया की आप संज्ञा और सर्वनाम , क्रिया और विशेषण में उलझ गए ! तत्व की , तरंग की , भाव की , और जो भी धरती पे आपसे सम्बंधित है उसकी परिवर्तनशीलता और उपयोगिता ही उसकी सही पहचान है।
सोचने वाली बात तो है पर अब इसका चिंतन मत शुरू कीजियेगा ! तब तक जल पता नहीं क्या रूप बदल लेगा ! आज जल का जो भी स्वरुप है वो ही आपके लिए सच है , क्योंकि आपका जीवन भी तो बदल ही रहा है। प्रकर्ति में पुनरावर्तन पाया जाता है , सच है ! पर अवधि और अंतराल माने रखते है ! जिस पल में जो साथ है वो सच है , जो सम्बन्ध है वो सच है। प्यार के लिए चार पल कम नहीं थे , कभी तुम नहीं थे कभी हम नहीं थे।
कौन से ध्यान-जादू या तंत्र मन्त्र सिद्धि से आप ऊर्जाओं को अलग करेंगे और फिर उन्हें सहेज लेंगे या आपके परम शक्तिशाली गुरु की कृपा से आप वो शक्ति से त्रिशंकु बनने की चेष्टा करेंगे , बिना अर्थ और मर्म समझे , आप अपने बनाये मंदिर में पत्थर की प्रतिमा बना के उस फुलझड़ी को जीवित रखने की चेष्टा करेंगे और कहेंगे भी के जादू होता है , कब नींद से जागेंगे !!
वैसे क्या करेंगे जाग के !
दुनिया में सोते रहना अच्छा है और सोते सोते चले जाना और भी अच्छा फिर समस्या क्या है ?
भाई ! समस्या ही समस्या , आप कहते की हम सोये है...... फिर क्यों दुःख है पीड़ा है जलन है , लग रहा है कोई घोड़े पे बिठा दिया है उसकी पीठ पे चाबुक मार के उसे दौड़ा दिया है , एक तो उसकी बेलगाम रफ़्तार से डर रास्ता भी अँधेरे में ऊबड़खाबड़ , कुछ सूझता ही नहीं और घोडा सरपट दौड़े जा रहा है , और हम ! पूछिये नहीं , अब गिरे की तब गिरे , संतुलन करते करते पीठ अकड़ गयी देह ने जवाब दे दिया। पर लगता है वो भी घबराया है पता नहीं क्यों चाबुक मार के दौड़ा दिया किसी ने और पता नहीं क्यों सर पे पीछे से चाबुक पड़ रहे है इन्ही सबसे पीछा छुड़ाना है , इसीलिए आये है , हम यहाँ यूँ नहीं कहीं जाते , बहुत पैसा खर्च करके यहाँ तक आये है। काम धंधा करते है !
ठीक है ! काम धंधा कीजिये , गुरु का स्मरण कीजिये , गुरुनाम की माला जपिये , और स्वर्ग में स्थान पक्का ! क्योंकि आप तो शृद्धालु है , भक्त है , भगवन की पूजा भी करते है और ध्यान - पूजन - भजन भी !
ही है ! पर क्या आपने गौर किया की जब घोड़ा यहाँ रुका तो चाबुक पड़ने भी बंद हो गए , वो बोला हाँ योगेश्वर की बड़ी कृपा है , चेतना ने कहा - योगेश्वर महान है सही है ! पर थोड़ा डर को रोक के घोड़े को पुचकार के सहला के रोकते तो वो रुक जाता और उसके रुकते ही फिर आप देखते की चाबुक आपको कोई और नहीं उसकी पूंछ में अटकी लकड़ी से लग रहे थे। सारा आपका काम आपके धैर्य से और प्रेम से संभव होता। पर चलिए ये भी सही , आपको इसी रस्ते से गुजरना था। सत्य की सत्ता तो सभी जगह कहीं से भी ले लीजिये। सत्य तो सर्वस्व है , फिर कुछ झूठ और कुछ सच कैसे हो सकता है , सम्पूर्ण सत्य ही है बस अज्ञानता अपनी है और भटकन अपनी है ।
हैं न

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