Saturday, 14 December 2019

COLOURENERGY: Chakra The project dedicated to humanity for peace



मन्त्र तो हिन्दू धर्म शास्त्र में अनेक हैं , पर अर्थ समझने वाले गिनती पे ! भाषा के ज्ञान के अभाव में कामचलाऊ अर्थ यानि के सुने सुनाये।  तो मंत्र  भी असर कैसे करें उनका रास्ता भी तो भाव है , और भाव ही गायब  तो मन्त्र बेअसर। 

शंकराचार्य का गीत जो चक्रदर्शन के लिए आवश्यक है चक्र विश्लेषण प्रोजेक्ट में लिया गया और ओशो का पत्र जो खास तौर पे मन के ऊपर ही लिखा है। इस यात्रा में उनका विशेष स्थान है। इसके बाद चक्र-दर्शन यात्रा शुरू होती है। इस यात्रा के पश्चाद खंगालने में एक कदम ले सकते है। क्यूंकि इस खंगाल के बाद ही कमजोर कड़ी के दर्शन संभव है।

इसी बेचारगी और पीड़ा से दग्ध की भटकन को कम करने के लिए हिंदी भाष्य का सहारा लिया कविता रूप में इस चक्र माला को पिरोकर संगीत से सूंदर उपयोगी बनाया।

( सातों चक्रो को समर्पित )

सतरंगी चुनरी या जो मोरी कितनी बिरली निराली है इब तोहे क बताऊँ सखी री.. विदा म बाबुल कहत मोसे भुलियो न एहि के तू कर्तब इब तोहे क बताऊँ सखी री.. हरबार धोई हरबार सुखाई अजहुँ कैसन मैली य कोरी इब तोहे क बताऊँ सखी री..


*आत्मा का गीत * मनोबुधही अहंकार चित्ता निनाहम ना च श्रोत्र जीवे ना च घ्राण नेत्रे ना च व्योमभूमीरना तेजो ना वायु चिदानंदा रुप: शिवोहम शिवोहम ना च प्राण संगो ना वै पंचवायुः ना वा सप्ताधतुर ना वा पंचकोष: ना वाकपानीपादौ ना चोपस्थपायौ चिदानंदा रुप: शिवोहम शिवोहम
ना मे द्वेष रागौ ना मे लोभ मोहौ मदोनैइवामेनैइवा मत्सर्याभव: ना धर्मो ना अर्थो ना कामो ना मोक्ष: चिदानंदा रुप: शिवोहम शिवोहम
ना पुन्यम ना पापं ना सौख्यां ना दुखाम ना मंत्रो ना तीर्थम ना वेदा ना यग्न: अहम भोजनम नैव भोजम ना भोक्ता
चिदानंदा रुप: शिवोहम शिवोहम
ना मे मृत्यु शंका ना मे जातिभेदा पिता नैव मे नैव माता ना जन्मा ना बन्धुर ना मित्रा गुरूर नैव शिष्या चिदानंदा रुप: शिवोहम शिवोहम अहम निर्विकल्पो निराकार रूपो विभुर्व्याप्त सर्वत्र सर्वेंद्रियानाम सदा मे समत्वं ना मुक्तिर न बंधा
चिदानंदा रुप: शिवोहम शिवोहम

ओशो लिखित एक पत्र

मन ; जो जीव के जीवन-काल में प्रजव्वलित अग्नि दीपशिखा उन चक्रों की जो सात रंगो समेत हर देह में वास करते हैं ओशो का सन्देश उस " मन " के लिए

प्रिय योग प्रेम प्रेम हवा के झोंको में कम्पती ज्योति की भांति है मन कंपेगा .......दुविधा में पड़ेगा , खंड खंड होता रहेगा तू उससे पार हो उससे दूर हो उससे ऊपर उठ ..... उसे पीछे छोड़ - नीचे छोड़ , तू मन नहीं।

तू मन नहीं। तू तो वो ही है जो मन को भी जानता है , उसके कम्पनों को जानता है उसकी दुविधाओं को जानता है। इस जानने ( KNOWING) में ही ठहर । इस दृष्टा भाव में ही रमण कर । तू तो यह साक्षी ही बन । और फिर इस अतिक्रमण से मन शांत हो जाता है । ऐसे ही जैसे हवा के झोंके बंद हो गए हों तो दिए की लौ नहीं कंपति है । मन से स्वयं का तादात्म्य ही हवा के झोंको सा काम करता है इधर टूटा तादात्म्य ( IDENTITY)उधर अँधियाँ बंद हुईं ओशो




Root chakra / Mooladhara (1st) — Reproductive
glands (testes in men; ovaries in women); controls
sexual development and secretes sex hormones.
glands; regulates.

Sacral chakr / Swadhishthanaa (2nd) — Adrenal
the immune system and metabolism.
Heart chakra / Anhad (4th) — Thymus gland;
Solar Plexus chakra / Manipura (3rd) — Pancreas; regulates metabolism.regulates the immune system.

Throat chakra / Vishudhhi (5th) — Thyroid gland; regulates body temperature and metabolism.

gland; produces hormones and governs the function.


Third Eye chakra / Ajna (6th) — Pituitary


Crown chakra / Sahastra (7th) — Pineal gland;
of the previous five glands; sometimes, the pineal gland is linked to the third eye chakra as well as to the crown chakra regulates biological cycles, including sleep.

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मूलाधार काव्य -
मूल में बीज-रूप में बैठा है इक्छा वासनाओं का जाल
भय, प्रेम, लोभ, मोह, क्रोध हारजीत युद्धस्पर्धा से दोष
युद्ध या छल बल के बंध से बेबस करते हैं हासिल करूँ
किन्तु; भक्त हृदय में श्री राम संकल्प साधना में सीता माँ है चेतनालक्ष्मण का सहयोग मेरे ही मूलाधार चक्र में रहते रण करते तुम रावण का नाश अवश्यम्भावी सुनिश्चित हुआहै

1


 मूलाधार चक्र  और उससे सम्बंधित निम्न  दोषो को दूर करने की प्रार्थना  देवी शास्त्र सौन्दर्यलहरी में मिलती है -

1= प्रथम चक्र मूलधारा

तवाधारे मूले सः  समायया  लास्य परया 
नावात्मनम मन्ये नवरसा महा तांडव नटम 
उभाभ्या माताभ्या मुदयविधि मुद्धिस्यादयावा 
सनातभयां जजने जनकाजननिमत जगदिदं 

this chant is take from Soundarya Lahari Sloka - 41 - 1

[aananda taandava in moolaadhaara]
[devi saakshaatkaara – removal of dangerous diseases]

Tavadhaare moole saha samayayaa laasya parayaa
Navatmaanam manye navarasa-mahaa taandava-natam
Ubhaabhyaa metaabhyaa-mudaya-vidhi muddhisya dayayaa
Sanaathaabhyaam jajne janakajananeemat jagadidam

Tava - your
moole aadhaare - in the moolaadhara cakra
saha - with
samayayaa - with you who is called Samaya
laasya-parayaa - interested in dancing
Navatmaanam - aananda bhairava
manye - I meditate on
navarasa-mahaa taandava-natam - dancing navarasa taandava nritya
Ubhaabhyaa metaabhyaam - by you two
udaya-vidhim - the creation of the world destroyed in pralaya
uddhisya - taking into consideration
dayayaa - with kindness
Sanaathaabhyaam - with the wife and husband
jajne - become
janakajananeemat - having father and mother
jagadidam - this world

In your Muladhara chakra, I meditate on aananda bhairava, dancing the great navarasa taandava with you who is also interested in dancing and who is called by the name "samayaa". This world becomes great by having father and mother as aanandabhirava and samayaa respectively, both of you, by your kindness have taken steps to bring back the world which was destroyed in pralaya.


* बैल के समान जिद्दी अड़ियल और मदमस्त बलशाली मूलाधार ,
  रक्त वर्ण, ळं ध्वनि, स्थल योनि /गुदा

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2
असंतुष्टि बीजगुण  के साथ  उपजता व्यावहारिक असंतोष  गुण 
प्राप्त शक्ति के साथ.. *संकल्प, *प्रयास,  *अहंकार,  *भावुकता,  
और उसके साथ ही असुरक्षा और भय का जन्म 
भय अपने सकारात्मक / नकारात्मक भाव के साथ  देह / मन पे प्रभाव 
के साथ और बीज रूप कुलबुलाता,  योगशक्ति का जन्म से प्राप्त अंकुर 
जो कहता - तुममे है शक्ति ...तुम असंभव को संभव् कर सकते हो 
ये है - स्वाधिष्ठाना 

काव्य -

मैं यहाँ स्व में रुक गया 
अपना महल था मानो ये 

सूफी कहता न रहे हमेशा
सांकल खटखटाई पर मैं 

अपने घर में और दृढ़ता से

मैं अधिष्ठाता हुआ स्वामी 
ये मेरा स्वाधिष्ठान महल 
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गहरे संस्कार उपजते भय का स्थान 
संसार को पाने की अदम्य  लालसा 
श्री कृष्णा ! मेरी लालसा इक्छा अश्व 
अपनी  वत्तस्ल  शरण  स्वीकार  करें 
नाभि देश में स्थित नारंगी कमलदल
आठ दिशाओं में अपनी ऊर्जा देता है 
राधा कृष्ण इसमें प्रेम जल सिंचित करें 

जो इस देश के सब भय का मर्दन करें

2- द्वितीय स्वाधिष्ठान 

वर्ण नारंगी, ध्वनि वं , स्थल नाभि योनि के मध्य ठीक पीछे पीठ का निचला भाग 




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3
चक्र अनावरण अभियान  में ये अपने
प्रभाव और परिणाम  लिए
मेरा तृतीय  चक्र
पीत  और हरित मिश्रित चक्र  मणिपुर

काव्य -

बेहद कोमल है ये केंद्र मेरा
आभूषण प्रभाव चाटुकारिता
जरा सहम जरा गर्व करता
जरा बहला जरा से बहका
दुर्दांत से डर प्रेम से महका
पसंद के  भोज से बहलता है
रमणीक स्थान पे मुग्ध हुआ
भाव और भोज भय संग प्रेम
वासना इक्छा से भरा हुआहै 
अजब भय की ग्रंथियां इसकी


3- मणिपुर ॐ मणिबद्धे रं अहम्

तादित्वं मम शक्त्या तिमिरतसंपुराणया 
पुरननानारत्नाभरण भरेनिन्द्रधनुषं 
भविष्यम मेघ: कमपि मणिपुरैकशरणम 
निषयवैवशर्तं  हरमेरत्यक्तं त्रिभुवन 

रंग पीला, ध्वनि रं , नाभि देश ठीक पीठ में पीछे का भाग 

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4
 अधिक प्रेम,  अधिक संवेदनशील या भाव संवेदनाये ,
बस .. अधिक का इक्छुक , अधिक  भक्त , अधिक तार्किक ,
अधिक बस अधिक अज्ञानता में असंतुलित , जरा कम से
राजी नहीं ऐसे दौड़ते बेकाबू भावना अश्व का स्वामी ये हृदय-चक्र स्थान ।

अपने होने का अहंकार इसी स्थान में बीजरूप में फलदार वृक्ष बनता
है , फल जिसमे पलते अनेक सकारात्मक नकारात्मक प्रभाव लिए
अनेक बीज जिनमे अलग अलग फलदार बृक्ष होने की संभावनाएं।

काव्य -
श्री लक्ष्मीविष्णु मलिनह्रदय शुद्ध करें
इसमें अनयास बसे भय-मल दूर करें
ह्रदयभाव कोमल स्नेहल प्रेमपूरित हों
छलकपट विष ह्रदयकमल से दूर करें
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यहीं भाव की भूमि  में
 मेरे ह्रदय इस चक्र में
डेरा डाले निर्बलमन में
मेरी मूल-भूत चाहतें हैं
मेरी मूल-भूत इक्छाएं हैं
उन्हें पाने के हर प्रयास
अंतर्द्वद्व मेरे मन में, और
मैं दलदल में धंसता जाता
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श्री हरी मेरे ह्रदयभाव को स्वच्छ करें 
संतुलित करें,  मेरे विवेक को बल दें 

अनाहत

सम्मिलत संवित्कमलमकरन्दऐकरसिका 
भजेहं सद्वन्द्वं किमपिमहताम मानस्चरम 
यदालापात अष्टादशगुणी  विद्यापारिणते 
यदादित्येदोषातगुणाखिलम अद्यत्पएमूला  


रंग हरित , ध्वनि यं , क्षेत्र  ह्रदय  और ठीक पीछे पीठ का स्थान 
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5
मौन अब  बेबस मौन नहीं , अद्भुत मौन का गीत उभरा है
संगीत बन छन् छन्न , ........

काव्य -
आह जीवन धड़कता है यहीं
इस  धड़कन में इस श्वांस में

जी लूँ याके मर लूँ अभी यहीं
खड़ा हुआ हूँ  उत्तुंग छोटी पे

शिव सदृश कृष्ण बांसुरी लिए
राम का धनुष संभाले मैं ही हूँ

विशुद्ध चक्र (वाणी चक्र )



विष्णुभक्ते शुद्धस्फटिकविशधम व्योमजनकम  
शिवंसेवे तेरेमातिरशिवसमानव्यवसिता 
येयोकान्त्या यन्त्या शशिकिरणम सरूप्यशरण्ये 
निधुतान्तारणम  भ्रांन्तादिलंते चकोरी व् जगते 


रंग -  नीला , ध्वनि हं , क्षेत्र - गला  से मुख तक 

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6
न कहने की जिज्ञासा न पूछने की बेचैनी न उत्तर की प्रतीक्षा
मानो प्रश्न उत्तर सब ब्रह्माण्ड में है; मुझमे नहीं
ये है हृदय से उठ विशुद्धि में प्रवेश पा
अज्न को भेद सहस्त्रार को उन्मुख
सर्पिणी सी बलखाती उठती चेतना 

काव्य -

पर मैं नहीं हूँ, कुछ भी नहीं हूँ
कुछ भी सुनाई देता अब नहीं
सायें सायें हवा का शोर चहुँ

न तेरे सिवा कहीं कुछ और
 मैं कौन हूँ न पूछ,  मैं मौन हूँ
ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़

ॐ शिवा का मन्त्र  जपु  ॐ शिवा का ध्यान
आठ पहर अब ॐ शिवा मैं, पूछ न मेरा धाम

अज्ना / आज्ञा  चक्र 



ॐ 



तत्वात्मयाचक्रस्थम  तप न शशि कोटि द्युधिधरम 
परम शंभुवन्दे  परिमिलितपाशुपरिजिता यमाराध्यां भक्त्या 
रवि शशि शुचिनाम अविषये 
निरालोके अलोके निवसति शिवालोक भुवने

ध्वनि ॐ ,रंग इंडिगो , क्षेत्र नासिका भृकुटि  और पीछे का मस्तक सर 

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7
काव्य -
वो सातसुर बिगड़िए ये मेरे सात-द्वार खुलिये
मैं बौराया सुन साहिबा याये जग बौराया होये
होया मेरा चोला बैंगनी, देस मेरा बैंगनी होया
कमल मुझमे खिलया!कमल सा खिलया होये
और ...
सहस्त्र में स्थित जागृत चेतना पुनः सरलता सहजता और आत्मबोध के
साथ  संत सूफी भावयुक्त हो अपने बीज स्त्रोत से जा मिलती है।
And ..
The awakened consciousness located in Sahasra, again with ease,
simplicity and self-realization, becomes emotionful the saint Sufi to meet from his seed source, duality gets merged in nature with oneness.  

सहस्त्र चक्र 

ॐ तटे लेकाधायणद्ये तपंशशी वैश्वरानं निषषन्ना  षन्नाअप्युपरे
कमलनाम सुप्त अकला महापद्यमतलयाम
नन्दित फलपाये अनसा
महानतः पश्यन्तु तदपि परमालवदलयरी


मनसतवं , व्योमत्वम , मरुमेसी मरुसारतिरसी
त्वंआपस त्वंभूमि त्वयि परिणातायाम नहि परं
त्वमेव्  स्वात्मानं परिणयमत्यत्वं  विश्वभविषा
चिदानंदकारा शिवयुति भावेनविपरिशयति 



ध्वनि ॐ , रंग बैंगनी , देश - सर का ऊपरी कोमल क्षेत्र

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नोट : प्रथम के अतिरिक्त  ये सभी संस्कृत मंत्रोच्चार सुन उमा जी के विडिओ से सुन के लिखे गए है , इनकी विश्वसनीयता प्रमाणित नहीं पर यदि  साधक का भाव सही है तो इनकी तरंग परिणाम सहित प्रमाणिक है।